तो वर्तमानपूरती योग्यताथी, कर्मना निमित्ते थाय छे; मूळ वस्तुस्वरूपमां ते विकार के नवतत्त्वना भेद नथी.
शुद्धनयवडे एकरूप ज्ञायकस्वभावनी द्रष्टिथी अनुभव करतां ज्ञायकस्वभाव एक ज भूतार्थ छे, नव–तत्त्वो
अभूतार्थ छे. ‘ज्ञायकवस्तु छुं’ एम ज्यां अंर्तद्रष्टिथी नक्की कर्युं त्यां ज भेदनो विकल्प तूटीने अभेदरूप
आत्मानो अनुभव थयो, अने ते ज सम्यग्दर्शन धर्म छे.
विकारने ज आखी वस्तु मानी ल्ये तो तेना आश्रये धर्म थाय नहि. आत्माना स्वभावनो निर्णय कहो के
सर्वज्ञनो निर्णय कहो, बंने एक ज छे; केम के आत्मानो स्वभाव छे ते ज सर्वज्ञने प्रगट्यो छे ने सर्वज्ञ जेवो ज
आ आत्मानो स्वभाव छे. बंनेमां परमार्थे कांई फेर नथी. एटले आत्मानो पूर्ण स्वभाव ओळखतां तेमां
सर्वज्ञनी ओळखाण पण आवी जाय छे, ने सर्वज्ञनी ओळखाण करे तेमां आत्माना स्वभावनी ओळखाण
आवी जाय छे. सर्वज्ञ भगवाने प्रथम तो पोताना पूर्ण ज्ञानस्वभावनी श्रद्धा करीने पछी आत्मामां एकाग्र
थईने पूर्ण ज्ञानदशा प्रगट करी, ते ज्ञानवडे एक समयमां भगवान बधुं य जाणे ज छे; अने जाणवुं ते पोतानुं
स्वरूप होवाथी ते पूर्णज्ञान साथे भगवानने पूर्ण स्वाभाविक आनंद पण छे, अने तेमने रागादि दोष बिलकुल
नथी. –आम ज्यां सर्वज्ञनो यथार्थ निर्णय कर्यो त्यां पोतामां पण पोताना रागरहित ज्ञानस्वभावनो निर्णय
थयो. परिपूर्ण ज्ञान ज मारुं स्वरूप छे, ए सिवाय रागमिश्रित विचार आवे ते मारुं–चैतन्यनुं खरुं स्वरूप
नथी. वस्तुनो स्वभाव परिपूर्ण ज होय. जेम जडमां ‘अचेतनपणुं’ छे. तेनामां अंशे पण जाणपणुं नथी; जडनो
अचेतन स्वभाव छे तेथी तेनामां अचेतनपणुं परिपूर्ण छे ने ज्ञान बिलकुल नथी. तेम आत्मानो ज्ञानस्वभाव
छे, तो तेमां ज्ञान परिपूर्ण छे ने अचेतनपणुं बिलकुल नथी. राग पण अचेतनना संबंधथी थाय छे एटले राग
पण ज्ञानस्वभावमां नथी. –आवा ज्ञानस्वभावनो निर्णय अने अनुभव करवो ते ज धर्मनी शरूआत छे.
समयमां पूरा ज्ञानपणे परिणमे तेवो अवस्थानो स्वभाव छे. तेम ज अवस्थामां अल्पज्ञता साथे जे रागादि
भावो छे ते पण खरेखर जीव नथी पण अजीव छे. राग अने अल्पज्ञता वगरनो एकरूप ज्ञायकभाव ते ज
परमार्थे जीव छे. आवा पूर्ण ज्ञानस्वभावी आत्मानो निर्णय करीने तेमां एकाग्र थतां पर्यायमां अल्पज्ञता के
राग–द्वेष रहेता नथी पण पूर्णता ज थई जाय छे. पहेलांं तो एवा पूर्ण आत्माने श्रद्धामां स्वीकारवानी आ वात
छे. स्वभाव कहेवो ने तेमां वळी अधूराश कहेवी, तो ते स्वभाव ज रहेतो नथी. स्वभाव कदी अधूरो होय नहि,
न अधूरुं होय तेने स्वभाव कहेवाय नहीं.