Atmadharma magazine - Ank 096
(Year 8 - Vir Nirvana Samvat 2477, A.D. 1951)
(Devanagari transliteration).

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: २६२ : आत्मधर्म २४७७ : आसो :
‘आत्मधर्म’ ना लेखोनी कक्कावारी
वर्ष आठमुं: अंक ८प थी ९६
विषय अंक–पृष्ठ विषय अंक–पृष्ठ
अ–आ–उ–ए ‘आत्मधर्म’ ना लेखोनी कक्कावारी ९६–२६२
अग्नि अने आत्मा ९१–१४२ आफ्रिकामां मुमुक्षु–मंडळनी स्थापना ८६–२२
अनंत भवभ्रमणना मूळने छेदी नांखनारुं निश्चय– उत्पाद–व्यय–ध्रुवस्वभाव ९०–१३प
सम्यग्दर्शन केम प्रगटे? ८प–१० ‘उत्पाद–व्यय–धौव्ययुक्त सत्’ ९१–१प२
अनुपम मोक्षमार्ग ८प–४ एक वैराग्य समाचार ९२–१७९
अभिनंदन–पत्र (पू. गुरुदेवना ६२मा जन्मोत्सव एक वैराग्य–प्रसंग ९६–२६१
प्रसंगे: काव्य) ९२–पत्रिका क–क्ष–ख–ग–च
अरे, मोह! ८८–७१ कल्याण ९२–१६३
अवतार बंध थवानो उपाय ८८–८० क्यारे निहाळुं सीमंधरनाथने रे..! (काव्य) ८८–७१
‘अवसर बार बार नहि आवे’ ९४–२०१ क्षण लाखेणी जाय छे! ८प–१
अहो! अहो! श्री सद्गुरु! ९१–१४प खेडूतनी जिज्ञासा! ९२–२६१
अहो, रत्नत्रय–महिमा! ९प–२२प ग्राहकोने सूचना ८७–७०
‘अहो! वाणी तारी...’ ८८–७९ चैतन्यतत्त्वनो महिमा अने दुर्लभता ९३–१८२
अहो! वीतरागी तात्पर्य ८७–६७
अहो! आ वात कदी सांभळी नथी ९६–२प३ चैतन्यभगवानना दर्शन करवा माटेनुं आंगणुं
अनेकान्त ९६–२६० केवुं होय? ८प–१४
अहो! पुरुषार्थ ९६–२६प ‘चैतन्यभानुनो उदय’ ९१–१४४
आचार्यदेव आत्मवैभवथी शुद्ध आत्मा देखाडे छे ८९–८३ ज–झ–झ
आज पधार्या सीमंधरनाथ(स्वागतनुं भव्य चित्र) ८९–११९ जिज्ञासु शिष्यने श्रीगुरु भवभ्रमणना अंतनो
उपाय समजावे छे... ८प–प
आज मारा हृदयमां आनंदसागर ऊछळे (काव्य) ८९–११९ ‘जिनप्रतिमा जिनसारखी’ ८९–८८
आजीवन ब्रह्मचर्यनो एक आदर्श प्रसंग ९२–१६२ जिनराजनी आज्ञा ९३–२००
आजे भेट्या... ए भगवान! ८९–८३ जिनवाणीमाता जागृत करे छे. ९२–१७९
आत्म–मार्ग ८८–७८ जिनेश्वरदेवना लघुनंदननी श्रद्धा केवी होय? ९१–१४३
‘आत्मा कोण छे ने कई रीते पमाय?’ (१) जीवने संसारपरिभ्रमण अने दुःख शा कारणे
[प्रवचनसारना परिशिष्ट उपरनां प्रवचनो] ९४–२१३ थाय छे? (जैनदर्शन शिक्षणवर्गनो निबंध) ९३–१९९
‘आत्मा कोण छे ने कई रीते पमाय?’ (२) ९प–२२७ जीवे पुण्यनी वात सांभळी छे, –धर्मनी वात कदी
आत्मा डोली ऊठे छे!
९२–१६३ सांभळी नथी ८६–३७
आत्मार्थीना मनोरथगर्भित श्री सद्गुरु–स्तुति ८९–१२० जे जीव आत्मार्थी होय ते शुं करे? ९१–१४प
आत्मार्थीनुं पहेलुं कर्तव्य: (१) ८प–१० जे शुद्ध जाणे आत्मने ते शुद्ध आत्म ज मेळवे ९३–१८९
आत्मार्थीनुं पहेलुं कर्तव्य: (२) ८प–१४ जैन तिथि दर्पण ८६–४०
आत्मार्थीनुं पहेलुं कर्तव्य: (३) ८६–२७ ज्ञानीनी शिखामण ८८–८०
आत्मार्थीनुं पहेलुं कर्तव्य: (४) ८६–३० ज्ञायकस्वभावी शुद्ध जीवनो अनुभव ते ज नव–
आत्मार्थीनुं पहेलुं कर्तव्य: (५) ९१–१४७ तत्त्वना ज्ञाननुं प्रयोजन छे अने ते ज सम्यग्दर्शन छे. ९४–२०७
आत्मार्थीनुं पहेलुं कर्तव्य: (६) ९२–१६८ झेर उतारवानो मंत्र ८९–९७
आत्मार्थीनुं पहेलुं कर्तव्य: (७) ९२–१८३ त–थ–द–ध
आत्मार्थीनुं पहेलुं कर्तव्य: (८) ९४–२०७ तीर्थंकरोना कुळनी टेक ९१–१४३
आत्मार्थीनुं पहेलुं कर्तव्य: (९) ९प–२३९ .... तो मनुष्यपणुं शुं कामनुं? ९३–१८१