Atmadharma magazine - Ank 095
(Year 8 - Vir Nirvana Samvat 2477, A.D. 1951)
(Devanagari transliteration).

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: २४२ : आत्मधर्म : ९५
धर्मनी विधि अने
धर्मनां निमित्त
[वीर संवत २४७५ ना वैशाख वदी ०) ) ना रोज लाठीमां
श्री प्रवचनसार गाथा १९४. उपर पू. गुरुदेवश्रीनुं प्रवचन]
[२७] ज्यां रुचि त्यां प्रयत्न
जेने आत्मानुं कल्याण करवुं होय तेणे आत्मानुं साचुं स्वरूप जाणवुं जोईए. अनंतकाळथी आत्मानुं
साचुं स्वरूप जीवे कदी जाण्युं नथी. जो एक वार पण आत्मानुं साचुं स्वरूप जाणे तो अल्पकाळमां मुक्ति थया
विना रहे नहीं. अनंतकाळथी विकारनी रुचिथी पुण्य–पाप ज कर्यां छे, कदी आत्म–स्वभावनी रुचि करीने तेनी
समजण करी नथी. जेमां जेनी रुचि होय तेमां तेनुं अंतरवीर्य वारंवार कार्य करे. सत्समागमे यथार्थ वस्तु
स्वरूपनो ख्याल आव्या वगर साची रुचि थाय नहि, अने रुचि वगर ते वस्तु तरफ वळवानो प्रयत्न पण जीव
करे नहि. आत्मानुं साचुं ज्ञान कर्या वगर कोई जीव दयादि शुभभाव करे तो तेनाथी पुण्य–बंधन थाय पण तेमां
धर्म नथी.
[२८] धर्मनी क्रिया
आत्मा कोण छे, आत्मानो स्वभाव शुं छे, तेनी खबर न होय ने बाह्य क्रियाथी धर्म मानी ल्ये ते
अज्ञानी छे; आत्माना धर्मनी क्रिया कई छे तेनुं तेने भान नथी एटले जडनी क्रियामां तथा विकारी क्रियामां ते
धर्म माने छे. व्रत के जात्रा, दया के भक्ति, दान के तप–ए बधामां शुभरागभाव छे ते कांई धर्मनी क्रिया नथी,
धर्मनी क्रिया तो आत्माना अंर्तस्वभावनी श्रद्धा, ज्ञान अने स्थिरतामां छे, एवी धर्म क्रिया ते ज मोक्षनुं
कारण छे.
[२९] पूर्णानंद प्रगट करवानी विधि
धर्म करनार जीव पोताना आत्मामां ज्ञान अने आनंदनी पूर्णता प्रगट करवा मागे छे. तो पूर्वे जेमणे
ज्ञान अने आनंदनी पूर्णता प्रगट करी छे तेवा आत्मा कोण छे तेने ओळखवा जोईए. हुं जे पूर्णता प्रगट
करवा मांगुं छुं, ते पूर्णता प्रगट करनार हुं ज पहेल–वहेलो थयो नथी, परंतु अनंत जीवो मारा पहेलांं पण
पूर्णता पामी गयेला छे;–ए प्रमाणे, धर्म करनारे प्रथम पूर्णताने पामेला आत्माने एटले के सर्वज्ञदेवने नक्की
करवा जोईए. हुं मारा आत्मामां विकार टाळीने जे पूर्ण परमानंद प्रगट करवा मागुं छुं तो तेवो आनंद प्रगट
करनार हुं एक ज नथी पण अत्यार सुधीमां अनंत आत्माओ तेओ पूर्ण आनंद प्रगट करी चूकया छे, तेम ज
ते पूर्ण आनंद प्रगट करवा माटे मथी रहेला बीजा साधक जीवो पण छे, तेनुं स्वरूप एटले के सद्गुरुनुं स्वरूप
पण नक्की करवुं जोईए. वळी ते पूर्णानंद दशानी प्राप्तिनो उपाय बतावनारी साचा देव–गुरुनी वाणी पण
विद्यमान छे, तेनुं एटले के साचा शास्त्रनुं स्वरूप पण नक्की करवुं जोईए. ए रीते ‘मारे पूर्ण आनंद प्रगट
करवो छे’ एवी भावनामां देव–गुरु–शास्त्रनो स्वीकार आवी ज जाय छे. साचा देव–गुरु–शास्त्रनी श्रद्धा थया
वगर पूर्ण ज्ञान आनंद दशा प्रगट करवानी भावना यथार्थ होय नहीं. जेमणे आत्मानी पूर्णता प्रगट करी छे ते
देव छे, एवा देव एक नथी पण अनंत छे. जेओ पूर्णता प्रगट करवा माटेनो यथार्थ उपाय करी रह्या छे तेओ
गुरु छे. अने तेवा देव–गुरुनी, यथार्थ मोक्षमार्ग कहेनारी वाणी ते शास्त्र छे. पूर्णानंद प्रगट करवानी
भावनावाळाए एवा देव–गुरु–शास्त्रनी ओळखाण पहेलांं करवी जोईए.
अत्यार सुधीना अनंतकाळमां काळक्रमे अनंत जीवो पूर्णानंदने पाम्या छे, अत्यारे पण महाविदेह वगेरे
क्षेत्रमां पूर्णानंदने पामेला जीवो वर्ते छे, ने भविष्यमां पण अनंत जीवो पूर्णानंदने पामशे. –ए बधाय जीवो
ज्ञानस्वभावी आत्मानी ओळखाण करीने तेमां एकाग्रताथी ज पूर्णानंदने पाम्या छे, ए एक ज विधि छे,