Atmadharma magazine - Ank 096
(Year 8 - Vir Nirvana Samvat 2477, A.D. 1951)
(Devanagari transliteration).

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[ज्ञानीनां वचन पुरुषार्थ–उत्तेजक होय छे]
(श्रीमद् राजचंद्रना पत्रोमांथी केटलाक अवतरणो)
जो ईच्छो परमार्थ तो करो सत्य पुरुषार्थ भवस्थिति आदि नाम लई, छेदो नहि आत्मार्थ.
–आत्मसिद्धि: १३०
आत्मा पुरुषार्थ करे तो शुं न थाय? मोटा मोटा पर्वतोना पर्वतो छेदी नांख्या छे; अने केवा केवा विचार
करी तेने रेलवेना काममां लीधा छे! * आ तो बहारनां काम छे छतां जय कर्यो छे. आत्माने विचारवो ए कांई
बहारनी वात नथी. अज्ञान छे ते मटे तो ज्ञान थाय.
अनुभवी वैद्य तो दवा आपे, पण दरदी जो गळे उतारे तो रोग मटे; तेम सद्गुरु अनुभव करीने
ज्ञानरूप दवा आपे, पण मुमुक्षु ग्रहण करवारूप गळे उतारे त्यारे मिथ्यात्वरूप रोग टळे.
बे घडी पुरुषार्थ करे तो केवळज्ञान थाय एम कह्युं. रेलवे आदि गमे तेवो पुरुषार्थ करे तो पण बे घडीमां
तैयार थाय नहीं; तो पछी केवळज्ञान केटलुं सुलभ छे ते विचारो.
जे वातो जीवने मंद करी नांखे, प्रमादी करी नांखे तेवी वातो सांभळवी नहीं. एथी ज जीव अनादि
रखड्यो छे. भवस्थिति, काळ आदिनां आलंबन लेवां नहीं. ए बधा बहानां छे.
जीवने संसारी आलंबनो–विटंबनाओ–मूकवां नथी; ने खोटां आलंबन लईने कहे छे के कर्मनां दळियां छे
एटले माराथी कांई बनी शकतुं नथी. आवां आलंबन लई पुरुषार्थ करतो नथी. जो पुरुषार्थ करे, ने भवस्थिति
के काळ नडे त्यारे तेनो उपाय करीशुं. पण प्रथम पुरुषार्थ करवो.
साचा पुरुषनी आज्ञा आराधे ते पण परमार्थरूप ज छे. तेमां लाभ ज थाय. ए वेपार लाभनो ज छे.
जे माणसे लाखो रूपिया सामुं पाछुं वाळीने जोयुं नथी, ते हवे हजारना वेपारमां बहानां काढे छे; तेनुं
कारण अंतरथी आत्मार्थनी ईच्छा नथी. जे आत्मार्थी थया ते पाछुं वाळीने सामुं जोता नथी. पुरुषार्थ करी सामा
आवी जाय छे. शास्त्रमां कह्युं छे के आवरण, स्वभाव, भवस्थिति पाके क्यारे? तो कहे के पुरुषार्थ करे त्यारे.
पांच कारणो मळे त्यारे मुक्ति थाय. ते पांचे कारणो पुरुषार्थमां रह्यां छे. अनंता चोथा आरा मळे, पण
पोते जो पुरुषार्थ करे तो मुक्ति प्राप्त थाय. जीवे अनंता काळथी पुरुषार्थ कर्यो नथी. बधां खोटां आलंबनो लई
मार्ग आडा विघ्नो नांख्यां छे. कल्याणवृत्ति ऊगे त्यारे भवस्थिति पाकी जाणवी. शूरातन होय तो वर्षनुं काम बे
घडीमां करी शकाय.
[पृ. ४३२]
ज्ञानीनुं वचन पुरुषार्थ प्रेरे तेवुं होय. अज्ञानी शिथिल छे, तेथी एवा हीनपुरुषार्थनां वचनो कहे छे.
पंचकाळनी, भवस्थितिनी, के आयुषनी वात मनमां लाववी नहीं; अने एवी वाणी पण सांभळवी नहीं.
[पृ. ४१२]
भवस्थिति, पंचमकाळमां मोक्षनो अभाव आदि शंकाओथी जीवे बाह्य वृत्ति करी नाखी छे. पण जो
आवा जीवो पुरुषार्थ करे, ने पंचमकाळ मोक्ष थतां हाथ झालवा आवे त्यारे तेनो उपाय अमे लईशुं. ते उपाय
कांई हाथी नथी, जळहळतो अग्नि नथी. मफतनो जीवने भडकावी दीधो छे. जीवने पुरुषार्थ करवो नथी; अने तेने
लईने बहानां काढवा छे. आ पोतानो वांक समजवो. समतानी वैराग्यनी वातो सांभळवी, विचारवी. बाह्य
वातो जेम बने तेम मूकी देवी. जीव तरवानो कामी होय, ने सद्गुरुनी आज्ञाए वर्ते, तो बधी वासनाओ जती
रहे.
[पृ. ४२६–७]
जीवोने एवो भाव रहे छे के, सम्यक्त्व अनायासे आवतुं हशे; परंतु ते तो प्रयास–पुरुषार्थ–कर्या विना
प्राप्त थतुं नथी. [पृ. ४९२]
सत्पुरुषनी वात पुरुषार्थने मंद करवानी होय नहीं. पुरुषार्थने उत्तेजन आपवानी होय. [पृ. ४२८]
पुरुषार्थ करे तो कर्मथी मुक्त थाय. अनंत काळनां कर्मो होय, अने जो यथार्थ पुरुषार्थ करे तो कर्म एम न
कहे के हुं नहीं जाउं. बे घडीमां अनंता कर्मो नाश पामे छे. आत्मानी ओळखाण थाय तो कर्म नाश पामे.
[पृ. ४१७]
* अहीं आ कथन मात्र द्रष्टांतरूप छे–एम समजवुं.
(अहीं आपेला अवतरणो गुजराती बीजी आवृत्तिना छे.)