Atmadharma magazine - Ank 094
(Year 8 - Vir Nirvana Samvat 2477, A.D. 1951)
(Devanagari transliteration).

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: श्रावण : २४७७ : २१९ :
करवी होय तेने पहेलांं बराबर ओळखवी तो जोईए ने! भगवान आत्मानी प्राप्ति करीने परमात्मा थवा
माटे पहेलांं तेनुं यथार्थ ज्ञान करवुं जोईए. आत्मानुं ज्ञान कई रीते थाय छे तेनुं आ वर्णन चाले छे. जे
श्रुतज्ञान अनंत नयोवाळुं छे एवा श्रुतज्ञानपूर्वक स्वानुभवथी आत्मा जणाय छे.
श्रुतज्ञान अनंत नयोवाळुं क्यारे थाय?–के अनंत धर्मोवाळा एक आत्माने जाणे त्यारे. जो एम न जाणे
अने आत्माने सर्वथा नित्य, सर्वथा अनित्य, सर्वथा शुद्ध के सर्वथा अशुद्ध ईत्यादि रूपे एक ज धर्मवाळो मानी
ल्ये तो तेणे मानेलो आत्मा पूरो (अनंत धर्मात्मक) न थाय अने तेनुं श्रुतज्ञान पण अनंत नयोवाळुं न थाय
एटले के प्रमाणज्ञान न थाय पण मिथ्याज्ञान ज रहे. माटे अहीं एम कह्युं के अनंत नयवाळा श्रुतज्ञानप्रमाणथी
स्वानुभववडे आत्मा जणाय छे. एवा श्रुतज्ञानने के आत्माना अनंतधर्मोने जे न स्वीकारे तेने आत्मानो
स्वानुभव कदी साचो होतो नथी.
आ जगतमां अनंत आत्माओ भिन्न–भिन्न छे, एकेक आत्मामां अनंत धर्मो छे, ते एकेक धर्मने
जाणनार एकेक नय छे; एवा अनंत नयोवाळुं एक श्रुतज्ञान प्रमाण छे, ने ते धर्मोने कहेनारी वाणी पण छे; ए
रीते पदार्थना धर्मो, तेने जाणनारुं ज्ञान अने तेने कहेनारी वाणी–ए बधाने जो न कबूले तो श्रुतज्ञान प्रमाण
थईने आत्मानो अनुभव थाय नहीं. आखा आत्माना स्वानुभव वगर तेना एकेक अंशनुं–एकेक धर्मनुं–पण
साचुं ज्ञान थाय नहि, अने तेने सम्यक्नय पण होय नहि; एटले तेनुं ज्ञान खोटुं, तेनी वाणी खोटी, अने तेणे
मानेलो धर्म पण खोटो छे. अहीं तो साधक जीवनी वात छे. साधक जीव अनंत धर्मवाळा आत्माने श्रुतज्ञान
प्रमाणथी अनुभवे छे ने तेने ज सम्यक् नय होय छे. ते नय–प्रमाणथी आत्माने केवो जाणे छे तेनुं अहीं वर्णन
करे छे. आ नयो साधकने होय छे, अज्ञानीने के केवळीने नय होता नथी. केवळीने तो केवळज्ञानमां आत्मा पूरो
प्रत्यक्ष जणाई गयो छे ने पूर्णता थई गई छे एटले तेमने हवे नयथी कांई साधवानुं रह्युं नथी, ने अज्ञानीने
तो वस्तुनुं भान ज नथी एटले तेने पण नय होता नथी. नय ते श्रुतज्ञानप्रमाणनो अंश छे, ते साधकने ज
होय छे.
आत्माना ज्ञाननी पांच प्रकारनी अवस्था छे: मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्ययज्ञान अने
केवळज्ञान. तेमांथी मुख्यपणे श्रुतज्ञान ज आत्मानुं साधक थई शके छे. केम के केवळज्ञान तो छद्मस्थ जीवने होतुं
नथी; अवधि अने मनःपर्ययज्ञाननो विषय पर पदार्थ छे एटले ते पण साधक थता नथी, मतिज्ञान सामान्य
रूपे जाणे छे एटले तेमां नय पडता नथी, श्रुतज्ञान प्रमाण ज अनंत धर्मवाळा आत्माने जाणे छे, ने ते
प्रमाणथी ज आत्मानो स्वानुभव थाय छे. ते श्रुतज्ञानमां नय होय छे.
अनंत धर्मोवाळो आत्मा छे ते प्रमेय छे ने अनंत नयोवाळुं श्रुतज्ञान छे ते प्रमाण छे. तेमांथी हवे ४७
नयोद्वारा आत्माना ४७ धर्मोनुं वर्णन करशे. वस्तुमां अनंत धर्मो छे ते बधाय वाणीथी भिन्न भिन्न वर्णवी
शकाय नहि, वाणीमां तो अमुक ज आवे. अहीं ४७ नयथी ४७ धर्मो कहीने आत्मद्रव्यनुं वर्णन कर्युं छे पण तेमां
बीजा अनंता धर्मो पण साथे आवी ज जाय छे. नयना समूहवडे आत्मा केवो जणाय छे तेनुं आ वर्णन छे.
बधा नयोनो समूह ते प्रमाण; अने बधा धर्मोनो समूह ते प्रमेय वस्तु. एवा प्रमाणपूर्वक प्रमेय तरफ ढळतां
स्वानुभवथी आत्मा जणाय छे.
हे प्रभो! आ आत्मा केवो छे? एम शिष्ये पूछयुं हतुं तेना उत्तरमां आचार्यदेवे पहेलांं तो टूंकामां कह्युं के
आत्मा अनंतधर्मोवाळुं एक द्रव्य छे अने ते अनंत नयोवाळा श्रुतज्ञानप्रमाणथी स्वानुभववडे जणाय छे.
हवे आचार्यदेव ४७ नयोथी आत्मानुं वर्णन करे छे. अहीं एकेक नयथी एकेक धर्मनुं वर्णन छे पण तेमां
पूरुं प्रमाण अने पूरुं प्रमेय साथे ज आवी जाय छे.
× × ×
आत्माना कोई पण धर्मने कबूलनार आत्मद्रव्य सामे जोईने ज ते धर्मने स्वीकारे छे,–नहि के पर सामे;
केम के आत्माना अनंत धर्मोमांथी कोई पण धर्म परना आधारे नथी पण अनंत धर्मना पिंडरूप आत्मद्रव्यना
आधारे ज दरेक धर्म रहेल छे. एटले आखो धर्मी द्रष्टिमां आव्या वगर तेना एकेक धर्मनी कबूलात यथार्थ होय
नहि. नयथी एकेक धर्मने मुख्य