
माटे पहेलांं तेनुं यथार्थ ज्ञान करवुं जोईए. आत्मानुं ज्ञान कई रीते थाय छे तेनुं आ वर्णन चाले छे. जे
श्रुतज्ञान अनंत नयोवाळुं छे एवा श्रुतज्ञानपूर्वक स्वानुभवथी आत्मा जणाय छे.
ल्ये तो तेणे मानेलो आत्मा पूरो (अनंत धर्मात्मक) न थाय अने तेनुं श्रुतज्ञान पण अनंत नयोवाळुं न थाय
एटले के प्रमाणज्ञान न थाय पण मिथ्याज्ञान ज रहे. माटे अहीं एम कह्युं के अनंत नयवाळा श्रुतज्ञानप्रमाणथी
स्वानुभववडे आत्मा जणाय छे. एवा श्रुतज्ञानने के आत्माना अनंतधर्मोने जे न स्वीकारे तेने आत्मानो
स्वानुभव कदी साचो होतो नथी.
रीते पदार्थना धर्मो, तेने जाणनारुं ज्ञान अने तेने कहेनारी वाणी–ए बधाने जो न कबूले तो श्रुतज्ञान प्रमाण
थईने आत्मानो अनुभव थाय नहीं. आखा आत्माना स्वानुभव वगर तेना एकेक अंशनुं–एकेक धर्मनुं–पण
साचुं ज्ञान थाय नहि, अने तेने सम्यक्नय पण होय नहि; एटले तेनुं ज्ञान खोटुं, तेनी वाणी खोटी, अने तेणे
मानेलो धर्म पण खोटो छे. अहीं तो साधक जीवनी वात छे. साधक जीव अनंत धर्मवाळा आत्माने श्रुतज्ञान
प्रमाणथी अनुभवे छे ने तेने ज सम्यक् नय होय छे. ते नय–प्रमाणथी आत्माने केवो जाणे छे तेनुं अहीं वर्णन
करे छे. आ नयो साधकने होय छे, अज्ञानीने के केवळीने नय होता नथी. केवळीने तो केवळज्ञानमां आत्मा पूरो
प्रत्यक्ष जणाई गयो छे ने पूर्णता थई गई छे एटले तेमने हवे नयथी कांई साधवानुं रह्युं नथी, ने अज्ञानीने
तो वस्तुनुं भान ज नथी एटले तेने पण नय होता नथी. नय ते श्रुतज्ञानप्रमाणनो अंश छे, ते साधकने ज
होय छे.
नथी; अवधि अने मनःपर्ययज्ञाननो विषय पर पदार्थ छे एटले ते पण साधक थता नथी, मतिज्ञान सामान्य
रूपे जाणे छे एटले तेमां नय पडता नथी, श्रुतज्ञान प्रमाण ज अनंत धर्मवाळा आत्माने जाणे छे, ने ते
प्रमाणथी ज आत्मानो स्वानुभव थाय छे. ते श्रुतज्ञानमां नय होय छे.
शकाय नहि, वाणीमां तो अमुक ज आवे. अहीं ४७ नयथी ४७ धर्मो कहीने आत्मद्रव्यनुं वर्णन कर्युं छे पण तेमां
बीजा अनंता धर्मो पण साथे आवी ज जाय छे. नयना समूहवडे आत्मा केवो जणाय छे तेनुं आ वर्णन छे.
बधा नयोनो समूह ते प्रमाण; अने बधा धर्मोनो समूह ते प्रमेय वस्तु. एवा प्रमाणपूर्वक प्रमेय तरफ ढळतां
स्वानुभवथी आत्मा जणाय छे.
आधारे ज दरेक धर्म रहेल छे. एटले आखो धर्मी द्रष्टिमां आव्या वगर तेना एकेक धर्मनी कबूलात यथार्थ होय
नहि. नयथी एकेक धर्मने मुख्य