
वळता श्रुतज्ञानथी ज आवो आत्मा प्रमेय थाय छे. अनंत धर्मवाळा आत्माने जेम छे तेम न कबूले तो तेनुं
निर्विकल्प स्वसंवेदन थाय नहि. आवा आत्माने स्वानुभवथी जेम छे तेम जाणवो ते धर्म छे.
रहेला छे, पण अहीं तो शिष्ये ‘आत्मा केवो छे’ एम पूछयुं छे एटले आत्माना धर्मनी वात छे. आत्मामां
ज्ञान, दर्शन, अस्ति, नास्ति, नित्य, अनित्य, पुरुषार्थ, नियत वगेरे अनंत स्वभावो रहेला छे ते बधाय तेना
धर्मो छे, पोताना ते धर्मोथी धर्मी एवो आत्मा ओळखाय छे. अहीं धर्म एटले सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप जे
मोक्षमार्ग छे तेनुं वर्णन नथी पण वस्तु अनंतधर्म– स्वरूप छे तेनुं आ वर्णन छे. आवा अनंतधर्मोवाळा
आत्माने जाणीने तेनी रुचि अने तेमां एकाग्रता करतां जे सम्यक्दर्शन–ज्ञान–चारित्र प्रगटे छे ते मोक्षमार्गरूप
धर्म छे.
सम्यग्ज्ञान नवुं प्रगटे छे. वळी वस्तुमां अनंत धर्मो कांई एक पछी एक नथी पण बधा धर्मो एक साथे ज छे,
ने ते अनंत धर्मो एक साथे ज्ञानमां आवी जाय छे, अनंत धर्मोने जाणवा माटे अनंत काळ नथी लागतो. ज्यां
श्रुतज्ञानने स्वसन्मुख वाळीने अंदर स्वभावमां एकाग्र कर्युं त्यां अनंत धर्मोनो चैतन्य– पिंडलो स्वसंवेदनमां
आवी जाय छे. एकेक धर्मने जुदो पाडीने अनंत धर्मो छद्मस्थने भले न जणाय पण ज्यां अंर्तस्वभावमां
वळ्यो त्यां अनंत गुणनो पिंड भगवान आत्मा श्रुतज्ञानना स्वसंवेदनमां आवी जाय छे. अनंतधर्मोवाळा
आत्मानो अनुभव करवा माटे अनंतधर्मना भेद पाडीने जुदा जुदा विकल्प करवा पडता नथी केम के अनंत
धर्मोने धारण करनार धर्मी एक छे. जेम आत्मा अनंत धर्मोनो स्वामी एक छे तेम तेने जाणनार श्रुतज्ञान पण
अनंत नयोनुं स्वामी एक छे. एटले एक धर्मने जुदो पाडीने भेदना विकल्प वडे आखो आत्मा प्रमेय थतो
नथी, ने आखा आत्माने प्रमेय कर्या विना ज्ञान प्रमाण थतुं नथी. ज्ञानमां अनंतनयो छे, ने पदार्थमां अनंत
प्रकारना धर्मो छे; ज्ञान अनंत नयोवाळुं होवा छतां प्रमाणपणे ते एक छे, तेम ज पदार्थ अनंत धर्मोवाळो होवा
छतां वस्तुपणे ते एक छे, आवा प्रमाण अने प्रमेयनी एकता थतां एटले के श्रुतज्ञान प्रमाण स्वसन्मुख थईने
अभेद आत्मामां वळतां आत्मानो स्वानुभव थाय छे,–आत्मा जणाय छे.
आवती होय परंतु तेनो कोई पण गुण–पर्याय के धर्म परने लीधे नथी. नित्य–अनित्यपणुं के गतिस्थिति वगेरे
धर्मो तेना पोताना छे, ते धर्मोने पण आत्मा ज धारी राखे छे, कांई काळ वगेरे निमित्तोने लीधे ते धर्मो नथी.
अशुद्धतामां कर्म निमित्त छे माटे ते अशुद्धता कर्मने लईने थाय छे–एम नथी, अशुद्धता पण पोतानी ज
पर्यायनो धर्म छे. आत्मानो एकेय धर्म परना आधारे नथी. शुद्धता के अशुद्धता ते रूपे थनार पोते ज छे. कर्मने
लीधे अशुद्धता थाय एम नथी, अशुद्धता थवानी लायकातरूप धर्म पण पोतानो छे, काळने लीधे आत्मा
परिणमे–एम नथी, परिणमवानो धर्म पोतानो छे, धर्मास्तिकायने लीधे आत्मा गति करे–एम नथी, गति
करवारूप धर्म पोतानो छे, तेम ज अधर्मास्तिकायने लीधे आत्मा स्थिति पामे–एम नथी, स्थिर रहेवारूप धर्म
पण तेनो पोतानो ज छे; ए प्रमाणे पोताना बधा धर्मोनो धणी आत्मा पोते ज छे. काळ वगेरे बीजा निमित्तो
जगतमां भले हो, पण आत्माना धर्मो कांई निमित्तना आधारे नथी, धर्मो तो आत्मद्रव्यना ज आधारे छे.
सिद्ध भगवानने समये समये परिणमन थाय छे, तेमनो ते परिणमनधर्म कांई काळद्रव्यने आधीन नथी, पण
परिणमन थवानो ते आत्मानो पोतानो अनादिअनंत धर्म छे. ए प्रमाणे