प्रसिद्धि करवा माटे, आत्मानो अने ज्ञाननो लक्ष्य–लक्षण भेद पाडीने समजाव्युं छे.
अने आत्मानो अनुभव थाय. भाई! आ बधुं जाणे छे ते ज्ञान तो आत्मानुं छे, माटे ते ज्ञानने आत्मा तरफ
वाळ. आत्माना वलणमां रहीने स्व–परने जाणे तेवी ज्ञाननी ताकात छे. लोको सामान्यपणे ज्ञानने तो जाणे छे,
तेथी ज्ञान तो तेमने प्रसिद्ध छे पण ज्ञान जेनुं लक्षण छे एवा आत्माने तेओ जाणता नथी एटले आत्मा
अनादिथी अप्रसिद्ध छे; तेथी प्रसिद्ध एवा ज्ञानवडे, अप्रसिद्ध आत्माने प्रसिद्ध कराववा माटे लक्षण अने लक्ष्य
एवा विभाग पाडीने समजाव्युं छे.
माने छे. तेने अहीं समजावे छे के ज्ञाननुं लक्ष्य तो आत्मा छे. माटे ज्ञानने आत्मा तरफ वाळीने ते
ज्ञानलक्षण वडे आत्माने प्रसिद्ध कर. आ टीकानुं नाम ‘आत्मख्याति’ छे, आत्मख्याति एटले आत्मानी
प्रसिद्धि, आत्मानो अनुभव; ते आत्मप्रसिद्धि केम थाय तेनी आ वात चाले छे. ज्ञानलक्षणवडे ज
आत्मानी प्रसिद्धि थाय छे.
आत्मानी रुचि होय तेने प्रथम तेनुं श्रवण, ग्रहण अने धारण तो होय ज छे. अहीं तो हवे श्रवण, ग्रहण,
धारण अने रुचि पछी अंतरमां तेनुं परिणमन केम थाय तेनी आ वात छे.
प्रसिद्धिनुं साधन छे.
नथी आवतो पण ज्ञानादि अनंतगुणोनो पिंड आत्मा लक्षमां आवे छे. आत्मा अनंतधर्मोना समुदायरूप मूर्ति
छे एम कहीने अहीं अनेकांत सिद्ध कर्यो. अनंतधर्मो कहेवामां ज्ञाननी घणी विशाळता छे.
कोई वार एक समयनी पर्यायमां विकार थाय तेने पण आत्मानो धर्म कहेवामां आवे छे. पण अहीं तो
आत्मानी शुद्ध शक्तिओनुं ज वर्णन छे. ज्ञानलक्षण छे ते आत्माने विकारथी तो जुदो बतावे छे, माटे
अहीं आत्माने अनंत धर्मोवाळो कह्यो तेमां विकारी धर्मो न लेवा. अहीं तो ज्ञानलक्षणथी शुद्ध आत्मद्रव्यनुं
लक्ष कराववुं छे. ज्ञानमां ध्येय कोने बनाववुं तेनी आ वात छे. आत्मा ज्ञानमात्र छे एम कहेतां, ज्ञाननी
साथे रहेला रुचि–प्रतीति, स्थिरता, आनंद, प्रभुत्व, स्वच्छत्व वगेरे अनंतधर्मोना पिंडरूप आत्माने ध्येय
बनाववो. ज्ञानने अंतर्मुख करीने एवा आत्माने ध्येय बनावतां आत्मानी प्रसिद्धि थाय छे एटले के
सम्यक्श्रद्धा–ज्ञान प्रगटे छे.
आचार्यदेव एम कहे छे के हे भाई! जाणवामां पर तरफनुं के राग तरफनुं वलण जाय ते तारुं स्वलक्षण
नथी, ज्ञान साथे त्रिकाळ अविनाभावी स्वभाववाळा अनंतगुणना पिंडस्वरूप आत्मा छे ते तरफ ज्ञाननुं
लक्ष कर. रागादि