Atmadharma magazine - Ank 095
(Year 8 - Vir Nirvana Samvat 2477, A.D. 1951)
(Devanagari transliteration).

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: भादरवो : २४७७ : २२९ :
छे तेम आत्माने जाणे तो ज तेनो आश्रय करी शके. ए रीते ‘स्वाश्रये मुक्ति’ एम कहेतां पण पहेलांं स्वने
जाणवानी ज वात आवी. अहीं परिशिष्टमां शिष्यनो पण ए ज प्रश्न हतो के हे भगवान! आ मारो आत्मा
कोण छे–केवो छे? के जेने जाणीने अने तेनो आश्रय करीने हुं परमानंददशाने पामुं. शिष्यना ते प्रश्नना उत्तरमां
आ आत्मानुं वर्णन चाले छे, तेमां आत्मानुं अस्तित्व केवुं छे ते ओळखावे छे. माटे झीणी लागे तो पण
रुचिपूर्वक ध्यान राखीने आ वात बराबर समजवा जेवी छे. हवे तो बहु स्पष्ट अने सहेलुं करीने समजावाय
छे, पण ते समजवा माटे मगजमांथी बीजी चिंता काढी नांखीने, जे रीते कहेवाय छे ते रीते लक्षमां लईने अंदर
विचारवुं जोईए. बाकी आ समज्या विना बीजो तो कोई शांतिनो उपाय छे नहि.
आत्मा अनंत धर्मवाळो एक पदार्थ छे. तेने सामान्य एकरूप अभेद चैतन्यपिंडरूपे लक्षमां लेवो ते
निश्चयनय छे, अने एक धर्मनो भेद पाडीने लक्षमां लेवो ते व्यवहारनय छे. निश्चयथी आत्माने बंध–मोक्ष पण
नथी, आत्माने बंध–मोक्षवाळो कहेवो ते पण व्यवहार छे. –आवी अध्यात्मनयनी शैली छे; परंतु आ
परिशिष्टमां तो आत्मा बंध–मोक्षवाळो छे. ते पण निश्चयनयमां लेशे, केम के आत्मा पोते एकलो ज बंध अने
मोक्ष पर्यायरूपे परिणमे छे ते बताववा माटे तेने पण अहीं निश्चयमां गण्या छे; कारणके अहीं द्रव्यद्रष्टिना
विषयनुं वर्णन नथी पण वस्तुना बधा पडखानुं ज्ञान करावीने प्रमाण–ज्ञान करवानी आ वात छे. जो के
प्रमाणथी बधा पडखांनुं ज्ञान करनार पण अभेद स्वभावने द्रष्टिमां लईने ते तरफ ज ढळे छे, पण पहेलांं
तत्त्वनो निर्णय करवा टाणे धर्मना भेद पाडीने विचार आवे छे.
आत्माना अस्तित्वधर्मने जाणे तो तेमां स्वकाळनी ओळखाण पण आवी जाय छे. क्षणे क्षणे जे पर्याय
थाय ते तेनो स्वकाळ छे, ते पोतानो धर्म छे, तेमां बीजानो अभाव छे. तीरनी जे पर्याय छे ते तेनो पोतानो
स्वकाळ छे, ते पर्याय हाथने लीधे के आत्माने लीधे थई नथी. पराधीनद्रष्टिवाळाने एम थाय छे के जो तीरनी
पर्याय तेना पोताथी ज थती होय तो हाथ अडया पहेलांं केम न थई? हाथ आव्यो त्यारे ज केम थई? आम
पूछनारने वस्तुनी पर्यायना समय समयना उपादाननी खबर नथी. तीरमां पहेलांं बीजा प्रकारनी अवस्थानो
स्वकाळ हतो, ने पछी धनुष्य उपर अनुसंधान थवानो तेनो स्वकाळ आव्यो ते अवस्था तेना ज उपादानथी
थई छे.
उपादान बे प्रकारना छे: एक शाश्वत उपादान अने बीजुं क्षणिक उपादान. द्रव्यनो जे त्रिकाळी स्वभाव
छे ते शाश्वत उपादान छे अने तेनी एकेक समयनी पर्यायनी योग्यता ते क्षणिक उपादान छे, क्षणिक उपादान
दरेक पर्यायनुं जुदुं जुदुं छे. अज्ञानीने समय समयनी पर्यायनां स्वतंत्र उपादाननुं एटले के स्वकाळनुं भान
नथी, एटले जेवुं निमित्त आवे तेवी पर्याय थाय एम ते माने छे, ते तेनी मूळमां भूल छे. तेमज क्षणिक
पर्यायना राग जेटलो ज आखा आत्मानो स्वभाव जे मानी ल्ये तेने वस्तुना त्रिकाळी शुद्ध उपादाननुं एटले के
स्वभावनुं भान नथी. स्वकाळ ते क्षणिक उपादान छे ने स्वभाव ते त्रिकाळी उपादान छे. आत्माना अस्तित्व
धर्मने जाणे तेमां आ बधुं आवी जाय छे. अस्तित्वमां स्वद्रव्य–क्षेत्र–काळ भाव आवी जाय छे, ने द्रव्य–क्षेत्र–
काळ–भावमां आ बधुं रहस्य समाई जाय छे.
वस्तुनी दरेक पर्याय पोताना स्वकाळथी थाय छे, निमित्तथी थती नथी, आवुं वस्तुस्वरूप छे, शास्त्रोमां
‘कर्म जीवने विकार करावे’ एम व्यवहारकथन कर्युं होय त्यां अज्ञानी तेनो अर्थ खरेखर तेम ज मानी ल्ये छे,
तेने निश्चय व्यवहारनी खबर नथी. निश्चय–व्यवहारमां पण अनेक अपेक्षाओ छे. ते आ प्रमाणे–
(१) ज्यारे विकारी परिणाम आत्मा पोते करे छे एम बताववा माटे तेने निश्चय कह्यो त्यारे, तेमां
कर्मनो उदय निमित्त छे तेनुं ज्ञान कराववा माटे ते निमित्तने व्यवहार कह्यो. पण खरेखर कर्मनो उदय जीवने
विकार करावे छे–एम कहेवानो ते व्यवहारनो आशय नथी.
[त्यां स्व ते निश्चय ने पर ते व्यवहार एवी शैलि
छे.]
(२) मोक्षमार्गनुं वर्णन चालतुं होय त्यां शुभरागने व्यवहार कहे ने शुद्धताने निश्चय कहे छे. [त्यां
पर्यायनी शुद्धता ते निश्चय अने पर्यायनी अशुद्धता ते व्यवहार एवी शैलि छे.]
(३) ज्यारे द्रव्यनी वात चालती होय त्यारे अभेद द्रव्य ते निश्चय ने गुण–पर्यायना जेटला भेद पडे ते
बधोय