: श्रावण : २४७७ : २१३ :
‘आत्मा कोण छे ने कई रीते पमाय?’
श्री प्रवचनसारना परिशिष्टमां ४७ नयोद्वारा
आत्मद्रव्यनुं वर्णन कर्युं छे तेना उपर पूज्य
गुरुदेवश्रीनां विशिष्ट अपूर्व प्रवचनोनो सार.
[प्रवचनमां आ परिशिष्ट एक वखत वंचाई गया बाद तुरत ज बीजी वखत तेनुं वांचन थयुं हतुं. बीजी
वखतना प्रवचनोनो सार पण पहेली वखतना प्रवचनोनी साथे उमेरी देवामां आव्यो छे.]
[वर स. २४७ जठ वद ३ थ शरू]
प्रवचनसारमां भगवान श्री कुंदकुंदाचार्यदेवे रचेली २७५ गाथाओ पूरी थई छे, हवे श्री
अमृतचंद्राचार्यदेवे रचेलुं ‘परिशिष्ट’ वंचाय छे. जेम मंदिर उपर कळश चडावे तेम आ परिशिष्टमां ‘आत्मा केवो
छे ने तेनी प्राप्ति कई रीते थाय छे’ तेनुं वर्णन करीने आचार्यदेवे प्रवचनसार उपर कळश चडाव्यो छे. सभामां
आ परिशिष्ट पहेली ज वार वंचाय छे.
• शिष्यनी जिज्ञासा ने आचार्यदेवनी करुणा •
“आ आत्मा कोण छे, केवो छे अने कई रीते प्राप्त कराय छे’ एवो प्रश्न करवामां आवे तो तेनो
उत्तर पूर्वे कहेवाई गयो छे अने अहीं फरीने पण कहेवामां आवे छे.”
जेने आत्मानी बहु झंखना थई होय ते शिष्य वारंवार आत्मानी वात पूछया करे छे. जेम जेने पुत्रनो
प्रेम छे ते वारंवार तेनी संभाळ करे छे, तेम जेने आत्मानो प्रेम जाग्यो छे–आत्मानुं कल्याण करवानी धगश
जागी छे ते जीव आत्मानुं स्वरूप समजवा माटे वारंवार प्रश्न पूछे छे. जेने जेनी जरूरियात जणाय तेमां तेनुं
ज्ञान–श्रद्धा ने पुरुषार्थ वळ्या वगर रहे नहि. शिष्यने आत्मानुं रटण लाग्युं छे एटले वारंवार ते प्रश्न पूछे छे के
प्रभो! आ मारो आत्मा केवो छे? ने तेनी प्राप्ति केवी रीते थाय? आवुं पूछनार शिष्यने आचार्यदेव फरीथी
पण आत्मानुं स्वरूप समजावे छे. ‘आ आत्मा कोण छे’ एवुं पूछनार शिष्यने आत्मानी दरकार थई छे एटले
तेनी रुचि अने ज्ञाननो प्रयत्न आत्मस्वभाव तरफ वळ्या वगर रहेशे नहीं.
अहीं आचार्यप्रभु कहे छे के ‘जो प्रश्न करवामां आवे तो’ अमे तेनो उत्तर कहीए छीए. जेने समजवा
माटे झंखनाथी प्रश्न ऊठ्यो छे तेवा शिष्यने माटे अमारो उपदेश छे, कापडना फेरियानी जेम के शाकभाजी
वेचनारनी जेम कोईना घरे जईने पराणे समजावता नथी; जेने तृषा लागी नथी तेने पाणी पाता नथी, जेने
भूख लागी नथी तेने खवरावता नथी, तेम जेने आत्मानी दरकार थई नथी तेवा जीवोने अमे संभळावता
नथी, पण जेने आत्मानी धगश छे तेने ज अमारो उपदेश आपवामां आवे छे.