Atmadharma magazine - Ank 096
(Year 8 - Vir Nirvana Samvat 2477, A.D. 1951)
(Devanagari transliteration).

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: आसो : २४७७ आत्मधर्म : २५५ :
के तेना कर्तापणाने छोडीने तारा अकर्ता स्वभाव तरफ वळ. –आवो उपदेश आत्माने स्वभावथी विकारनुं
अकर्ता पणुं बतावे छे.
प्रतिक्रमण अने प्रत्याख्यान क्यारे थाय?
अप्रतिक्रमणनो के अप्रत्याख्याननो भाव कांई भूतकाळमां के भविष्यकाळमां नथी, ते बंने भाव तो
वर्तमानमां ज छे, तेम ज ते छोडीने प्रतिक्रमण अने प्रत्याख्याननो भाव पण वर्तमानमां ज छे. वर्तमान जे
भाव पर तरफ वळ्‌यो तेमां अप्रतिक्रमण अने अप्रत्याख्यान छे अने वर्तमान जे भाव स्वभाव तरफ वळ्‌यो ते
भाव पोते ज प्रतिक्रमण अने प्रत्याख्यान छे. प्रतिक्रमणनो अने प्रत्याख्याननो भाव जुदो जुदो नथी.
भूतकाळना के भविष्यना विभावनी रुचि तो वर्तमान भावमां छूटे छे; वर्तमान भाव ज्यां स्व तरफ वळ्‌यो त्यां
तेमांथी भूत–भविष्यनुं अप्रतिक्रमण अने अप्रत्याख्यान छूटी गयुं. माटे नक्की थाय छे के भगवान आत्मा
स्वभावथी विकारनो अकर्ता ज छे. धर्मी जीवने श्रद्धा अपेक्षाए तो क्षणे ने पळे विकारनुं प्रतिक्रमण तेम ज
प्रत्याख्यान वर्ती रह्युं छे. जे जीव रागने पोतानुं कर्तव्य माने छे ने रागरहित ज्ञायकस्वभाव तरफ वळतो नथी
ते जीव, भले महाव्रत पाळतो होय तो पण, क्षणे ने पळे मिथ्यात्व वगेरेनुं अप्रतिक्रमणने अप्रत्याख्यान ज करी
रह्यो छे. जे अज्ञानी जीव पर्यायद्रष्टिथी विकारनो कर्ता थई रह्यो छे तेने आचार्यदेव समजावे छे के–जो भाई!
स्वभावद्रष्टिथी तुं विकारनो अकर्ता छो, माटे विकारनी अने निमित्तनी द्रष्टि छोड. स्वभावना आश्रयथी विकार
थतो नथी पण निमित्त–नैमित्तिक संबंधथी ज विकार थाय छे, माटे स्वभावथी तुं विकारनो कर्ता नथी. –आम
समजीने स्वभावनो आश्रय कर ने विकारनुं कर्तापणुं छोड, तो साचुं प्रतिक्रमण अने प्रत्याख्यान थाय.
आगमनो उपदेश आत्मानुं अकर्तापणुं जाहेर करे छे
‘अप्रतिक्रमण अने अप्रत्याख्याननो जे खरेखर द्रव्य अने भावना भेदे द्विविध (बे प्रकारनो) उपदेश छे
ते, द्रव्य अने भावना निमित्त–नैमित्तिकपणाने जाहेर करतो थको, आत्माना अकर्तापणाने ज जणावे छे. ’
पूर्वना परद्रव्यथी पाछुं न खसवुं ते द्रव्य अप्रतिक्रमण छे; अने पूर्वना विभावथी पाछुं न खसवुं ते भाव
अप्रतिक्रमण छे. ––एम बे प्रकारनुं अप्रतिक्रमण छे.
ए ज प्रमाणे, भविष्यमां कोई पण परद्रव्य मळे तो ठीक एवो भाव ते द्रव्यअप्रत्याख्यान छे; अने
भविष्यनो विकारभाव ठीक एवो भाव ते भावअप्रत्याख्यान छे. –एम बे प्रकारनुं अप्रत्याख्यान छे.
वर्तमान पर्याय स्वभाव तरफ न वळतां जेटली पर तरफ वळे छे तेटलुं अप्रतिक्रमण अने अप्रत्याख्यान छे.
आ बंने प्रकारना अप्रतिक्रमण अने अप्रत्याख्यान छोडवा जेवा छे–एवो जे आगमनो उपदेश छे ते आत्माना
अकर्तापणाने ज बतावे छे. जो आत्मा स्वभावथी तेमनो कर्ता होय तो ते छोडवानो उपदेश होई शके नहीं.
द्रव्य अने भावना भेदथी बे प्रकारे जे अप्रतिक्रमणादिनो उपदेश छे ते एम जाहेर करे छे के परद्रव्य
निमित्त छे ने तेना आश्रये थतो विकार ते नैमित्तिक छे; आम विकारमां पर साथेना निमित्त–नैमित्तिकपणानी
जाहेरात थाय छे, पण तेमां आत्मानी जाहेरात थती नथी, एटले के द्रव्य अने भावनो जे निमित्त–नैमित्तिक
संबंध छे ते आत्मानुं अकर्तापणुं सिद्ध करे छे. ज्यां सुधी निमित्त–नैमित्तिकसंबंधनी द्रष्टि छे त्यांसुधी ज
आत्माने अप्रतिक्रमणादिनुं कर्तापणुं छे, पण स्वभावथी आत्मा विकारनो कर्ता नथी.
मिथ्यात्वनुं प्रतिक्रमण क्यारे थाय?
अहीं जे द्रव्य अने भावनुं निमित्त–नैमित्तिकपणुं छे तेना उपर अज्ञानीनी ज द्रष्टि छे, ने ते ज तेने
बंधनुं कारण छे. ज्ञानीने स्वभावनी द्रष्टिमां पर साथे निमित्त–नैमित्तिकपणुं तूटी गयुं छे. आत्मा सिवाय
जगतनी बधी चीजो परद्रव्य छे, तेनी रुचिथी मिथ्यात्वनी उत्पत्ति थाय छे. निमित्त–नैमित्तिक संबंधने जे
लाभनुं कारण माने ते निमित्त तरफनुं वलण छोडीने स्व तरफ वळे नहि ने तेने मिथ्यात्वनुं प्रतिक्रमण थाय
नहि. तुं पर निमित्तनी रुचि छोड ने स्वभाव तरफ वळ–एवो उपदेश क्यारे बने? –के जो स्वभावथी आत्मा
विकारनो अकर्ता ज होय तो ज ते उपदेश बनी शके.