मान्यता मिथ्या छे केम के बहारनी क्रियामां तो आत्मानुं अस्तित्व ज नथी. अज्ञानी लोको बहारमां फूल–
पाणीने देखीने भडके छे पण अंतरमां परिणाम केवा छे ते ओळखता नथी. भगवाननी परमशांत वीतरागी
प्रतिमा पासे समकीति एकावतारी ईन्द्र–ईन्द्राणी पण भक्तिथी नाची ऊठे छे. जुओ, नंदीश्वर नामना द्वीपमां
रत्नना शाश्वत जिनबिंबो छे, त्यां कारतक, फागण अने अषाड महिनामां सुद ८ थी १५ सुधी देवो भक्ति करवा
जाय छे. जेम आत्मामां परमात्मपणानी शक्ति सदाय छे, अने ते शक्ति प्रगटेला सर्वज्ञ परमात्मा पण
जगतमां सदाय एक पछी एक थया ज करे छे तेम ते परमात्मपणाना प्रतिबिंब तरीके वीतरागी प्रतिमा पण
जगतमां शाश्वत छे. आत्मानो ज्ञायकबिंब स्वभाव अनादिनो छे तेम तेना निमित्त तरीके तेना प्रतिबिंबरूपे
जिनप्रतिमा पण अनादिथी छे. तेमनी पासे जईने ईन्द्र–ईन्द्राणी जेवा एकावतारी जीवो पण भक्तिथी थनगन
करतां नाची ऊठे छे. ते वखते अंदर भान छे के आ मूर्तिनुं अस्तित्व तेना द्रव्य–क्षेत्र–काळ–भावमां छे, शरीरनी
ऊंचुं–नीचुं थवानी क्रियानुं अस्तित्व तेना द्रव्य–क्षेत्र–काळ–भावमां छे. मूर्तिमां के देहनी क्रियामां मारुं अस्तित्व
नथी, मारुं अस्तित्व मारा द्रव्य–क्षेत्र–काळ–भावमां छे. आवा सम्यक्भानमां स्वाश्रये पोतानो स्वकाळ अंशे तो
निर्मळ थयो छे ने अल्पकाळमां द्रव्यनो पूरो आश्रय करतां पूर्ण निर्मळ स्वकाळ तेने प्रगटी जशे एटले ते पोते
परमानंदमय परमात्मा थई जशे. भगवाननी भक्ति वखते, अशुभराग टळीने जे शुभराग थयो ते आत्मानो
स्वकाळ छे, तेमां आत्मानुं अस्तित्व छे पण परनी क्रियामां आत्मानुं अस्तित्व नथी. अष्टप्रकारी पूजा वखते
आठ चीजो भेगी करवानी जे बाह्य क्रिया थाय तेने आत्मानी प्रवृत्ति माने अने ते क्रिया न थाय तेने आत्मानी
निवृत्ति माने, तेने पोताना अने परना भिन्न भिन्न स्वकाळनुं भान नथी, अस्तित्वधर्मनी खबर नथी, तेनुं
ज्ञान मिथ्या छे. मिथ्याज्ञान ते मोटो अधर्म छे.
लोकालोकना बधाय पदार्थो ज्ञानना ज्ञेय थई गया छे, बधा ज्ञेयोने एक साथे ज्ञान स्पष्ट–प्रत्यक्ष जाणी ल्ये छे
एटले ते ज्ञाननो विषय पलटतो नथी अर्थात् ज्ञान एक ज्ञेयमांथी बीजा ज्ञेयमां जतुं नथी ने त्यां राग पण
नथी. नीचली दशामां रागी जीवने पूर्ण ज्ञान स्वभावनुं भान होवा छतां ज्ञान हजी पूरुं प्रगट्युं नथी एटले
तेना ज्ञाननुं लक्ष एक ज्ञेयमांथी बीजा ज्ञेयमां पलटे छे. एक समयमां लोकालोकने जाणवाना सामर्थ्यवाळुं पूरुं
द्रव्य तेनी श्रद्धामां आव्युं छे पण ज्ञान हजी अधूरुं छे एटले एक समयमां लोकालोकने ते जाणी शकतुं नथी
एटले तेना ज्ञाननो उपयोग एक ज्ञेयमांथी बीजा ज्ञेयमां पलटे छे, अने राग पण छे. जे समये जे प्रकारना
रागनी लायकात होय ते समये तेवो ज राग होय अने तेवुं ज निमित्त होय, त्यां ते ते समयना रागने तेम ज
निमित्तने ज्ञान जाणे छे. एटले जेम राग अने निमित्तो जुदा जुदा पलटे छे तेम तेने जाणनारुं ज्ञान पण पलटे
छे. राग अनेक प्रकारनो छे, जे वखते जेवा प्रकारनो राग होय ते वखते तेवा प्रकारना निमित्त उपर ज लक्ष
जाय. भक्तिना भाव वखते भगवान उपर लक्ष जाय पण कांई स्त्री उपर लक्ष न जाय, अने विषयना भाव
वखते स्त्री उपर लक्ष जाय पण कांई सिद्ध उपर लक्ष न जाय, ए रीते जेवो राग होय तेवा निमित्त उपर ज
लक्ष जाय. छतां रागना कारणे निमित्त आवतुं नथी ने निमित्तना कारणे राग थतो नथी. राग अने निमित्त
बंनेनो स्वकाळ जुदो छे. अने ज्ञान पण जे काळे जेवो राग अने जेवुं निमित्त होय तेने जाणे छे. पण राग के
निमित्तने लीधे मने ज्ञान थयुं एम धर्मी मानता नथी, ते काळे तेवो ज राग अने तेवा ज निमित्तने जाणे
एवी मारा स्वपरप्रकाशक ज्ञाननी ज लायकात हती तेथी मने ज्ञान थयुं छे–एम धर्मी जाणे छे, एटले तेने ज्ञान
अने रागनी भिन्नतानुं भान छे तेथी एकत्वबुद्धिनो राग तो तेने थतो ज नथी. आ बधुं समजे त्यारे ज
अस्तित्वधर्मने यथार्थ ओळख्यो कहेवाय. स्वद्रव्य–क्षेत्र–काळ–भावथी आत्मानुं अस्तित्व छे–एम समजे तेमां
आ बधी वात पण भेगी आवी जाय छे.