जाणवानी ज वात आवी. अहीं परिशिष्टमां शिष्यनो पण ए ज प्रश्न हतो के हे भगवान! आ मारो आत्मा
कोण छे–केवो छे? के जेने जाणीने अने तेनो आश्रय करीने हुं परमानंददशाने पामुं. शिष्यना ते प्रश्नना उत्तरमां
आ आत्मानुं वर्णन चाले छे, तेमां आत्मानुं अस्तित्व केवुं छे ते ओळखावे छे. माटे झीणी लागे तो पण
छे, पण ते समजवा माटे मगजमांथी बीजी चिंता काढी नांखीने, जे रीते कहेवाय छे ते रीते लक्षमां लईने अंदर
विचारवुं जोईए. बाकी आ समज्या विना बीजो तो कोई शांतिनो उपाय छे नहि.
नथी, आत्माने बंध–मोक्षवाळो कहेवो ते पण व्यवहार छे. –आवी अध्यात्मनयनी शैली छे; परंतु आ
परिशिष्टमां तो आत्मा बंध–मोक्षवाळो छे. ते पण निश्चयनयमां लेशे, केम के आत्मा पोते एकलो ज बंध अने
मोक्ष पर्यायरूपे परिणमे छे ते बताववा माटे तेने पण अहीं निश्चयमां गण्या छे; कारणके अहीं द्रव्यद्रष्टिना
विषयनुं वर्णन नथी पण वस्तुना बधा पडखानुं ज्ञान करावीने प्रमाण–ज्ञान करवानी आ वात छे. जो के
प्रमाणथी बधा पडखांनुं ज्ञान करनार पण अभेद स्वभावने द्रष्टिमां लईने ते तरफ ज ढळे छे, पण पहेलांं
तत्त्वनो निर्णय करवा टाणे धर्मना भेद पाडीने विचार आवे छे.
स्वकाळ छे, ते पर्याय हाथने लीधे के आत्माने लीधे थई नथी. पराधीनद्रष्टिवाळाने एम थाय छे के जो तीरनी
पर्याय तेना पोताथी ज थती होय तो हाथ अडया पहेलांं केम न थई? हाथ आव्यो त्यारे ज केम थई? आम
स्वकाळ हतो, ने पछी धनुष्य उपर अनुसंधान थवानो तेनो स्वकाळ आव्यो ते अवस्था तेना ज उपादानथी
थई छे.
दरेक पर्यायनुं जुदुं जुदुं छे. अज्ञानीने समय समयनी पर्यायनां स्वतंत्र उपादाननुं एटले के स्वकाळनुं भान
नथी, एटले जेवुं निमित्त आवे तेवी पर्याय थाय एम ते माने छे, ते तेनी मूळमां भूल छे. तेमज क्षणिक
पर्यायना राग जेटलो ज आखा आत्मानो स्वभाव जे मानी ल्ये तेने वस्तुना त्रिकाळी शुद्ध उपादाननुं एटले के
स्वभावनुं भान नथी. स्वकाळ ते क्षणिक उपादान छे ने स्वभाव ते त्रिकाळी उपादान छे. आत्माना अस्तित्व
धर्मने जाणे तेमां आ बधुं आवी जाय छे. अस्तित्वमां स्वद्रव्य–क्षेत्र–काळ भाव आवी जाय छे, ने द्रव्य–क्षेत्र–
काळ–भावमां आ बधुं रहस्य समाई जाय छे.
तेने निश्चय व्यवहारनी खबर नथी. निश्चय–व्यवहारमां पण अनेक अपेक्षाओ छे. ते आ प्रमाणे–
विकार करावे छे–एम कहेवानो ते व्यवहारनो आशय नथी.