Atmadharma magazine - Ank 095
(Year 8 - Vir Nirvana Samvat 2477, A.D. 1951)
(Devanagari transliteration).

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: भादरवो : २४७७ : २३१ :
पैसा वगेरेनो संयोग आवे के जाय तेमां एकत्वबुद्धिथी हर्ष के शोक न थाय. मारी एकेक समयनी पर्यायरूप
स्वकाळथी मारुं अस्तित्व छे, द्रव्य त्रिकाळ छे ते कारण छे अने पर्याय एकेक समयनी छे ते कार्य छे, मारा
त्रिकाळी द्रव्यनुं एकेक समयनुं वर्तमान कार्य ते ज मारो स्वकाळ छे. आम समजीने द्रव्यसन्मुख थतां जे
निर्मळपर्याय प्रगटी ते आत्मानो शुद्ध स्वकाळ–सुकाळ छे.
(४) लक्ष्यनी सामे रहेवारूप जे भाव छे ते तीरनो स्वभाव छे, तेम आत्मानो जे शक्तिरूप भाव छे ते
परिणमीने पर्यायनी सन्मुख थाय छे एटले समय समयनी पर्याय थवानी ताकातवाळो जे कायमनो भाव (–
शक्ति) छे ते आत्मानो स्वभाव छे.
ए रीते, अस्तित्वनय एम जाणे छे के मारुं आत्मद्रव्य मारा पोताना द्रव्य–क्षेत्र–काळ–भावथी
अस्तित्ववाळुं छे. आवुं अस्तित्व समजनारने आत्मानी स्वतंत्रतानी प्रतीत थाय छे ने पराधीनतानी द्रष्टि
छूटी जाय छे, एनुं नाम अपूर्व धर्म छे.
पोताना द्रव्य–क्षेत्र–काळ ने भाव ए चारे थईने पोतानुं अस्तित्व छे, एक अस्तित्वधर्ममां ते चारे
प्रकार समाई जाय छे. स्वकाळ एटले पोताना ज्ञान–श्रद्धा वगेरेनी समय–समयनी वर्तमान पर्याय, तेनाथी
आत्मा सत् छे. अशुभ, शुभ के शुद्धभावरूप ते ते समयनी पर्यायमां ते द्रव्य ज रहेलुं छे, ते पोतानो ज स्वकाळ
छे, पोताना स्वकाळ वगरनी वस्तु होती नथी अने वस्तुनो स्वकाळ बीजाथी होतो नथी.
रागपर्याय ते एक समयनो स्वकाळ छे, अने स्वद्रव्यमां तो सिद्धदशाना अनंता स्वकाळ प्रगटवानुं
सामर्थ्य छे; तेथी जो रागना काळे मात्र राग जेटलुं ज आत्मानुं अस्तित्व मानी ल्ये तो बीजा समये निर्मळ
स्वकाळ आवशे क्यांथी? तेम ज ते राग टळीने बीजा समये द्रव्यनुं अस्तित्व रहेशे शेमां? वर्तमान स्वकाळ
पलटीने बीजा समयनो स्वकाळ थाय ते द्रव्यमांथी ज आवे छे अने ते स्वकाळमां पण द्रव्यनुं ज अस्तित्व छे.
माटे जे जीव वर्तमान विकारी स्वकाळ जेटलो ज पोताने माने, अने ते स्वकाळ पलटीने बीजी सवळी पर्यायोनो
स्वकाळ प्रगटे एवुं स्वभावसामर्थ्य छे तेनी प्रतित न करे तो तेणे पोताना पूरा अस्तित्वने ओळख्युं नथी. एक
समयना स्वकाळ जेटलुं ज मारुं आखुं अस्तित्व नथी पण हुं तो त्रणे काळना स्वकाळना सामर्थ्यनो पिंड छुं–
एम समजे तो क्षणिक राग जेटलो ज आत्माने न माने एटले राग साथेनी एकत्वबुद्धि छूटीने त्रिकाळी
चैतन्यस्वभाव तरफ वळ्‌या वगर रहे नहि. प्रथम आवी द्रष्टि थया विना आत्मा तरफ वळीने एकाग्र थवानुं
रहेतुं नथी, एटले तेने मोक्ष थवानुं बनतुं नथी. माटे प्रथम वस्तुनुं स्वरूप समजवुं ते ज मोक्ष मार्गनो उपाय
छे. ते सिवाय कोईपण रीते मोक्षमार्गनी शरूआतनो अंश पण थतो नथी.
श्री जिनेन्द्र भगवंतनी पूजा–भक्ति करवानो जे शुभभाव थयो ते पण आत्मानो स्वकाळ छे, धर्मीने
पण वीतरागी स्वकाळ प्रगट्या पहेलांं तेवो भाव थई जाय छे. त्यां धर्मी जीवने अंतरमां भान छे के मारी
नबळाईनो काळ छे तेथी आ राग थाय छे. स्वभावनी प्रभुतानुं भान छे ने पर्यायना रागनुं पण भान छे.
आ राग मने कोई परना कारणे थतो नथी पण मारा स्वकाळने लीधे थाय छे; अने ते वखते बहारमां जे फूल–
पाणी वगेरेनी क्रिया थाय छे ते मारा स्वकाळथी भिन्न छे, मारा शुभरागने लीधे ते क्रिया थती नथी, आत्मा ते
समयना पोताना स्वकाळना ज्ञानभावने तथा पूजा–भक्तिना भावने करे छे पण फूल–पाणी वगेरे पर द्रव्यने
लेवा–मूकवानी क्रिया आत्मा करतो नथी. पाणी वगेरेनी जे क्रिया थाय तेमां पर वस्तुना द्रव्यक्षेत्र–काळ–भाव छे,
तेमां परनुं अस्तित्व छे, आत्मानुं अस्तित्व तेमां परनुं अस्तित्व छे, आत्मानुं अस्तित्व पोताना द्रव्य–क्षेत्र–
काळ–भावमां छे अने परनुं अस्तित्व परनां द्रव्य–क्षेत्र–काळ भावमां छे, कोईना अस्तित्वने लीधे कोई बीजामां
कांई थतुं नथी. आम होवाथी फूल–पाणी वगेरे पर वस्तुनी क्रिया थाय तेमां आत्मानो आरंभ–समारंभ नथी
ने तेने लीधे आत्माने पुण्य के पाप थतुं नथी. आत्मानो आरंभ समारंभ तो पोताना अस्तित्वमां–पोताना
भावमां छे, पोताना भावमां जो शुभपरिणाम होय तो ते पुण्यनुं कारण छे ने पोताना भावमां जो
अशुभपरिणाम होय तो ते पापनुं कारण छे, तथा शुभ–अशुभथी रहित शुद्धपरिणाम ते धर्म छे. आ रीते
आत्माने पोताना भावनुं ज फळ छे. बहारनी क्रिया थाय तेथी आत्माने