
एक पडखुं ते नय छे; प्रमाण आखी वस्तुने जाणे छे ने नय एकेक धर्मने जाणे छे. अहीं तो, जे नय जे धर्मने
जाणे छे ते नय ते धर्ममां व्यापी जाय छे– एम कहीने आचार्यदेव नयने अने नयना विषयने अभेद बतावे छे.
जे धर्मनी सन्मुख थईने तेने जे नय जाणे छे ते धर्मनी साथे ते नय अभेद थई जाय छे एटले पोतामां नय
अने नयनो विषय एक थई जाय छे.
थाय, धर्मास्तिकायने लीधे जीव–पुद्गल गति करे, काळने लीधे वस्तु परिणमे,–एम निमित्तथी गमे तेटला कथन
कर्यां होय, परंतु एम समजवुं के ते ते प्रकारनो धर्म वस्तुनो पोतानो ज छे, निमित्तने लीधे तेनो धर्म नथी.
कोई वस्तुनो कोई धर्म बीजी वस्तुने लीधे होतो नथी, दरेक वस्तु पोते ज पोताना अनंत धर्मोवाळी छे. एकेक
आत्मा पोते पोताना अनंत धर्मोनो स्वामी छे.
लख्युं ज न होय तो तेम कहेवाय नहि, थोडीक मुदनी बाबत लखी होय तो पछी ‘थोडुं लख्युं घणुं करीने
जाणजो’ एम कहेवाय. तेम अहीं आत्माना अनंत धर्मो छे तेमांथी केटलाक मुदना धर्मो आचार्यदेवे वर्णव्या छे,
ते प्रयोजनभूत धर्मोने जाणीने पछी ‘आवा बीजा अनंत धर्मो सर्वज्ञदेवे जाण्या ते प्रमाणे छे’ एम प्रतीत करे
तो ते बराबर छे; परंतु आत्मा शुं ने तेना धर्मो शुं ते कांई जाणे नहि, प्रयोजनभूत वस्तुनो निर्णय करे नहि
अने भगवाने कह्युं ते साचुं–एम मात्र ओघिकपणे मानी ल्ये तो तेथी पोताने कांई लाभ थाय नहि.
ज्ञानमां जणाय छे. जो वस्तुमां आवुं वाच्य न होय तो तेनुं कथन पण न होय अने तेने जाणनारुं ज्ञान पण न
होय. माटे वस्तुमां अनंत धर्मो, ते धर्मोने जाणनारुं ज्ञान अने तेनुं कथन–ए त्रणे सत् छे, खरेखर छे.
त्यां पण ते मापने जाणनारुं तो ज्ञान ज छे, तेम आत्माना अनंत धर्मोने जाणनारुं–आत्मानुं माप करनारुं
ज्ञान ते प्रमाणे छे. अनंत धर्मोने कहेनारी वाणी निमित्त छे पण ते वाणीने आत्माना धर्मोनी खबर नथी,
वाणी अने धर्म ते बंनेने जाणनारुं तो ज्ञान छे, ते ज्ञान ज प्रमाण छे.
धर्मोनो ढगलो पड्यो छे, अंर्तमुख थईने तेनुं माप करवानी तने होंश आवे छे? जो तेनुं माप करवुं होय तो
ते तारा श्रुतज्ञानप्रमाणथी ज थाय छे, कोई पर निमित्तथी के रागथी तेनुं माप थतुं नथी, पण ज्ञानने अंतरमां
वाळे तो ते ज्ञानथी ज आत्मानुं माप थाय छे. अनंतधर्मोनी मूडी दरेक आत्मामां सदाय पडी छे पण अंतर्मुख
थईने तेने जाणवानी अज्ञानीए कदी दरकार करी नथी. आत्माना अनंत धर्मोमां जराय ओछुं मानशे तो ते
नहि पालवे, तेम ज ते मूडीने मापवामां कोई परनी मदद काम नहि आवे. जेम घरनी घणी मूडीने पटारामां
मूकवी होय तो त्यां बहारना मजूर पासे ते नथी मुकावतो पण घरना माणस पासे ज ते मुकावे छे, तेम
आत्माना स्वभावघरनी जे बेहद मूडी