ज्ञानावरणीयकर्म निमित्त छे ते निमित्त तो तारा नैमित्तिक भावनी एम जाहेरात करे छे के ते वखते आत्माना
स्वकाळमां ज्ञाननी पूर्णता नथी. ज्ञाननी पूर्णता होय तो सामे आवरणनुं निमित्त न होय. ‘कर्मे ज्ञानने रोकयुं’
एम निमित्तथी कथन भले होय, पण त्यां उपादाननो स्वकाळ निमित्तथी जुदो स्वतंत्र छे ते ओळखी लेवो
जोईए. कथननी ढब भले जुदी जुदी होय पण वस्तुस्वरूप तो जेम होय तेम समजवुं जोईए ने! चरणानुयोग
हो के प्रथमानुयोग हो–कोई पण अनुयोगनुं कथन हो, पण चारे अनुयोगमां आत्मा तो एक ज प्रकारनो छे,
आत्मा कांई जुदा जुदा चार प्रकारनो नथी. द्रव्यानुयोगनो आत्मा जुदो, ने चरणानुयोगनो आत्मा कोईक
जुदो–एम नथी. प्रयोजनवश मात्र कथनशैलिमां फेर होय छे.
उदयभाव आत्मानुं स्वतत्त्व छे; त्यां प्रमाणना विषयनुं वर्णन छे. उदयभावरूपे पण आत्मा पोते परिणमे छे,
आत्मानी ज ते पर्याय छे माटे तेने स्वतत्त्व कह्युं. ते उदयभाव आत्माना स्वकाळथी अस्तिरूप छे ने कर्मथी ते
नास्तिरूप छे, एटले कर्मना उदयने लीधे ते उदय भाव थयो–एम खरेखर नथी. परथी तो आत्मानुं नास्तित्व
छे, एटले आत्मा अने परनी वच्चे मोटो नास्तित्वरूपी किल्लो छे, तेथी पर आत्माने कांई करी शके एम बनी
शकतुं नथी.
नास्तित्व छे, तो ते शुं करे?
पर काळ छे, ते पर काळथी आत्मानुं अस्तित्व नथी पण नास्तित्व छे. जो आवा अस्ति–नास्ति धर्मने बराबर
जाणे तो, जगतना बधाय पदार्थो स्वतंत्र भिन्न भिन्न छे एम समजे, एटले क्यांय पण परमां एकत्वबुद्धि न
रहे, कोई बीजाथी लाभ–नुकसान थवानी मान्यता न रहे, कोई परना आश्रयनी रुचि न रहे ने पोताना
स्वभाव तरफ वळे–ए ज तेनुं फळ छे.
आश्रय तरफ न वळे तो तेणे यथार्थपणे परथी भिन्नता जाणी नथी. पर्यायमां विकार उत्पन्न थाय छे तेने हुं
टाळुं–एवी बुद्धि ते पण पर्यायबुद्धि छे, तेनी द्रष्टि विकार उपर छे, स्वभाव उपर नथी. ‘आ विकार थयो तेने
टाळुं’ एम विकार सामे जोवाथी विकारनो अभाव थतो नथी पण उत्पत्ति थाय छे. जे समये जे विकार
उत्पादरूप छे ते समये तो ते सत् छे, ते ज समये तेनो अभाव न थई शके; अने बीजा समये तो ते स्वयं व्यय
थई ज जाय छे एटले बीजा समये पण तेने टाळवानुं रहेतुं नथी. आ रीते विकारने टाळवानुं रहेतुं नथी पण
द्रव्यनी सन्मुखतामां विकारनी उत्पत्ति ज न थाय ए ज विकारना अभावनी रीत छे. एटले खरेखर बधानुं
छेल्लुं तात्पर्य तो द्रव्यनी सन्मुखता करवी ते ज आवे छे.
विचार आवे छे, स्वभावना साक्षात् अनुभव वखते भेदना विकल्प नथी होता; पण प्रथम जे विचारथी निर्णय
न करे तेने तो अभेद आत्मानो अनुभव थाय नहि.