
जोडवो तेनुं ज नाम योग छे. श्रुतज्ञानथी जेवो आत्मा छे तेवो जाण्या विना तेनी साथे उपयोगनुं जोडाण थाय
नहि एटले ज्ञान तेमां एकाग्र थई शके नहि, तेमां एकाग्रता वगर तेनुं ध्यान थाय नहि. जाण्या विना ध्यान
कोनुं? पहेलांं प्रमाण वडे आवा आत्माने प्रेमय करे तो ज तेमां एकाग्रतारूप ध्यान थई शके. माटे प्रथम बधा
पडखांथी आत्मानो निर्णय करवो जोईए.
थाय?–ए जाणवानी जेने जिज्ञासा जागी छे एवा शिष्यना प्रश्ननो आ उत्तर चाले छे. आत्मा केवो छे तेनुं आ
वर्णन चाले छे, तेनी प्राप्तिनो उपाय पछी कहेशे. पहेलांं जेवो छे तेवो आत्मा जाण्या विना तेनी प्राप्ति थाय
नहि.
अनंतधर्मात्मक एक आत्मद्रव्य ते प्रमाणनो विषय छे तेनी वात पहेलांं करी, हवे अहीं नयना विषयनुं वर्णन
छे. प्रमाणना विषयरूप जे आखुं आत्मद्रव्य छे तेना एक धर्मने नय जाणे छे, नयनो विषय वस्तुनो एक धर्म
छे. गुण–पर्यायना भेदने गौण करीने, सामान्य चिन्मात्र पडखाथी आत्माने लक्षमां लेवो तेनुं नाम द्रव्यनय छे.
माननारे आत्माना बधा धर्मोने मान्या नथी. जेम चैतन्यमात्रपणुं ते आत्मानो एक धर्म छे तेम अवस्थामां
विकार थाय ते पण आत्मानी पर्यायनो धर्म छे; तेने न माने तो प्रमाणज्ञान थाय नहि.
बहारथी आवतुं नथी. कोई शास्त्रमांथी के वाणीना श्रवणमांथी आत्मानुं ज्ञान आवतुं नथी, ज्ञान तो आत्माना
चैतन्यमात्र धर्ममांथी ज आवे छे, ते धर्म आत्माना पोताना ज आश्रये छे. आत्मानो जे सामान्य
चैतन्यस्वभाव छे ते पोते ज त्रणे काळे विशेषपणे परिणम्ये जाय छे, अज्ञानीने पण तेनो जे सामान्य
चैतन्यस्वभाव छे ते ज विशेषज्ञानपणे परिणम्या करे छे, पण तेने ते सामान्यनी प्रतीत नथी एटले सामान्य
साथे विशेषनी एकता ते नथी करतो पण पर साथे एकता माने छे एटले तेनुं विशेष अयथार्थ थाय छे.
पर्यायो पण अरूपी छे एटले ते त्रणे सूक्ष्म अने तेने जाणनारुं श्रुतज्ञानप्रमाण ते पण सूक्ष्म छे, आत्मा तरफना
वलणवाळुं ते ज्ञान ज सूक्ष्म आत्माने जोनारुं सूक्ष्मदर्शक यंत्र छे, ए सिवाय ईन्द्रिय वगेरे कोई बाह्य पदार्थोथी
के विकल्पथी आत्मा जणाय तेवो नथी. एकवार यथार्थ सांभळीने आवी वस्तुने समजे तो क्यांय संदेह रहे
नहि. देवाधिदेव सर्वज्ञ परमात्मा एम कहे छे के तारो आत्मा ज तारो चैतन्यदेव छे तुं ज तारा अनंतधर्मने
धरनारो छो, तेने ओळखीने तेनी आराधना कर तो तारी परमात्मदशा प्रगटी जाय.