Atmadharma magazine - Ank 095
(Year 8 - Vir Nirvana Samvat 2477, A.D. 1951)
(Devanagari transliteration).

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: भादरवो : २४७७ : २४३ :
बीजी कोई विधि नथी. आत्मा ज्ञानपिंड छे, तेने ज्ञान वडे ज पकडी शकाय छे. वच्चे अधूरी दशामां शुभराग
आवे पण ते धर्म नथी. अने ते राग वडे आत्मा जणातो नथी. ए प्रमाणे रागरहित आत्मस्वभावनुं साचुं
ज्ञान जेने नथी तेने त्रणकाळमां धर्म थतो नथी. प्रथम आत्मस्वभावनी श्रद्धा–ज्ञान करीने तेमां एकाग्र थवुं ते
ज पूर्णानंदी परमात्मदशाने प्राप्त करवानी विधि छे.
[३०] केवळज्ञानना निर्णयमां सम्यक् पुरुषार्थ–
प्रश्न:– केवळी भगवाने जोयुं हशे त्यारे मोक्ष थई जशे; पछी प्रयत्ननुं शुं काम?
उत्तर:– भाई, मोक्ष पामनार जीव मोक्षना पुरुषार्थ पूर्वक मोक्ष पामशे–एम पण भगवाने जोयुं छे,
पुरुषार्थ वगर एम ने एम मोक्ष पामी जशे–एम कांई भगवाने जोयुं नथी. वळी, ‘भगवाने ज्यारे जोयुं हशे
त्यारे मोक्ष थशे’ –एवा यथार्थ निर्णयमां तो आत्माना परिपूर्ण ज्ञानस्वभावनो निर्णय पण भेगो ज आवी
गयो, अने ज्यां ज्ञानस्वभावनो निर्णय थयो त्यां मोक्षमार्गनी शरूआत थई गई एटले तेमां मोक्षनो
सम्यक्पुरुषार्थ पण आवी ज गयो. सम्यक्पुरुषार्थ वगर केवळज्ञाननो यथार्थ निर्णय होतो नथी.
[३१] धर्मनां निमित्त अने धर्मनो विधि
जेने पोताना आत्मामां धर्म प्रगट करवो छे तेनुं लक्ष जेमना आत्मामां धर्म प्रगट्यो होय तेवा निमित्त
उपर ज जाय, पण जेनामां धर्म प्रगट्यो न होय तेवा आत्माने ते पोताना धर्मना निमित्त तरीके स्वीकारे नहि.
आत्मस्वभाव समजनारनुं लक्ष क्यां जाय? जो के समजनार तो पोते पोताना आत्मस्वभावना लक्षथी ज
समजे छे, परंतु सत्ना निमित्त तरीके साचा देव–गुरुनो विचार अने बहुमान आव्या वगर रहे नहि.
पूर्णदशा पामीने मुक्त थई जनारा जीवो कोई पूर्वे थई गया, कोई हमणां थाय छे अने कोई हवे पछी
थशे. पूर्णता पामनारा अने तेने साधनारा अनादिथी थता ज आवे छे अने तेमनी वाणीरूप शास्त्रो पण
प्रवाहपणे अनादिथी छे. धर्म करनारने ए रीते साचा देव–गुरु–शास्त्रनो निर्णय आवी जवो जोईए. छतां
साचा देव–गुरु शास्त्रना लक्षे पण धर्म थई जतो नथी; पण धर्म तो अंर्तस्वभावना ज आश्रये थाय छे. धर्म
क्यांय बहारमां नथी पण अंदरनी दशामां छे, एटले धर्म क्यांय बहारना लक्षे थतो नथी, पण अंर्तस्वभावनो
निर्णय करीने तेना लक्षे एकाग्रताथी ज धर्म थाय छे. –आ ज धर्मनो विधि छे.
[३२] सर्वज्ञ परमात्मा अने वाणीनो योग
पूर्ण ज्ञान–आनंददशा पामेला जीवो पण बे प्रकारना होय छे–एक देहमुक्त अने बीजा जीवनमुक्त. तेमां
जे देहमुक्त थई गया ते तो ‘सिद्ध भगवान’ छे, अने जे परमात्मा देहसहित विचरे छे ते ‘ अरिहंत भगवान’
छे. ते अरिहंतोमां केटलाकने वाणीनो योग होय छे अने केटलाकने नथी पण होतो. परंतु जे तीर्थंकर होय तेमने
तो नियमथी वाणीनो योग होय ज छे. सर्वज्ञ परमात्मदशा प्रगटी गया पछी शरीर के वाणीनो संबंध होय ज
नहि–एम एकांत नथी. एटले, कोईपण सर्वज्ञने वाणी न ज होय–एम नथी, पण कोई सर्वज्ञने वाणीनो योग
होय छे. जो कोई सर्वज्ञने वाणीनो योग न ज होय तो तेमनी सर्वज्ञताने बीजा जीवो कई रीते जाणे? तथा
सर्वज्ञदेवना पूर्ण ज्ञानमां शुं वस्तुस्वरूप जणायुं तेनी खबर वाणी वगर बीजा जीवोने कई रीते पडे? ने तीर्थनी
प्रवृत्ति कई रीते थाय? –अने एम थतां तो सर्वज्ञ वगेरेनो निर्णय ज थई शकशे नहि. ने देव–गुरु–शास्त्रना
निर्णय वगर अंतरना स्वभावनुं साचुं ज्ञान पण न होय. साचा निमित्तो कोण छे, क्यां छे, शुं करी रह्या छे
अने तेमणे कहेलुं वस्तुस्वरूप शुं छे–एनी निःशंकता वगर अंतरमां वीर्य वळे नहि.
[३३] निमित्तोनो विवेक
कोई कहे के खोटा निमित्तोनी मान्यता हती ने अमारुं कल्याण थई गयुं, –तो एम कदी बने शके नहीं.
जो के निमित्तथी तो कांई लाभ के नुकशान थतुं नथी, तोपण साचा ज्ञानमां केवा निमित्तो होय ने केवा निमित्तो
न होय, तेनो विवेक कर्या वगर सम्यग्ज्ञान थाय नहि. पुरुषनी प्रमाणतानो निर्णय कर्या वगर गमे तेना, गमे
तेवा उपदेशने साचो मानी ल्ये तेने तो हजी साचा–खोटा निमित्तनो पण विवेक नथी, तो निमित्तथी पार
अंर्तस्वभावनो निर्णय करवानी ताकात तेनामां क्यांथी आवशे? –हजी आंगणा सुधी पण जे नथी आव्यो ते
आंगणानो अभाव करीने घरमां शी रीते प्रवेशी शकशे?