Atmadharma magazine - Ank 096
(Year 8 - Vir Nirvana Samvat 2477, A.D. 1951)
(Devanagari transliteration).

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: आसो : २४७७ आत्मधर्म : २६१ :
व्यवहार करतां करतां निश्चय थाय अर्थात् व्यवहार निश्चयनुं कारण थाय–एम खरेखर माने तेणे
निश्चय अने व्यवहारने जुदा न जाण्या पण बंनेने एक ज मान्या, एटले ते पण एकांत मान्यता थई.
द्रव्य अने पर्याय संबंधी अनेकान्त
द्रव्य–पर्याय संबंधी अनेकान्तस्वरूप आ प्रमाणे छे; द्रव्य द्रव्यपणे छे ने आखुं द्रव्य एक पर्यायपणे नथी,
पर्याय पर्यायपणे छे ने एक पर्याय आखा द्रव्यपणे नथी. तेमां द्रव्यना आश्रये धर्म थाय छे, पर्यायना आश्रये
धर्म थतो नथी. पर्यायबुद्धिथी धर्म थाय एम मानवुं ते एकांत छे. द्रव्यना आश्रये धर्म थाय छे तेने बदले
पर्यायना आश्रये जेणे धर्म मान्यो तेनी मान्यतामां पर्याये ज द्रव्यनुं काम कर्युं एटले पर्याय ते ज द्रव्य थई गयुं,
तेनी मान्यतामां द्रव्य–पर्यायनुं अनेकान्तस्वरूप न आव्युं. द्रव्यद्रष्टिथी–द्रव्यना आश्रये ज धर्म थाय ने
पर्यायबुद्धिथी धर्म न थाय एम मानवुं ते अनेकान्त छे.
आ प्रमाणे एकान्त अनेकान्तनुं स्वरूप समजवुं. जे जीव आवुं अनेकान्त वस्तुस्वरूप समजे ते जीव
निमित्त, व्यवहार के पर्यायनो आश्रय छोडीने पोताना द्रव्यस्वभाव तरफ वळ्‌या वगर रहे नहीं, एटले
स्वभावना आश्रये तेने सम्यग्दर्शन–ज्ञानादि धर्म थाय; आ रीते अनेकान्तनी ओळखाणथी धर्मनी शरूआत
थाय छे. जे जीव आवुं अनेकान्तस्वरूप न जाणे ते कदी परनो आश्रय छोडीने पोताना स्वभाव तरफ वळे नहि
ने तेने धर्म थाय नहि.
–अषाड सुद १ वीर सं. २४७६ रात्रिचर्चामांथी.
एक वैराग्य – प्रसंग
सोनगढमां भादरवा वद त्रीजना दिवसे भाई श्री हिंमतलाल
छोटालालना धर्मपत्नी लाभकुंवरबेननो ३प वर्षनी वये, फक्त बार कलाकना
आकस्मिक व्याधिथी स्वर्गवास थयो छे. स्व० लाभुबेन छेल्लां केटलाक वखतथी
श्राविकाशाळामां जईने उत्साहपूर्वक तत्त्वनो अभ्यास करता हता. तेमना अंत
समयना एकाद कलाक पहेलांं पू. गुरुदेवश्री तेमने दर्शन कराववा पधारेला, अने
ज्यारे पू. गुरुदेवश्रीए मांगळिक संभळावी लीधुं के तरत ज मोटा अवाजे ‘“
शांति’... एम उत्साहपूर्वक ते बोली ऊठ्या हता; तेमनो उत्साह जोईने पू.
गुरुदेवश्रीए कह्युं: ‘बेन! आत्मानुं ध्यान राखजो!’ आ उपरथी छेवट सुधीनी
तेमनी जागृति जणाई आवे छे. जीवनमां करेला सत्समागमना संस्कार साथे लई
जईने तेमणे पोतानुं जीवन सार्थक कर्युं छे. खरेखर! आ क्षणभंगुर जीवनमां
सत्समागम ए ज जीवने शरण छे. जीवननी आवी क्षणभंगुरता देखीने
मुमुक्षुओए तो क्षणमात्रना पण प्रमाद वगर शीघ्र आत्मकार्य करी लेवा जेवुं छे.
लाभुबेनना स्वर्गवासना बीजे दिवसे भाईश्री हिंमतभाई मुंबईथी
आवी पहोंच्या; आ प्रसंगे तेमणे आर्त–रौद्रध्यान न करतां खूब धैर्य राखीने
पोताना जीवनने वैराग्य तरफ वाळ्‌युं छे अने ब्रह्मचर्यनी प्रतिज्ञा अंगीकार करी
छे, ते प्रशंसनीय छे.
स्व० लाभुबेनना स्मरणार्थे आत्मधर्मना ग्राहकोने एक पुस्तक भेट
आपवा माटे शेठ छोटालाल नारणदास झोबाळिया तरफथी रूा. १००१
आपवामां आव्या छे; ते उपरांत रूा. प०२ जुदा जुदा खातामां तेमणे आप्या
छे. ते बदल तेमनो आभार मानवामां आवे छे.