Atmadharma magazine - Ank 096
(Year 8 - Vir Nirvana Samvat 2477, A.D. 1951)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 18 of 21

background image
: आसो : २४७७ आत्मधर्म : २६३ :
थाक्यानो विसामो ९२–१८० ब्रह्मचर्य प्रतिज्ञा ९०–१२६
दिव्यध्वनिमां भगवाने कहेली प्रभुता ९२–१७८ ब्रह्मचर्य प्रतिज्ञा ९०–१२६
दुनियामां कोण महिमावंत? ९०–१२१ ब्रह्मचर्य प्रतिज्ञा ९२–१६२
धन्य ए अवतार! ९१–१४६ ब्रह्मचर्य प्रतिज्ञा ९३–१८३
धन्य ए सीमंधरप्रभुनो प्रतिष्ठा–महोत्सव! ८९–८३ ब्रह्मचर्य प्रतिज्ञा ९४–२०२
धन्य ते जन्म! ९१–१४१ ब्रह्मचर्य प्रतिज्ञा ९६–२६४
धन्य ते मुनिवरा! ९प–२४६ भक्तो कहे छे: अमने भगवान भेट्या! ८९–११३
धन्य निहाळुं सीमंधरनाथने रे... (काव्य) ८९–११८ भगवान आत्मानी प्रसिद्धि ९प–२३९
धन्य हो, ते राजमार्गी मुनिवरोने! ९०–१३४ भगवानना भक्तना हृदयमां ऊछळती
धर्मक्रिया ९४–२०२ भक्तिनी लहरीओ ८९–९०
धर्मनी विधि अने धर्मनां निमित्त ९प–२४२ भगवाननी भावना कोने जागे? ८९–११प
धर्मनुं फळ ९४–२१३ भगवान श्री कुंदकुंद–कहान जैन–शास्त्रमाळाना
“धार्मिकोत्सव–प्रवचनो” [] ९६–२४९ गुजराती प्रकाशनो ८७–४२
“धार्मिकोत्सव–प्रवचनो” [] ९६–२प४ भगवान श्री कुंदकुंद–कहान जैन–शास्त्रमाळाना
न–प हिंदी–प्रकाशनो ८७–६९
‘नमो अरिहंताणं’ ८९–९८ भगवान श्री सीमंधरजिन–स्वागत–अंक ८९–८३
नवतत्त्वनुं ज्ञान ते सम्यग्दर्शननो व्यवहार छे ८६–३० भगवाने कहेलां नव तत्त्वो ९०–१२२
नवतत्त्वनुं स्वरूप: तेमां जीव अजीवना ‘भावे भवनो अभाव’ ९१–१प१
परिणमननी स्वतंत्रता ९२–१६८ भूतार्थस्वभावना आश्रये सम्यग्दर्शन ९१–१४७
नवतत्त्वो अने धर्म ९०–१२६ ‘भोगी नहि पण योगी’ ९१–१४६
निश्चयसम्यग्दर्शननो मार्ग ८६–२७ म–ल–व
नियमसार ९६–२६६ महोत्सव ८८–७१
पदार्थना स्वरूपनुं सूक्ष्मविज्ञान ९२–१६४ महोत्सवना समाचार ९०–१२७
पदार्थोनो परिणामस्वभाव ८७–६३ मंगल–जन्मोत्सव ९२–१६२
परम कल्याणनुं मूळियुं सम्यग्दर्शन प्रगटवा
माटेनी भूमिका ९३–१८३ मुक्ति अने संसार
८६–३प
परमश्रुत... अपूर्व वाणी ९१–१४प मोक्षतत्त्व ८६–३८
परमात्मानी भक्ति ९१–१४२ मोक्षतत्त्वनुं साधन ८८–७१
पहेलांं... अने हवे.. ९१–१४४ ‘मोक्षनी मंडळीमां भळी जा? ’ ८प–९
पुण्य अने धर्म ९३–१९४ मोक्षार्थीने मुक्तिनो उल्लास ८९–११२
पुण्य, पाप अने धर्म संबंधमां आत्मार्थी लोकोने खबर नथी ८८–७३
जीवनो विवेक केवो होय? ८८–७९ वस्तुविज्ञान–अंक ८७–४१
पूजारी जोईए छे ८६–४० ‘विचरंता वीस जिनने वंदुं भावे’ ८९–११७
प्रकाश पहेलांंनी संध्या ८९–११प विद्यार्थीओ माटे श्री जैनदर्शन शिक्षणवर्ग ९१–१प८
प्रभावना (स्मृति अने आभार) ८९–८७ वीतरागना भक्त केवा होय? ८९–१०२
प्राथमिक भूमिकाना जिज्ञासुओने खास उपयोगी वीतरागभाव ए ज धर्म ९३–२००
धार्मिक साहित्य ९०–१४० वीतरागी विज्ञानमां जणातो विश्वना
प्राथमिक भूमिकाना जिज्ञासुओने खास उपयोगी
ज्ञेयपदार्थोनो स्वभाव ८७–४३
धार्मिक साहित्य ९१–१६० वीतरागनां वचन ९६–२४७
प्रौढ वयना गृहस्थो माटे: जैनदर्शन शिक्षणवर्ग ९३–१९३
ब–भ श–श्र
बादशाहनो हुकम ८९–८९ शुद्ध उपयोग ते धर्म (१) ८८–७४
बाह्यप्रवृत्तिनी मीठास ८८–७३ शुद्ध उपयोग ते धर्म (२) ९४–२०३
बोटाद शहेरमां जिनमंदिरनुं खातमुहूर्त ९प–२२६ शुद्ध चैतन्यनी उपासनानो उपाय–साम्यभाव ९१–१प७