Atmadharma magazine - Ank 094
(Year 8 - Vir Nirvana Samvat 2477, A.D. 1951)
(Devanagari transliteration).

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: २२० : : आत्मधर्म : ९४
करीने जोनार गौणपणे अनंत धर्मवाळी आखी वस्तुने पण स्वीकारे छे, केम के धर्म तो वस्तुनो छे. एक धर्म
कांई वस्तुथी जुदो पडीने नयनो विषय थतो नथी, माटे कोई पण नयथी एक धर्मने मुख्य करीने जोनारनी द्रष्टि
पण एकला धर्म उपर होती नथी. धर्म तो धर्मी एवी अखंड वस्तुना आधारे रहेलो छे; माटे तेना उपर ज द्रष्टि
राखीने एकेक धर्मनुं साचुं ज्ञान थाय छे. बधाय नयोना वर्णनमां आ वात खास ध्यानमां राखवी.
× × ×
[१] द्रव्यनये आत्मानुं वर्णन
ते अनंतधर्मात्मक आत्मद्रव्य द्रव्यनये, पटमात्रनी माफक, चिन्मात्र छे.
अनंत धर्मात्मक आखुं आत्मद्रव्य छे ते प्रमाणनो विषय छे अने नयथी जोतां ते ज आत्मद्रव्य एक
धर्मात्मक देखाय छे. नय एटले ज्ञाननुं पडखुं. वस्तुना सामान्य पडखाने जाणनारुं ज्ञान ते द्रव्यनय छे. जेम
वस्त्रमां केटला ताणावाणा छे एम ताणावाणानो भेद पाड्या वगर एक वस्त्र तरीके ज तेने जाणवुं के आ वस्त्र
छे, तेम आत्मद्रव्यमां अनंत गुण–पर्यायना भेदोने गौण करीने आत्मा चिन्मात्र द्रव्य छे एम सामान्यपणे
लक्षमां लेवुं तेनुं नाम द्रव्यनय छे. आत्मामां तो एक साथे अनंत धर्मो छे पण तेमांथी ‘आत्मा चैतन्यमात्र
द्रव्य छे’ एवा धर्मनी मुख्यताथी आत्माने लक्षमां लेवो तेनुं नाम द्रव्यनय छे. ते द्रव्यनयथी जोतां आत्मा
चैतन्यमात्र छे.
आचार्यदेवे बधा बोलमां दाखलो आपीने समजाव्युं छे. अहीं वस्त्रनो दाखलो आप्यो छे. जेम वस्त्रमां
केटला ताणा, केटलुं लांबुं–पहोळुं के केवो रंग– एवा कोई भेदने लक्षमां न लेतां एकरूप सामान्य वस्त्र तरीके
जोतां ‘आ वस्त्र छे’ एम जणाय छे, तेम अनंत धर्मोवाळा आत्माने द्रव्यनयथी जोतां सिद्ध के संसारी, साधक
के बाधक एवा कोई पर्यायभेदो के दर्शन–ज्ञान–चारित्र एवा गुणभेदो गौण करीने एकरूप सामान्य चैतन्यरूपे
आत्मा जणाय छे. आत्मामां गुण–पर्यायना भेद पाड्या वगर सामान्यपणे जोतां ते चैतन्यमात्र द्रव्य छे;
द्रव्यनयथी आवो आत्मा प्रमेय थाय छे. आ प्रमाणे आत्माना धर्मने जाणीने श्रुतज्ञानने प्रमाण करी स्वानुभव
करे तो ज अनंतधर्मात्मक आत्मा जेवो छे तेवो प्रमेय थाय छे.
“आटला बधा नयोथी आत्माने जाणवानुं शुं काम छे?–फक्त ‘आत्मा छे’ एम जाणी लईए तो न
चाले?’एक कोई पूछे तो तेनो उत्तर: भाई! आत्मा छे एम ओघिकपणे तो बधा कहे छे पण आत्मामां जेवा
अनंत धर्मो छे तेवा धर्मोथी तेने ओळखे तो ज आत्माने जाण्यो कहेवाय. ‘आत्मा छे’ एम कहे पण तेना
अनंत धर्मो जे रीते छे ते रीते न जाणे तो तेणे आत्माने जाण्यो न कहेवाय. घणा लोको आत्मा छे एम कहे छे
पण तेनामां अनंत धर्मो छे एम मानता नथी, कां तो सर्वथा एकांत नित्य, के एकांत अनित्य, एकांत शुद्ध के
एकांत अशुद्ध माने छे; तेथी अहीं आचार्यदेवे अनेक नयोथी आत्माना धर्मोनुं वर्णन करीने वस्तुस्वरूप घणुं
स्पष्ट कर्युं छे.
अन्वेषण काळे एटले के वस्तुस्वरूपनो निर्णय करवा माटे आ नयो कार्यकारी छे. आ नयोथी वस्तुनो निर्णय
करवो ते ज्ञाननी निर्मळतानुं कारण छे.
आत्मा पोताना अनंत धर्मोथी ने परना अभावथी टकेलुं द्रव्य छे. जो आत्मा अनंत धर्मवाळो न होय
तो ते टकीने पलटे केम? परथी भिन्न स्वपणे रही शके केम? जो आत्मामां ‘नित्य’ धर्म ज होय ने ‘अनित्य’
धर्म न होय तो ते पलटी ज न शके; जो ‘अनित्य’ धर्म ज होय अने ‘नित्य’ धर्म न होय तो ते कायम टकी न
शके, पलटतां तेनो नाश ज थई जाय; वळी आत्मामां अस्ति धर्म ज होय ने नास्ति–धर्म न होय तो ते पररूपे
पण थई जाय. ए रीते नित्य–अनित्य, अस्ति–नास्ति वगेरे अनंतधर्मो आत्मामां एक साथे न होय तो
आत्मवस्तु ज सिद्ध न थाय. अस्ति–नास्ति, द्रव्य–पर्याय वगेरे अनंत धर्मो वगर आत्मा रही ज न शके. अने
तेने जाणनारुं ज्ञान पण जो अनंत नयोवाळुं न होय तो ते अनंत धर्मोने जाणी न शके. अनंतधर्मात्मक एक
आत्माने अनंत नयात्मक एक ज्ञानथी जाणे तो ज आत्मा जणाय. आखा अनंतधर्मात्मक पदार्थनुं ज्ञान ते
प्रमाण छे,