
यथार्थ माप अने स्वानुभव थाय छे. पोताना अनंत धर्मोने जाणनारुं ज्ञान पोतानी पासे ज छे, ते ज्ञानने
अंर्तस्वभावमां वाळे तो ज आत्मा जणाय, तेमां बीजा कोईनुं ज्ञान पोताने काम न आवे. ‘गुरुनुं ज्ञान तो
अमारा आत्माने जाणे छे ने? ’ –एम कोई कहे तो तेनो खुलासो: गुरुनुं ज्ञान बीजाना आत्माने पण जाणे छे
ए खरुं, परंतु ते गुरुनुं ज्ञान तो गुरु पासे रह्युं, तेमां बीजाने शो लाभ? गुरुनुं ज्ञान तेमना पोताना
आत्माने ज स्वद्रव्यपणे जाणे छे, तेमना ज्ञानमां आ आत्मा तो परद्रव्यपणे जणाय छे, तेओ कांई आ
आत्माना धर्मोने स्वामी तरीके जाणता नथी, तेमना पोताना आत्माना धर्मोने ज स्वामी तरीके तेओ जाणे छे.
तेमनी जेम आ आत्मा पण जो पोते पोताना ज्ञानने अंतरमां वाळे तो ते ज्ञान पोताना अनंत धर्मोने स्वामी
तरीके जाणे छे एटले के पोते पोताना आत्माने स्वद्रव्य तरीके जाणे छे, ने ते ज्ञान ज पोताने परमानंदनुं कारण
थाय छे. आ सिवाय, पोताना आत्माने स्वद्रव्यपणे जाणवा माटे कोई परनुं ज्ञान काम आवतुं नथी. प्रमेय पण
पोते ज छे ने प्रमाणज्ञान पण पोतानुं ज छे.
नयो अनंत छे पण प्रमाण एक ज छे.
स्वानुभववडे ज आत्मद्रव्य पोताने प्रमेय थाय छे. अनंत धर्मो अने अनंत नयो छे–एम बताव्युं खरुं, पण
अनुभवमां ते धर्मोनो के नयोनो भेद रहेतो नथी, अभेद थई जाय छे; एक अभेद श्रुतप्रमाण स्वानुभवथी
आखी वस्तुने जाणे छे. श्रुतज्ञानमां अनंतनय तरीके भेद छे पण प्रमाण तरीके ते अभेद छे; तेम वस्तुमां
अनंत धर्म तरीके भेद छे ने वस्तु तरीके एक अभेद छे. जेम वस्तुमां अभेद ने भेद एवा बे प्रकार पडे छे तेम
तेने जाणनारा ज्ञानमां पण अभेद ने भेद (एटले प्रमाण अने नय) एवा बे प्रकार छद्मस्थने पडे छे.
ते जीव अनंतधर्मवाळा आत्माने समजशे अने अनंत धर्मोमां जेटला अव्यक्त–शक्तिरूप छे ते बधाय तेने पूर्ण
व्यक्त थई जशे. अनंतधर्मवाळा आत्मानी रुचि–प्रतीति करी तेने केवळज्ञानादि बधाय धर्म खीली गया विना
रहे ज नहि. केवळज्ञान पूरुं प्रत्यक्षप्रमाण छे, श्रुतज्ञान पूरुं प्रत्यक्ष नथी, तोपण केवळज्ञानमां जेवो आत्मा
जणायो तेवो ज आत्मा श्रुतज्ञानप्रमाणथी परोक्ष जणाय छे. श्रुतज्ञान परोक्ष होवा छतां ते संदेहवाळुं नथी पण
निःसंदेह छे. श्रुतज्ञान ते परोक्षप्रमाण छे ते ज्ञानने अंतरमां वाळीने जेणे अनंतधर्मवाळा आत्माने स्वीकार्यो
तेने तेमां एकाग्रता थईने केवळज्ञानरूप प्रत्यक्षप्रमाण खीली जशे अने अनंत धर्मवाळी वस्तु पण तेना
ज्ञानमां प्रत्यक्ष थई जशे, एटले स्वज्ञेय अने ज्ञान बंने पूरां थई जशे.
श्रुतज्ञान परोक्ष जाणे छे, परोक्ष होवा छतां ते ज्ञान पण प्रमाण छे–निःसंदेहरूप छे. ते परोक्षप्रमाणथी जेणे
पोताना आत्माने अनुभव्यो तेने पूरुं प्रत्यक्ष केवळज्ञानप्रमाण थया विना रहेशे नहि.
जाण्यो तेवा यथार्थ आत्माने ते पण परोक्षपणे बराबर जाणे छे. साधकने एवा श्रुतज्ञानप्रमाणथी स्वानुभव
वडे आत्मा जणाय छे.
आत्मानी प्राप्ति थती नथी. जे वस्तुने प्राप्त