Atmadharma magazine - Ank 094
(Year 8 - Vir Nirvana Samvat 2477, A.D. 1951)
(Devanagari transliteration).

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: श्रावण : २४७७ : २२१ :
अने वस्तुना एकेक धर्मने जाणे ते एकेक नय छे. श्रुतज्ञानथी आत्मस्वभावने बराबर जाणीने उपयोगने तेमां
जोडवो तेनुं ज नाम योग छे. श्रुतज्ञानथी जेवो आत्मा छे तेवो जाण्या विना तेनी साथे उपयोगनुं जोडाण थाय
नहि एटले ज्ञान तेमां एकाग्र थई शके नहि, तेमां एकाग्रता वगर तेनुं ध्यान थाय नहि. जाण्या विना ध्यान
कोनुं? पहेलांं प्रमाण वडे आवा आत्माने प्रेमय करे तो ज तेमां एकाग्रतारूप ध्यान थई शके. माटे प्रथम बधा
पडखांथी आत्मानो निर्णय करवो जोईए.
अनादिकाळथी जीवे बधुं कर्युं छे पण पोताना आत्मस्वभावने कदी जाण्यो नथी, एकवार पण जो
आत्माने बराबर जाणे तो तेना परम आनंदनी प्राप्ति थया वगर रहे नहि. आत्मा कोण छे अने ते केम प्राप्त
थाय?–ए जाणवानी जेने जिज्ञासा जागी छे एवा शिष्यना प्रश्ननो आ उत्तर चाले छे. आत्मा केवो छे तेनुं आ
वर्णन चाले छे, तेनी प्राप्तिनो उपाय पछी कहेशे. पहेलांं जेवो छे तेवो आत्मा जाण्या विना तेनी प्राप्ति थाय
नहि.
अनंत धर्मात्मक आत्मद्रव्य कह्युं ते तो सामान्य– विशेषनो पिंड, प्रमाणनो विषय छे, अने अहीं
आत्माने सामान्य चिन्मात्र कह्यो ते द्रव्यनयनो विषय छे, विशेषने गौण करीने एक सामान्य पडखुं छे.
अनंतधर्मात्मक एक आत्मद्रव्य ते प्रमाणनो विषय छे तेनी वात पहेलांं करी, हवे अहीं नयना विषयनुं वर्णन
छे. प्रमाणना विषयरूप जे आखुं आत्मद्रव्य छे तेना एक धर्मने नय जाणे छे, नयनो विषय वस्तुनो एक धर्म
छे. गुण–पर्यायना भेदने गौण करीने, सामान्य चिन्मात्र पडखाथी आत्माने लक्षमां लेवो तेनुं नाम द्रव्यनय छे.
आत्माना अनंत धर्मोमांथी आ एक धर्म छे, तेनी साथे बीजा अनंत धर्मो छे तेने जो न माने तो ज्ञान
प्रमाण थतुं नथी. कोई एम कहे के ‘आत्मा तो चैतन्यमात्र ज छे ने विकार तो परने लीधे थाय छे’–तो एम
माननारे आत्माना बधा धर्मोने मान्या नथी. जेम चैतन्यमात्रपणुं ते आत्मानो एक धर्म छे तेम अवस्थामां
विकार थाय ते पण आत्मानी पर्यायनो धर्म छे; तेने न माने तो प्रमाणज्ञान थाय नहि.
आत्मा चैतन्यमात्र स्वभाव छे–एम जे आत्माना चिन्मात्रधर्मने जाणे ते जीव पोतानुं ज्ञान बहारथी
आववानुं माने नहि, केम के चैतन्यधर्म तो पोतानो छे, तेमांथी ज विशेषज्ञान आवे छे, विशेषज्ञान क्यांय
बहारथी आवतुं नथी. कोई शास्त्रमांथी के वाणीना श्रवणमांथी आत्मानुं ज्ञान आवतुं नथी, ज्ञान तो आत्माना
चैतन्यमात्र धर्ममांथी ज आवे छे, ते धर्म आत्माना पोताना ज आश्रये छे. आत्मानो जे सामान्य
चैतन्यस्वभाव छे ते पोते ज त्रणे काळे विशेषपणे परिणम्ये जाय छे, अज्ञानीने पण तेनो जे सामान्य
चैतन्यस्वभाव छे ते ज विशेषज्ञानपणे परिणम्या करे छे, पण तेने ते सामान्यनी प्रतीत नथी एटले सामान्य
साथे विशेषनी एकता ते नथी करतो पण पर साथे एकता माने छे एटले तेनुं विशेष अयथार्थ थाय छे.
द्रव्यनयथी आत्माने चिन्मात्र कह्यो, आ चिन्मात्रधर्मने क्यां जोवो? – परमां नहि पण आत्मवस्तुमां
जोवो; केम के ते धर्म परमां नथी पण पोतामां ज छे.
प्रश्न:–आत्मा तो सूक्ष्म छे तेने जोवानुं कोई सूक्ष्मदर्शक यंत्र नहि होय?
उत्तर:–आत्माने कई रीते जोवो तेनी ज आ वात चाले छे; श्रुतज्ञानने अंतरमां वाळवुं ते ज आत्माने
जोवानुं सूक्ष्मदर्शक यंत्र छे. आत्मा पोते सूक्ष्म अरूपी वस्तु छे, ते द्रव्य अरूपी, तेना गुणो अरूपी ने तेनी
पर्यायो पण अरूपी छे एटले ते त्रणे सूक्ष्म अने तेने जाणनारुं श्रुतज्ञानप्रमाण ते पण सूक्ष्म छे, आत्मा तरफना
वलणवाळुं ते ज्ञान ज सूक्ष्म आत्माने जोनारुं सूक्ष्मदर्शक यंत्र छे, ए सिवाय ईन्द्रिय वगेरे कोई बाह्य पदार्थोथी
के विकल्पथी आत्मा जणाय तेवो नथी. एकवार यथार्थ सांभळीने आवी वस्तुने समजे तो क्यांय संदेह रहे
नहि. देवाधिदेव सर्वज्ञ परमात्मा एम कहे छे के तारो आत्मा ज तारो चैतन्यदेव छे तुं ज तारा अनंतधर्मने
धरनारो छो, तेने ओळखीने तेनी आराधना कर तो तारी परमात्मदशा प्रगटी जाय.
नय एक धर्मने मुख्य करीने जाणे छे पण वस्तुमां अनंतधर्मो एक साथे ज छे. ज्यां रंग होय त्यां तेनी
साथे ज गंध–रस ने स्पर्श पण होय ज छे. वर्ण–गंध–रस ने स्पर्श ए बधा पुद्गलना धर्मो छे, तेमांथी