Atmadharma magazine - Ank 095
(Year 8 - Vir Nirvana Samvat 2477, A.D. 1951)
(Devanagari transliteration).

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: भादरवो : २४७७ : २३३ :
वर्णव्यो. हवे नास्तित्वनयथी जोतां ते ज आत्मा पर चतुष्टयथी नास्तित्वरूप छे–एम कहे छे.
[] नास्तित्वनये आत्मानुं वर्णन
आत्मद्रव्य नास्तित्वनये परद्रव्य क्षेत्र–काळ–भावथी नास्तित्ववाळुं छे;–अलोहमय, दोरी ने कामठाना
अंतराळमां नहि रहेला, संधायेली अवस्थामां नहि रहेला अने अलक्ष्योन्मुख एवा पहेलांनां तीरनी माफक.
अस्तित्व अने नास्तित्व ए बने धर्मो एक ज वस्तुमां एक साथे रहेलां छे; तेथी अस्तित्वधर्मना
वर्णनमां जे तीरनुं द्रष्टांत हतुं ते ज तीर नास्तित्वधर्मना द्रष्टांतमां लीधुं छे. एटले अस्तित्वधर्म जुदी वस्तुनो,
ने नास्तित्वधर्म जुदी वस्तुनो,– एम नथी पण एक ज वस्तुना ते बंने धर्मो छे.
जे तीरने स्वतुष्टयथी अस्तिरूप कह्युं ते ज तीर, अन्य तीरना द्रव्यनी अपेक्षाथी अलोहमय छे, अन्य
तीरना क्षेत्रनी अपेक्षाथी दोरी ने कामठाना वचगाळामां नहि रहेलुं छे, अन्य तीरना काळनी अपेक्षाथी
संधायेली स्थितिमां नहि रहेलुं छे, अने अन्य तीरना भावनी अपेक्षाथी अलक्ष्योन्मुख छे; तेम आत्मा पोताना
स्वचतुष्टयनी अपेक्षाए अस्तिरूप छे ने ते ज आत्मा पर वस्तुना द्रव्य–क्षेत्र–काळ–भावनी अपेक्षाए नास्तिरूप
छे.
आत्मानो जाणनार–देखनार स्वभाव छे, तेनी साथे बीजा अनंत धर्मो छे; ते बधा धर्मोनो पिंड आत्मा
छे. आत्माना अनंत धर्मोमांथी कोईपण धर्म परना आधारे नथी तेम ज परने लीधे नथी, अने पर वस्तुनो
कोई धर्म आत्मामां नथी तेम ज आत्माने लीधे नथी. पोतपोताना अनंतधर्मो दरेक वस्तुमां स्वतंत्र छे. अहीं
तो आत्माने ओळखाववा माटे आत्माना धर्मोनुं वर्णन चाले छे.
आत्मद्रव्यमां अनंत धर्मो छे, ते बधा धर्मोने एक साथे प्रमाण जाणे छे अने नय तेना एकेक धर्मने
मुख्य करीने जाणे छे. वस्तुमां धर्मो अनंत छे तेम तेने जाणनारा नयो पण अनंत छे. तेमांथी द्रव्यनय,
पर्यायनय अने अस्तित्वनय ए त्रण नयथी आत्माना धर्मोनुं वर्णन कर्युं. हवे चोथा नास्तित्वनयथी आत्मा
केवो छे ते वात चाले छे.
जे आत्मद्रव्य पोताना द्रव्य–क्षेत्र–काळ–भावथी अस्तित्ववाळुं छे ते ज आत्मद्रव्य परना द्रव्य–क्षेत्र–
काळ–भावपणे नथी एटले के नास्तित्ववाळुं छे. परथी न होवापणुं ते पण वस्तुनो ज एक अंश छे. वस्तुमां
ज्यां भाव–अंश छे त्यां ज आवो अभाव–अंश छे, ज्यां स्वथी अस्तित्वरूप धर्म छे, त्यां ज परथी नास्तित्वरूप
धर्म पण भेगो ज छे; एक ज अंशीना बे अंशो छे. नास्तित्वधर्म पण पोतानो ज अंश छे. नास्तित्वधर्म पोते
कांई वस्तुमां अभावरूप नथी, पण सत् छे. ते धर्ममां ‘परपणे नथी’ एवी परनी अपेक्षा भले आवे पण ते
नास्तित्वधर्म कांई परना आधारे के परनो नथी, ते धर्म तो वस्तुनो पोतानो ज छे.
आत्मानो नास्तित्वधर्म एम बतावे छे के बधाय पर पदार्थोपणे आत्मा नास्तिरूप छे, एटले पर वस्तु
आत्मामां शुं करे? ने आत्मा कोई परवस्तुमां शुं करे? बे द्रव्योनी वच्चे परस्पर अभावरूप एवी अभेद्य
दीवाल छे के कोई कोईमां कांई करी शके नहि. पर वस्तुना द्रव्य–क्षेत्र–काळ–भाव परमां तेना पोताथी छे, ने
आत्माना द्रव्य–क्षेत्र–काळ–भाव आत्मामां पोताथी छे, एकनी बीजामां नास्ति छे. जे जीव आ वात बराबर
समजे ते पराश्रयनी बुद्धि छोडीने स्वाश्रय तरफ वळ्‌या वगर रहे ज नहि.
कर्मना चतुष्टयपणे कर्मनुं अस्तित्व छे ने तेना चतुष्टयपणे आत्मा नथी, एटले कर्म आत्माने कांई करे
एम बने नहि. तेम शास्त्र के वाणी तेनुं अस्तित्व आत्माथी भिन्न छे, तेना अस्तित्वमां आत्मानुं नास्तित्व छे,
माटे ते शास्त्र के वाणीने लीधे आत्माने ज्ञान थाय एम बनतुं नथी. शास्त्र वगेरे पर वस्तुथी मने ज्ञान थाय
के कर्म वगेरे पर वस्तुथी मारुं ज्ञान अटके एम जेणे मळ्‌युं छे, तेणे परपणे आत्मानुं नास्तित्व छे एम जाण्युं
नथी एटले के आत्माना नास्तित्व धर्मने जाण्यो नथी, तेथी तेणे आत्माने ज जाण्यो नथी. आत्मा केवो छे ते
जाण्या विना धर्म करशे शेमां?
जगतमां एक आत्मा ज छे ने बीजुं बधुं भ्रम छे एम जे माने ते आत्माना नास्तित्वधर्मने मानी शके
नहि. जगतमां आत्मानुं तेम ज आत्मा सिवाय बीजा पदार्थोनुं अस्तित्व छे तेने कबूले तो ज ‘आत्मा ते
परवस्तुपणे नथी’ एम नास्तित्वधर्मने मानी शके.