Atmadharma magazine - Ank 096
(Year 8 - Vir Nirvana Samvat 2477, A.D. 1951)
(Devanagari transliteration).

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: २६० : आत्मधर्म २४७७ : आसो :
अनेकान्त
[अनेकान्त दरेक वस्तुने ‘पोताथी पूर्ण’ ने ‘परथी पृथक्’ जाहेर करे छे]

दरेक वस्तु अनेकांन्तस्वरूपथी नक्की थाय छे. एक वस्तुमां वस्तुपणानी निपजावनारी अस्ति–नास्ति
आदि परस्पर विरुद्ध बे शक्तिओनुं प्रकाशवुं ते अनेकान्त छे. दरेक वस्तु पोतापणे अस्तिरूप छे ने परपणे
नास्तिरूप छे, आवा अस्ति–नास्तिरूप अनेकान्त वडे दरेक वस्तुनुं स्वरूप नक्की थाय छे. आ ज न्याये,
उपदान–निमित्त, निश्चय–व्यवहार अने द्रव्य–पर्याय ए दरेक बोलनुं स्वरूप पण अस्ति–नास्तिरूप अनेकान्त
वडे नीचे मुजब नक्की थाय छे:– –
निमित्त संबंधी अनेकान्त
उपादन अने निमित्त ए बंने भिन्न पदार्थो छे; बंने पदार्थो पोतपोताना स्वरूपे अस्तिरूप छे ने बीजाना
स्वरूपे नास्तिरूप छे; आ रीते निमित्त स्वपणे छे ने परपणे नथी, निमित्त निमित्तरूपे अस्तिरूपे छे ने
उपादानपणे ते नास्तिरूप छे. एटले उपादानमां निमित्तनो अभाव छे तेथी उपादानमां निमित्त कांई करी शके
नहि. निमित्त निमित्तनुं कार्य करे ने निमित्त उपादाननु कार्य न करे–आवुं अनेकान्तस्वरूपे छे. आवा
अनेकान्तस्वरूपे निमित्तने जाणे तो ज निमित्तनुं यथार्थ ज्ञान थाय छे. ‘निमित्त निमित्तनुं कार्य पण करे ने
निमित्त उपादाननुं कार्य पण करे’ एम कोई माने तो तेनो अर्थ ए थयो के निमित्त पोतापणे अस्तिरूप छे ने
परपणे पण अस्तिरूप छे, एम थतां निमित्तपदार्थमां अस्ति–नास्तिरूप परस्पर विरुद्ध बे धर्मो सिद्ध न थया,
माटे ते मान्यता एकांत छे. एटले ‘निमित्त उपादाननुं कांई पण कार्य करे’ एम जेणे मान्युं तेणे आस्ति–
नास्तिरूप अनेकान्त वडे निमित्तना स्वरूपने जाण्युं नथी पण पोतानी मिथ्या कल्पनाथी एकांत मानी लीधुं छे;
तेणे उपादान–निमित्तनी भिन्नता नथी मानी पण ते बंनेनी एकता मानी छे तेथी तेनी मान्यता मिथ्या छे.
उपादान संबंधी अनेकान्त
उपादान स्वपणे छे ने परपणे नथी, एम उपादाननो अस्ति–नास्तिरूप अनेकान्तस्वभाव छे. उपादानना
कार्यमां उपादानना कार्यनी अस्ति छे ने उपादानना कार्यमां निमित्तना कार्यनी नास्ति छे. ––आवा अनेकान्त वडे
दरेक वस्तुनुं भिन्न भिन्न स्वरूप जणाय छे, तो उपादनमां निमित्त शुं करे? कांई ज करे नहि. जे आम जाणे तेणे
उपादानने अनेकान्तस्वरूपे जाण्युं छे; पण ‘उपादानमां निमित्त कांई पण करे’ ––एम जे माने तेणे उपादानना
अनेकान्त स्वरूपने जाण्युं नथी पण एकान्तस्वरूपे मान्युं छे, तेथी तेनी मान्यता मिथ्या छे.
निश्चय अने व्यवहार संबंधी अनेकान्त
उपादान निमित्तनी जेम निश्चय अने व्यवहारनुं पण अनेकान्तस्वरूप छे. निश्चय छे ते निश्चयपणे
अस्तिरूप छे ने व्यवहारपणे नास्तिरूप छे; व्यवहार छे ते व्यवहारपणे अस्तिरूप छे ने निश्चयपणे नास्तिरूप
छे. आ प्रमाणे कथंचित् परस्पर विरुद्ध बे धर्मो होवाथी ते अनेकान्तस्वरूप छे. निश्चय अने व्यवहारनो
एकबीजामां अभाव छे एम अनेकान्त बतावे छे, तो व्यवहार निश्चयमां शुं करे?
व्यवहार व्यवहारनुं कार्य करे ने व्यवहार निश्चयनुं कार्य न करे एटले के व्यवहार बंधननुं कार्य करे ने
अबंधपणानुं कार्य न करे, आवो व्यवहारनो अनेकान्तस्वभाव छे. एने बदले व्यवहार व्यवहारनुं पण कार्य करे
ने व्यवहार निश्चयनुं कार्य पण करे–एम जे माने तेणे व्यवहारना अनेकान्तस्वरूपने जाण्युं नथी पण व्यवहारने
एकांतपणे मान्यो छे.