
अकर्ता पणुं बतावे छे.
भाव पर तरफ वळ्यो तेमां अप्रतिक्रमण अने अप्रत्याख्यान छे अने वर्तमान जे भाव स्वभाव तरफ वळ्यो ते
भाव पोते ज प्रतिक्रमण अने प्रत्याख्यान छे. प्रतिक्रमणनो अने प्रत्याख्याननो भाव जुदो जुदो नथी.
भूतकाळना के भविष्यना विभावनी रुचि तो वर्तमान भावमां छूटे छे; वर्तमान भाव ज्यां स्व तरफ वळ्यो त्यां
तेमांथी भूत–भविष्यनुं अप्रतिक्रमण अने अप्रत्याख्यान छूटी गयुं. माटे नक्की थाय छे के भगवान आत्मा
स्वभावथी विकारनो अकर्ता ज छे. धर्मी जीवने श्रद्धा अपेक्षाए तो क्षणे ने पळे विकारनुं प्रतिक्रमण तेम ज
प्रत्याख्यान वर्ती रह्युं छे. जे जीव रागने पोतानुं कर्तव्य माने छे ने रागरहित ज्ञायकस्वभाव तरफ वळतो नथी
ते जीव, भले महाव्रत पाळतो होय तो पण, क्षणे ने पळे मिथ्यात्व वगेरेनुं अप्रतिक्रमणने अप्रत्याख्यान ज करी
रह्यो छे. जे अज्ञानी जीव पर्यायद्रष्टिथी विकारनो कर्ता थई रह्यो छे तेने आचार्यदेव समजावे छे के–जो भाई!
स्वभावद्रष्टिथी तुं विकारनो अकर्ता छो, माटे विकारनी अने निमित्तनी द्रष्टि छोड. स्वभावना आश्रयथी विकार
थतो नथी पण निमित्त–नैमित्तिक संबंधथी ज विकार थाय छे, माटे स्वभावथी तुं विकारनो कर्ता नथी. –आम
समजीने स्वभावनो आश्रय कर ने विकारनुं कर्तापणुं छोड, तो साचुं प्रतिक्रमण अने प्रत्याख्यान थाय.
अकर्तापणाने ज बतावे छे. जो आत्मा स्वभावथी तेमनो कर्ता होय तो ते छोडवानो उपदेश होई शके नहीं.
जाहेरात थाय छे, पण तेमां आत्मानी जाहेरात थती नथी, एटले के द्रव्य अने भावनो जे निमित्त–नैमित्तिक
संबंध छे ते आत्मानुं अकर्तापणुं सिद्ध करे छे. ज्यां सुधी निमित्त–नैमित्तिकसंबंधनी द्रष्टि छे त्यांसुधी ज
आत्माने अप्रतिक्रमणादिनुं कर्तापणुं छे, पण स्वभावथी आत्मा विकारनो कर्ता नथी.
जगतनी बधी चीजो परद्रव्य छे, तेनी रुचिथी मिथ्यात्वनी उत्पत्ति थाय छे. निमित्त–नैमित्तिक संबंधने जे
लाभनुं कारण माने ते निमित्त तरफनुं वलण छोडीने स्व तरफ वळे नहि ने तेने मिथ्यात्वनुं प्रतिक्रमण थाय
नहि. तुं पर निमित्तनी रुचि छोड ने स्वभाव तरफ वळ–एवो उपदेश क्यारे बने? –के जो स्वभावथी आत्मा
विकारनो अकर्ता ज होय तो ज ते उपदेश बनी शके.