
स्वानुभूति आत्मानी ओळखाण तथा श्रद्धाथी थाय छे.
दशामां साधक धर्मात्माने स्वसंवेदनप्रत्यक्षथी आत्मानुं सम्यग्ज्ञान थवा छतां, ते क्षणे ज पूर्ण प्रत्यक्षज्ञान
प्रगटतुं नथी. छतां जेवो केवळी भगवाने आत्माने जाण्यो छे तेवो ज आत्मा स्वसंवेदन पूर्वक अनुमानथी
साधकना ज्ञानमां आवी गयो छे एटले तेने पण सम्यग्ज्ञान थयुं छे. श्रद्धामां आखो आत्मा आव्यो छतां ते
क्षणे पर्यायमां आखो प्रगटे नहि–आवो अनेकांतस्वभाव छे. श्रद्धामां पूरो परमेश्वर आव्यो छे छतां पर्यायमां
हजी पामरता छे, ज्ञानमां पूर्ण स्वभाव आव्यो छे छतां ज्ञान पोते हजी पूरुं परिणमतुं नथी, ––वस्तु–स्वरूप ज
आवुं अनेकांतात्मक छे. जेम छे तेम वस्तुने ख्यालमां लईने निर्णय करशे तो ज ज्ञान वस्तुना स्वभाव तरफ
वळशे. वस्तुस्वरूपना यथार्थ निर्णय वगर निर्विकल्पता थाय नहि.
परोक्ष ज माने तो तेने आत्मानुं स्वसंवेदनप्रत्यक्ष क्यांथी थाय?
बारमा गुणस्थान सुधीना बधा जीवो अज्ञानी ठरशे एटले साधकदशानो ज अभाव थशे, साधकदशाना
अभावमां सिद्धदशानो पण अभाव ठरशे. साधकने स्वसंवेदनप्रत्यक्षनी साथे परोक्षज्ञान पण भले हो, पण
तेनी श्रद्धानुं जोर तो स्वभावसन्मुख ज वर्ते छे, ते श्रद्धाना जोरे तेना ज्ञानमां स्वसंवेदनप्रत्यक्ष वधतुं जाय छे
ने परोक्षपणुं घटतुं जाय छे. जो परोक्षज्ञानने न माने तो साधकदशा ज साबित न थाय.
पूर्ण आत्माने तथा पोताने (–उघडेला सम्यग्ज्ञानने) जाणवानी ताकात छे. घणुं ज्ञान थया पछी ज ज्ञान पोते
पोताने जाणी शके–एवुं नथी. ज्यां ज्ञानस्वभावना आश्रये ज्ञाननी क्रिया थई ने सम्यग्ज्ञान खील्युं ते क्षणे ज
ज्ञानस्वसंवेदनथी पोते पोताने जाणे छे–आवो ज्ञान स्वभाव छे. आवा स्वानुभूतिथी प्रकाशमान शुद्ध आत्माने
जाणवो ते अपूर्व मांगळिक छे; आ ज धर्म छे. आ सिवाय बीजी कोई रीते धर्म थतो नथी.
द्वेष होवा छतां सम्यक्श्रद्धा–ज्ञानरूप धर्म होई शके छे. रागने धर्म माने तो तो श्रद्धा–ज्ञान पण मिथ्या ज छे.
परंतु रागरहित ज्ञानस्वभावने जाणीने तेनी श्रद्धा थई होय ने राग सर्वथा टळ्यो न होय तो तेथी कांई श्रद्धा–
ज्ञान मिथ्या थई जता नथी. तेम ज त्यां राग–द्वेषरूप अधर्म छे माटे सम्यक्श्रद्धा–ज्ञानमां खामी छे एम पण
नथी; राग–द्वेष होवा छतां क्षायकश्रद्धा पण होय छे. केम के श्रद्धा–ज्ञान–चारित्र वगेरे अनंतगुणो छे ते सर्वथा
अभेद नथी. पूर्णनी श्रद्धा थया पछी पूर्णदशा प्रगटतां वार लागे छे. परंतु, पूर्णता प्रगट थवानो स्वभाव छे ते
प्रतीतमां आव्यो एटले अल्पकाळे पूर्णता प्रगट थया विना रहेशे नहि.
चारित्र त्रणे समाई जाय छे.