
ज्ञानथी आत्मा जणाय छे अने संभळावनार सद्गुरु पण तेने एवुं ज संभळावे छे. ज्ञान ज्ञानमां एकाग्रता
करे एवी क्रियाथी धर्म अने मुक्ति थाय छे, ए सिवाय बीजी कोई क्रियाथी धर्म के मुक्ति थती नथी.
नथी. आत्मा सर्वथा परोक्ष नथी. आत्माने सर्वथा परोक्ष माने एटले के एकला परना ने रागना ज आश्रये
काम करे एम माने तो ते जीव धर्मी नथी. नीचली दशामां साधकने परोक्षज्ञान पण भले हो, परंतु पोते
पोताना ज्ञानस्वभावना स्वसंवेदनमां तो प्रत्यक्ष छे. जो स्वसंवेदन प्रत्यक्ष न होय ने सर्वथा परोक्ष ज होय तो
ते धर्मी नथी. साधकने पण स्वसंवेदनमां आत्मा प्रत्यक्ष छे, सर्वथा परोक्ष नथी. परना आश्रये काम करे एवो
ज्ञाननो स्वभाव नथी; एटले केवळज्ञान थतां संपूर्ण प्रत्यक्षज्ञान खीली जाय छे ने परोक्षज्ञाननो अभाव थई
जाय छे.
आश्रये बहारथी ज्ञान आवे छे एम जे माने छे तेणे गुण–गुणीनो सर्वथा भेद मान्यो छे. आत्मा पोतानी
स्वानुभूतिथी ज प्रकाशे छे–एम कहेवामां, गुणगुणीना सर्वथा भेदनी मान्यतानुं खंडन थई जाय छे.
मान्या छे. आत्मामां श्रद्धा, ज्ञान, चारित्र वगेरे अनंत गुणो छे ने तेमनुं कार्य कथंचित् भिन्न भिन्न छे, एटले
सम्यक्श्रद्धा पछी चारित्र पूरुं थतां वच्चे अमुक काळ लागे छे. श्रद्धामां परिपूर्ण गुणीने पकडतां ते ज क्षणे बधा
गुणोनी शुद्धता एक साथे पूरी प्रगटी जवी जोईए एम जे माने तेणे वस्तुना कथंचित् गुणगुणीभेदने जाण्यो
नथी, एटले तेणे अनेकांतमय आत्मस्वभावने जाण्यो नथी.
थाय एटले साधकदशा ज सिद्ध न थाय. सर्वथा प्रत्यक्षज्ञान तो केवळीने होय छे. नीचली दशामां सम्यग्द्रष्टिने
आत्मानुं ज्ञान थतां ते सर्वथा प्रत्यक्ष थई जाय–एम नथी. सर्वथा प्रत्यक्ष तो केवळज्ञानमां होय, साधकपणामां
सर्वथा प्रत्यक्ष न होय. साधकदशामां आत्मा कथंचित् प्रत्यक्ष होय ने कथंचित् परोक्ष पण होय. स्वानुभूतिनी
अपेक्षाए साधकने पण आत्मा प्रत्यक्ष छे, पण केवळज्ञानीनी जेम असंख्यप्रदेशो प्रत्यक्ष देखाता नथी. जेणे एक
साथे ज सर्वथा प्रत्यक्ष ज्ञान थई जवानुं मान्युं, पण अंशे प्रत्यक्ष साथे परोक्षज्ञान पण होय छे एम न मान्युं,
तेणे गुणगुणीभेद न मानतां गुणगुणीने सर्वथा अभेद मान्यो छे. तथा साधकने अंशे पण प्रत्यक्षज्ञान न थाय
ते सर्वथा परोक्ष ज होय–एम माने तो तेणे गुणगुणीनो सर्वथा भेद मान्यो छे.
एटले के धर्मनी क्रिया छे. बहारथी ज्ञान थाय एम मानवुं ते तो स्थूळ मिथ्यात्व छे. बहारथी तो आत्मानुं ज्ञान
थतुं नथी, ने अंतरमां ज्ञानथी आत्माने जाणतां ते क्षणे ज पूर्ण ज्ञान प्रगटी जाय एम पण नथी; ते ज्ञानमां
पूर्ण स्वभाव जणायो छे पण हजी पूर्णता प्रगटी गई नथी. विकार ते आत्मानो स्वभाव नथी, विकार वगरनो
आत्मानो परिपूर्ण स्वभाव छे; ते स्वभाव ज्ञानमां जणाय तेनी साथे ज बधो विकार टळी जवो जोईए–एम
माननार पण आत्माना अनंत गुणोने जाणतो नथी. जेम छे तेम बधा पडखेथी आत्माने जाण्या वगर तेनी
यथार्थ सम्यक्श्रद्धा थाय नहि, सम्यक्–