Atmadharma magazine - Ank 094
(Year 8 - Vir Nirvana Samvat 2477, A.D. 1951)
(Devanagari transliteration).

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: श्रावण : २४७७ : २१५ :
हुं अनादिथी संसारमां रखडयो छुं, तेथी ‘आत्मानुं स्वरूप शुं छे? अने तेनी प्राप्ति कई रीते थाय छे? ते मने
समजावो, –के जे समजीने हुं आत्मानी प्राप्ति करीने परमात्मा थई जाउं ने मारे फरीने अवतार न रहे.’
जुओ! शिष्य कोई बीजा आडाअवळा प्रश्न नथी पूछतो पण ‘आ मारो आत्मा केवो छे’ एम ज पूछे
छे. जेम बजारमां जाय त्यां जे वस्तु लेवी होय तेना भाव पूछे. किंमती हीरो लेवो होय ते कांई शाकवाळानी
दुकाने भाव पूछवा न जाय. तेम जे शिष्यने आत्मानी दरकार थई छे ते पूछे छे के हे प्रभो! आत्मा केवो छे
अने तेनी प्राप्ति केम थाय? ते समजावो.
–एम पूछनार जिज्ञासु शिष्यने आचार्यदेव फरीथी विशेषपणे आ परिशिष्ट द्वारा समजावे छे; पहेलांं ते
कथन आवी तो गयुं छे पण जिज्ञासुने माटे हजी फरीने कहेवामां आवे छे. अमे निरर्थक बकवाद नथी करता,
तेम ज कोईना घरे जईने पराणे उपदेश नथी देता, पण विनयथी समजवा माटे जे जिज्ञासु पूछे छे तेने
कहेवामां आवे छे;–ए वात, ‘प्रश्न करवामां आवे तो’ एम कहीने आचार्यदेवे जणावी दीधी छे. प्रश्ननी भाषा
तो जड छे, पण तेनी पाछळनो वाच्यभाव एवो छे के शिष्यने अंदर ते जातनी–आत्मा समजवानी–भावना
जागी छे. आवा पात्र शिष्यने समजाववा माटे अमे फरीथी आत्मानुं वर्णन करीए छीए. अहा! जुओ,
आचार्यप्रभुनी करुणा अने शिष्यनी पात्रता!
आत्मा केवो छे ते जाणीने मारे मारुं कल्याण करवुं छे एवी जेने भावना थई होय तेने ज आवो प्रश्न
ऊठे छे अने तेने ज आचार्यदेव समजावे छे. जे जीव समजीने ठरी गयो होय तेने तो आवा प्रश्ननो विकल्प
नथी ऊठतो, तेम ज जेने समजवानी दरकार ज नथी तेने पण आवो जिज्ञासानो प्रश्न ऊठतो नथी ने तेने माटे
आ कहेवातुं नथी. पण जेने अंतरमां जिज्ञासा जागी छे अने विनयथी पूछे छे एवा शिष्यने माटे आचार्यदेव
फरीने ‘आत्मा केवो छे’ ते कहे छे.–
• अनंतनयात्मक श्रुतप्रमाणथी
प्रमेय थतो आत्मा •
‘प्रथम तो, आत्मा खरेखर चैतन्यसामान्य वडे व्याप्त अनंत धर्मोनुं अधिष्ठाता (स्वामी) एक द्रव्य
छे, कारण के अनंत धर्मोमां व्यापनार जे अनंत नयो तेमां व्यापनारुं जे एक श्रुतज्ञानस्वरूप प्रमाण ते प्रमाण–
पूर्वक स्वानुभव वडे (ते आत्मद्रव्य) प्रमेय थाय छे–जणाय छे.’
आ भगवान आत्मा एक द्रव्य छे ने तेमां अनंत धर्मो छे. एकेक आत्मा अनंत धर्मोनो अधिष्ठाता
एटले के स्वामी छे. अनंत धर्मो चैतन्यसामान्य वडे व्याप्त छे, ते अनंत धर्मोने रहेवानुं स्थान आत्मा छे. धर्मो
अनंत होवा छतां तेने धरनार एक ज द्रव्य छे. जगतमां बधा थईने एक ज आत्मा छे–एम नथी, जगतमां
भिन्न भिन्न अनंत आत्माओ छे, ने ते दरेक आत्मा अनंत धर्मवाळो छे. दरेक आत्मा अनंत धर्मोना
आधाररूप एक द्रव्य छे, केम के अनंत धर्मोने जाणनार जे अनंत नयो छे तेमां व्यापनारा एक
श्रुतज्ञानप्रमाणपूर्वक स्वानुभवथी आत्मा जणाय छे.
एक आत्मपदार्थमां अनंत धर्मो छे, ने तेने जाणनारा श्रुतप्रमाणमां अनंत नयो छे. एकेक धर्मने
जाणनार एकेक नय, ए रीते अनंत धर्मने जाणनारा अनंत नयो छे; जेम अनंत धर्मो एक आत्मद्रव्यमां
समाई जाय छे तेम अनंत नयो एक श्रुतज्ञानमां समाई जाय छे. जेम पोताना अनंत धर्मोमां एक द्रव्य व्याप्युं
छे तेम ते धर्मोने जाणनारा अनंता नयोमां एक श्रुतज्ञानप्रमाण व्याप्युं छे. कोई कहे के छद्मस्थने पोताना
आत्मानी खबर न पडे,–तो ते वात खोटी छे. अहीं तो कह्युं के अनंतनयोवाळा श्रुतज्ञानथी अनंतधर्मोवाळो
आखो आत्मा जणाई जाय छे, स्वसन्मुख वळता श्रुतज्ञानथी आखो आत्मा स्वानुभवमां आवी जाय छे.
आत्मा केवो छे? अने ते कई रीते जणाय? ए बंने वात आमां आवी जाय छे.
आत्मा केवो छे?– के आत्मा खरेखर चैतन्य सामान्यथी व्याप्त अनंतधर्मोवाळुं एक द्रव्य छे.
ते आत्मा कई रीते जणाय छे?–तो कह्युं के आत्माना अनंतधर्मोने जाणनारा जे अनंत नयो, तेमां
व्याप्त श्रुतज्ञानप्रमाणवडे स्वानुभवथी आत्मद्रव्य जणाय छे.
अहीं अनंत धर्मात्मक पोतानो आत्मा ते प्रमेय छे ने अनंत नयात्मकश्रुतज्ञान ते प्रमाण छे; एवा
प्रमाणवडे स्वानुभवथी पोतानो आत्मा प्रमेय थाय