स्वद्रव्य–क्षेत्र–काळ–भावथी अस्ति छे ने परथी नास्ति छे–ए वात यथार्थ समजे तो बधा गोटा नीकळी
परना द्रव्य–क्षेत्र–काळ–भावथी ते नास्तिरूप छे. अहीं आत्माना अस्तित्व धर्मनी वात चाले छे. दरेक वस्तुमां
अस्ति–नास्ति आदि परस्पर विरुद्ध बे शक्तिओ छे, ते वस्तुने सिद्ध करे छे; विरोधी शक्ति एवी न होय के
एकबीजानो निषेध करे. जो एक धर्म बीजा धर्मनो निषेध करे तो तो वस्तु ज अनंतधर्मवाळी सिद्ध न थाय.
अस्तिधर्म अने नास्तिधर्म ए बंने परस्पर विरुद्ध होवा छतां वस्तुमां बंने साथे रहेला छे, एटले वस्तु
अनेकांत स्वभाववाळी छे. धर्म अपेक्षाए विरोध होवा छतां एक वस्तुमां साथे रहेवानी अपेक्षाए तेमने
विरोध नथी. धर्मो अनंत भिन्न भिन्न होवा छतां धर्मी वस्तु एक छे, ते अनंतधर्मवाळी वस्तु प्रमाणनो विषय
अस्तित्वनो निर्णय करे तो केटली निर्भयता थई जाय? जगतनो कोई पण प्रतिकूळ संयोग आवीने मारो नाश
करशे के मने हेरान करशे एवो भय टळी जाय. पोताथी ज आत्मानुं अस्तित्व छे एटले आत्माने बधाय पर
पदार्थो विना ज चाली रह्युं छे. ‘मारे पर विना न चाले’ एवी ऊंधी मान्यता करनार अज्ञानी जीवने पण पर
तो राग नथी, त्रिकाळी तत्त्व तो राग विना ज नभी रह्युं छे. –आम ओळखे तो स्वभावसन्मुख थईने रागथी
जुदो पडी जाय, परथी जुदो तो छे ज. अहीं प्रमाणना विषयभूत आखी वस्तुनुं वर्णन होवाथी रागने पण
आत्मानो धर्म–आत्मानो स्वभाव–कहेशे. पण ते जाणवानुं य फळ तो रागरहित चैतन्य स्वभाव तरफ ढळवुं ते
ज छे. रागरूपे आत्मा परिणमे छे माटे राग पण आत्मानो ज एक धर्म छे. एम जाणनार जीव रागमां
अटकीने ते नथी जाणतो, पण रागनो ज्ञाता रहीने ते जाणे छे. रागने जाणनारुं ज्ञान रागमां एकाकार थईने
नथी जाणतुं पण रागथी जुदुं रहीने जाणे छे.
(२) पोताना असंख्य आत्म–प्रदेशो ते स्वक्षेत्र;
(३) पोतानी वर्तमान समयनी अवस्था ते स्वकाळ; अने
(४) ते ते पर्यायनी सन्मुख झुकेलो जे त्रिकाळी शक्तिरूप भाव ते स्वभाव;
–ए प्रमाणे स्वद्रव्य–स्वक्षेत्र–स्वकाळ अने स्वभावथी आत्मा अस्तित्वरूप छे. आचार्यदेवे तीरनुं द्रष्टांत
सिवाय, आत्मा सौराष्ट्र देशमां रहेलो छे के आत्मा शरीरमां रहेलो छे–एम कहेवुं ते आत्मानुं खरुं क्षेत्र नथी, ते
तो आत्माथी बाह्यक्षेत्र छे. बाह्यक्षत्रमां आत्मानुं अस्तित्व नथी पण पोताना क्षेत्रमां ज आत्मानुं अस्तित्व छे.
बधुं बराबर होय त्यारे लोको कहे छे के हमणां अमारे सारो काळ छे, अने ज्यां कांईक फेरफार थाय त्यां कहे छे
के हमणां अमारे माठो काळ आव्यो छे, पण खरेखर पैसा वगेरे पर वस्तु आवे के जाय तेनी साथे आत्माना
स्वकाळनो संबंध नथी. आम समजे तो,