Atmadharma magazine - Ank 096
(Year 8 - Vir Nirvana Samvat 2477, A.D. 1951)
(Devanagari transliteration).

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: २५४ : आत्मधर्म २४७७ : आसो :
“धार्मिकोत्सव – प्रवचनो”
[२]
[श्रावण वद १३: समयसार गा. २८३–८४–८प]
भगवाननो उपदेश एम जणावे छे के आत्मा स्वभावथी विकारनो कर्ता नथी
आ अधिकार सूक्ष्म अने अपूर्व छे. अनादि काळथी पोतानो जे स्वभाव नथी समज्यो ते स्वभावने
समजीने संसारनो अंत आवे तेवी आ वात छे.
आत्मा आ शरीरथी भिन्न कायम ज्ञानस्वभावी वस्तु छे, तेमां स्वभावथी विकार नथी; विकार तो क्षणे
क्षणे पराश्रये उत्पन्न थईने नाश पामे छे. आचार्य भगवान कहे छे के वस्तुस्वभावथी जोतां तो आत्मा
विकारनो अकारक ज छे, माटे ज ‘तुं विकारने छोड’ एवो आगमनो उपदेश छे. जो विकारनो कर्ता थवानो
आत्मानो स्वभाव होय तो ते छोडवानो उपदेश केम होय?
जो जीव पर उपर रुचि अने वलण करे तो अप्रतिक्रमण अने अप्रत्याख्यान रहे छे, तेनो अर्थ ए थयो
के स्वभाव उपर द्रष्टि करे तो ते विकारनो कर्ता नथी. ‘मारो आत्मस्वभाव ठीक नहि ने पर पदार्थ होय तो मने
ठीक’ एवो जे अज्ञानीनो भाव छे ते बंधन भाव छे. ज्यां सुधी परने अने परना आश्रये थता विकारने ठीक
माने त्यां सुधी जीवने मिथ्यात्वादिनुं अप्रतिक्रमण छे; पण ‘तुं पर द्रव्यना आश्रये थता विकारनी रुचि छोड, तुं
निमित्तना आश्रयने छोड’ एवो जे भगवाननो उपदेश छे ते एम जणावे छे के खरेखर आत्मा स्वभावथी
विकारनो कर्ता नथी. ‘परथी तुं पाछो फर’ एवो जे उपदेश छे ते आत्माना अकर्तापणाने ज जाहेर करे छे. जो
आत्मा विकारनो अकर्ता न होय तो ‘तुं परथी पाछो फर ने स्व तरफ वळ’ एवो उपदेश ज न बनी शके.
भगवान! अंदर डोकियुं करीने तुं एकवार आत्माने जो तो खरो, के मारो आत्मा विभावनो अकर्ता ज
छे; स्वभावनी द्रष्टिथी जोतां आत्माने विभावनुं कर्तापणुं छे ज नहि. पर निमित्त अने तेना लक्षे थतो
विकारभाव, तेनी संधि तोड ने आत्मा साथे संधि जोड... एवो सर्वज्ञ भगवाननो उपदेश आत्माना
अकर्तापणानी जाहेरात करे छे.
पूर्वे मने अमुक परवस्तु मळी तो ठीक अने पूर्वे मने विभाव थयो ते ठीक, पूर्वे पुण्य बंधाया ते सारा
हतां–एवो भाव रहे ते अप्रतिक्रमण छे; अने भविष्यमां मने महाविदेहक्षेत्र अने तीर्थंकर भगवान वगेरे पर
वस्तु मळे तो ठीक ने तेना लक्षे थतो विभाव ते ठीक एवो भाव रहे ते अप्रत्याख्यान छे. ––एवा भावोने तुं
छोड एवो आगमनो उपदेश छे ते विभावनुं अनित्यपणुं जणावे छे, ने विभावरहित शुद्धस्वभावनुं नित्यपणुं
जणावे छे. माटे आत्मा पोताना कायमी स्वभावथी क्षणिक विभावनो कर्ता नथी. आत्मा पर भावोथी पाछो
खसीने स्वभाव तरफ आवी शके छे, अने स्वभाव तरफ वळतां विकारभाव थतो नथी केम के विकार ते
आत्मानो स्वभाव नथी, आत्मा पोताना स्वभावथी विकारनो अकर्ता छे.
चिदानंदस्वरूप भगवान आत्मा! तारा स्वभावमां विकार नथी, क्षणिक विकारनो तुं कर्ता नथी. तुं पर
उपर लक्ष न कर, तुं पर लक्षे थता विभावने सारा न मान, ––एवो जे सर्वज्ञनो उपदेश छे ते तारा
अकर्तापणाने जाहेर करे छे. पर निमित्त उपर लक्ष जाय ते कायमी चीज नथी तेम ज विकार पण कायमी चीज
नथी, ते क्षणिक छे, ते क्षणिक भावोने तुं छोड, एटले