आवे पण ते धर्म नथी. अने ते राग वडे आत्मा जणातो नथी. ए प्रमाणे रागरहित आत्मस्वभावनुं साचुं
ज्ञान जेने नथी तेने त्रणकाळमां धर्म थतो नथी. प्रथम आत्मस्वभावनी श्रद्धा–ज्ञान करीने तेमां एकाग्र थवुं ते
ज पूर्णानंदी परमात्मदशाने प्राप्त करवानी विधि छे.
उत्तर:– भाई, मोक्ष पामनार जीव मोक्षना पुरुषार्थ पूर्वक मोक्ष पामशे–एम पण भगवाने जोयुं छे,
त्यारे मोक्ष थशे’ –एवा यथार्थ निर्णयमां तो आत्माना परिपूर्ण ज्ञानस्वभावनो निर्णय पण भेगो ज आवी
गयो, अने ज्यां ज्ञानस्वभावनो निर्णय थयो त्यां मोक्षमार्गनी शरूआत थई गई एटले तेमां मोक्षनो
सम्यक्पुरुषार्थ पण आवी ज गयो. सम्यक्पुरुषार्थ वगर केवळज्ञाननो यथार्थ निर्णय होतो नथी.
आत्मस्वभाव समजनारनुं लक्ष क्यां जाय? जो के समजनार तो पोते पोताना आत्मस्वभावना लक्षथी ज
समजे छे, परंतु सत्ना निमित्त तरीके साचा देव–गुरुनो विचार अने बहुमान आव्या वगर रहे नहि.
प्रवाहपणे अनादिथी छे. धर्म करनारने ए रीते साचा देव–गुरु–शास्त्रनो निर्णय आवी जवो जोईए. छतां
साचा देव–गुरु शास्त्रना लक्षे पण धर्म थई जतो नथी; पण धर्म तो अंर्तस्वभावना ज आश्रये थाय छे. धर्म
क्यांय बहारमां नथी पण अंदरनी दशामां छे, एटले धर्म क्यांय बहारना लक्षे थतो नथी, पण अंर्तस्वभावनो
निर्णय करीने तेना लक्षे एकाग्रताथी ज धर्म थाय छे. –आ ज धर्मनो विधि छे.
छे. ते अरिहंतोमां केटलाकने वाणीनो योग होय छे अने केटलाकने नथी पण होतो. परंतु जे तीर्थंकर होय तेमने
तो नियमथी वाणीनो योग होय ज छे. सर्वज्ञ परमात्मदशा प्रगटी गया पछी शरीर के वाणीनो संबंध होय ज
नहि–एम एकांत नथी. एटले, कोईपण सर्वज्ञने वाणी न ज होय–एम नथी, पण कोई सर्वज्ञने वाणीनो योग
होय छे. जो कोई सर्वज्ञने वाणीनो योग न ज होय तो तेमनी सर्वज्ञताने बीजा जीवो कई रीते जाणे? तथा
सर्वज्ञदेवना पूर्ण ज्ञानमां शुं वस्तुस्वरूप जणायुं तेनी खबर वाणी वगर बीजा जीवोने कई रीते पडे? ने तीर्थनी
निर्णय वगर अंतरना स्वभावनुं साचुं ज्ञान पण न होय. साचा निमित्तो कोण छे, क्यां छे, शुं करी रह्या छे
अने तेमणे कहेलुं वस्तुस्वरूप शुं छे–एनी निःशंकता वगर अंतरमां वीर्य वळे नहि.
न होय, तेनो विवेक कर्या वगर सम्यग्ज्ञान थाय नहि. पुरुषनी प्रमाणतानो निर्णय कर्या वगर गमे तेना, गमे
तेवा उपदेशने साचो मानी ल्ये तेने तो हजी साचा–खोटा निमित्तनो पण विवेक नथी, तो निमित्तथी पार
अंर्तस्वभावनो निर्णय करवानी ताकात तेनामां क्यांथी आवशे? –हजी आंगणा सुधी पण जे नथी आव्यो ते