
जाणनार–देखनार स्वभावनो आश्रय करे तो शुद्धोपयोग थाय छे, ते धर्म छे.
कोई होई शके नहि. जो वस्तुनो कर्ता कहो तो ते वस्तु अनित्य ठरे छे, केम के करायेली चीज अनित्य होय छे,
त्रिकाळी वस्तुने करी शकाती नथी. कार्य त्रिकाळी वस्तु नथी, पण वस्तुनी अवस्था छे. दरेक समये पदार्थनी नवी
नवी अवस्था थाय छे, तेनो कर्ता ते पदार्थ पोते छे. आत्मा अनादिअनंत पदार्थ छे ने पोतानी शुद्ध के अशुद्ध
अवस्थाने पोते ज कर्ता छे.
प्रतापवाळो छे, ते आत्मानो आश्रय करे तो शुद्धभाव थाय छे.
कोई वार तीव्र उदय होय छे ने कोई वार मंद उदय होय छे, ते वखते आत्मा पोताना स्वभावने न अनुसरतां
जो कर्मना उदयने अनुसरीने परिणमे तो तेने विकार थाय छे. अने जो पोताना स्वभावने अनुसरीने परिणमे
तो विकार थतो नथी. पोतानी अवस्थामां स्वभावने भूलीने के स्वभावमां अस्थिर थईने परसन्मुख परिणमे
ते अशुद्धोपयोग छे. अज्ञानीने तो स्वभावने भूलीने अशुद्ध उपयोग थाय छे. ने ज्ञानीने स्वभावनी श्रद्धा–
ज्ञान टकावी राखीने अस्थिरताथी अशुद्ध उपयोग थाय छे. ज्यां अंदरमां चैतन्यद्रव्यनुं अवलंबन खस्युं त्यां
परद्रव्यनुं अवलंबन आव्या वगर रहेतुं नथी. पुण्य–पापना भाव परद्रव्यना अवलंबने थाय छे अने धर्म
आत्मस्वभावना आश्रये थाय छे.
वर्तमान अवस्थानुं अवलंबन करीने अटके तोपण विकारनी ज उत्पत्ति थाय छे. जो आत्माना अखंड ज्ञान–
स्वभावने ओळखीने तेनुं अवलंबन करे तो तेना आश्रये ज सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप निर्मळ दशा प्रगटे
छे, ते मुक्तिनुं कारण छे. आत्माना अंर्तस्वभावना अवलंबन सिवाय बीजा कोईनुं पण अवलंबन ल्ये तो ते
परद्रव्यानुसार परिणति छे. अने तेनाथी शुभ–अशुभ भावनी उत्पत्ति थाय छे ते बंधननुं कारण छे. अहो,
स्वद्रव्यानुसार परिणति ते धर्म ने परद्रव्यानुसार परिणति ते विकार, आम समजे तो स्व–परनुं भेदज्ञान थया
विना रहे नहि अने ते जीव परद्रव्यानुसार परिणतिने छोडीने स्वद्रव्य तरफ वळ्या वगर रहे नहि.