विना रहे नहीं. अनंतकाळथी विकारनी रुचिथी पुण्य–पाप ज कर्यां छे, कदी आत्म–स्वभावनी रुचि करीने तेनी
समजण करी नथी. जेमां जेनी रुचि होय तेमां तेनुं अंतरवीर्य वारंवार कार्य करे. सत्समागमे यथार्थ वस्तु
स्वरूपनो ख्याल आव्या वगर साची रुचि थाय नहि, अने रुचि वगर ते वस्तु तरफ वळवानो प्रयत्न पण जीव
करे नहि. आत्मानुं साचुं ज्ञान कर्या वगर कोई जीव दयादि शुभभाव करे तो तेनाथी पुण्य–बंधन थाय पण तेमां
धर्म नथी.
धर्मनी क्रिया तो आत्माना अंर्तस्वभावनी श्रद्धा, ज्ञान अने स्थिरतामां छे, एवी धर्म क्रिया ते ज मोक्षनुं
कारण छे.
करवा मांगुं छुं, ते पूर्णता प्रगट करनार हुं ज पहेल–वहेलो थयो नथी, परंतु अनंत जीवो मारा पहेलांं पण
पूर्णता पामी गयेला छे;–ए प्रमाणे, धर्म करनारे प्रथम पूर्णताने पामेला आत्माने एटले के सर्वज्ञदेवने नक्की
करवा जोईए. हुं मारा आत्मामां विकार टाळीने जे पूर्ण परमानंद प्रगट करवा मागुं छुं तो तेवो आनंद प्रगट
ते पूर्ण आनंद प्रगट करवा माटे मथी रहेला बीजा साधक जीवो पण छे, तेनुं स्वरूप एटले के सद्गुरुनुं स्वरूप
पण नक्की करवुं जोईए. वळी ते पूर्णानंद दशानी प्राप्तिनो उपाय बतावनारी साचा देव–गुरुनी वाणी पण
विद्यमान छे, तेनुं एटले के साचा शास्त्रनुं स्वरूप पण नक्की करवुं जोईए. ए रीते ‘मारे पूर्ण आनंद प्रगट
करवो छे’ एवी भावनामां देव–गुरु–शास्त्रनो स्वीकार आवी ज जाय छे. साचा देव–गुरु–शास्त्रनी श्रद्धा थया
वगर पूर्ण ज्ञान आनंद दशा प्रगट करवानी भावना यथार्थ होय नहीं. जेमणे आत्मानी पूर्णता प्रगट करी छे ते
देव छे, एवा देव एक नथी पण अनंत छे. जेओ पूर्णता प्रगट करवा माटेनो यथार्थ उपाय करी रह्या छे तेओ
गुरु छे. अने तेवा देव–गुरुनी, यथार्थ मोक्षमार्ग कहेनारी वाणी ते शास्त्र छे. पूर्णानंद प्रगट करवानी
भावनावाळाए एवा देव–गुरु–शास्त्रनी ओळखाण पहेलांं करवी जोईए.
ज्ञानस्वभावी आत्मानी ओळखाण करीने तेमां एकाग्रताथी ज पूर्णानंदने पाम्या छे, ए एक ज विधि छे,