
विकारनो अकारक ज छे, माटे ज ‘तुं विकारने छोड’ एवो आगमनो उपदेश छे. जो विकारनो कर्ता थवानो
आत्मानो स्वभाव होय तो ते छोडवानो उपदेश केम होय?
ठीक’ एवो जे अज्ञानीनो भाव छे ते बंधन भाव छे. ज्यां सुधी परने अने परना आश्रये थता विकारने ठीक
माने त्यां सुधी जीवने मिथ्यात्वादिनुं अप्रतिक्रमण छे; पण ‘तुं पर द्रव्यना आश्रये थता विकारनी रुचि छोड, तुं
निमित्तना आश्रयने छोड’ एवो जे भगवाननो उपदेश छे ते एम जणावे छे के खरेखर आत्मा स्वभावथी
विकारनो कर्ता नथी. ‘परथी तुं पाछो फर’ एवो जे उपदेश छे ते आत्माना अकर्तापणाने ज जाहेर करे छे. जो
आत्मा विकारनो अकर्ता न होय तो ‘तुं परथी पाछो फर ने स्व तरफ वळ’ एवो उपदेश ज न बनी शके.
विकारभाव, तेनी संधि तोड ने आत्मा साथे संधि जोड... एवो सर्वज्ञ भगवाननो उपदेश आत्माना
अकर्तापणानी जाहेरात करे छे.
वस्तु मळे तो ठीक ने तेना लक्षे थतो विभाव ते ठीक एवो भाव रहे ते अप्रत्याख्यान छे. ––एवा भावोने तुं
छोड एवो आगमनो उपदेश छे ते विभावनुं अनित्यपणुं जणावे छे, ने विभावरहित शुद्धस्वभावनुं नित्यपणुं
जणावे छे. माटे आत्मा पोताना कायमी स्वभावथी क्षणिक विभावनो कर्ता नथी. आत्मा पर भावोथी पाछो
खसीने स्वभाव तरफ आवी शके छे, अने स्वभाव तरफ वळतां विकारभाव थतो नथी केम के विकार ते
आत्मानो स्वभाव नथी, आत्मा पोताना स्वभावथी विकारनो अकर्ता छे.
अकर्तापणाने जाहेर करे छे. पर निमित्त उपर लक्ष जाय ते कायमी चीज नथी तेम ज विकार पण कायमी चीज
नथी, ते क्षणिक छे, ते क्षणिक भावोने तुं छोड, एटले