तो खरेखर ज्ञानथी भिन्न छे माटे ते रागादि भावोने ज्ञाननुं लक्ष्य न बनाव. आत्मा तरफ वळतुं ज्ञान ते ज
तारुं स्वलक्षण छे, ने एवा स्वलक्षणथी ज आत्मानो अनुभव थाय छे.
तो आत्माथी छूटा पडी जाय छे. आत्मा त्रिकाळ छे तेनी साथे एकमेकपणे रहीने आत्माने ओळखावे ते ज
आत्मानुं लक्षण छे. माटे अहीं ज्ञानमात्र लक्षणवडे आत्माने ओळखाव्यो छे. आत्मामां एक ज्ञानगुण ज
नथी पण अनंत धर्मो छे; आत्माना स्वभावमां दर्शन–ज्ञान–चारित्र–आनंद–स्वच्छत्व–प्रभुत्व आदि
अनंत धर्मो छे; एवा आत्माने ज्ञानद्वारा ओळखावे छे. आत्मामां एक साथे अनंत धर्मो छे, काळ
अपेक्षाए तो अनंत छे ने संख्या अपेक्षाए पण अनंत शक्तिओ एक साथे रहेली छे. एक साथे रहेली
अनंती शक्तिओ अने तेना क्रमे क्रमे थता अनंत निर्मळ अंशो–एवा अनंतधर्मनी मूर्ति आत्मा छे तेने
ज्ञान ओळखावे छे.
जणाय ते बधो य आत्मा छे, रागादि भावो ते आत्मानी हदथी बहार छे, केम के तेमां ज्ञान व्यापतुं नथी.
ज्ञान अनंतधर्मवाळा आत्माने प्रसिद्ध करे छे; माटे ते ज्ञानमात्रमां अचलितपणे स्थापेली द्रष्टि वडे, क्रमरूप
अने अक्रमरूप प्रवर्ततो, ज्ञान साथे अविनाभावी एवो जे अनंतधर्मसमूह लक्षित थाय छे ते सघळो य
खरेखर एक आत्मा छे.–आवो आत्मा बताववा माटे ज आत्माने ज्ञानमात्र कहेवामां आवे छे.
जुदो बतावे छे तेथी ते आत्मानुं लक्षण छे. रागादिभावो ते आत्मानुं लक्षण नथी पण बंधनुं लक्षण छे.
रागनी सामे जोतां आत्मा नथी ओळखातो माटे राग ते आत्माथी भिन्न छे. ज्ञानलक्षण अने आत्मा
परमार्थे अभेद छे; तेथी ज्ञानलक्षणने ओळखतां आत्मा पण ओळखाय छे. आत्मामां अनंत धर्मो होवा
छतां तेने ज्ञानमात्र कहीने ओळखाव्यो छे. ज्ञाननो स्वभाव स्व–परने जाणवानो होवाथी ते बधा जीवोने
प्रसिद्ध छे, ज्ञान सिवाय जे श्रद्धा–सुख वगेरे अनंतधर्मो छे तेओ पोते पोताने के परने जाणता नथी; माटे
ज्ञानने ज लक्षण कह्युं छे. ते ज्ञानलक्षणवडे अनंतगुणनी मूर्ति एवो आत्मा ज प्रसिद्ध करवा योग्य–जाणवा
योग्य–ध्यान करवा योग्य–लक्ष्य करवा योग्य छे; ज्ञान अंतर्मुख थईने तेवा आत्माने ज जाणे छे–प्रसिद्ध
करे छे–ध्यावे छे–लक्षमां ल्ये छे. अज्ञानीओ तो रागने अने परने जाणवामां अटके तेने ज ज्ञान माने छे
एटले तेओ राग साथे ज्ञानने एकमेक करीने, ज्ञानलक्षण जाणे के रागनुं ज होय एम माने छे तेथी तेमने
रागनी ज प्रसिद्धि थाय छे, पण रागथी भिन्न एवा ज्ञाननी के आत्मानी प्रसिद्धि थती नथी.–एनुं नाम
अधर्म छे. जो ज्ञानने रागथी जुदुं ओळखे एटले राग साथे ज्ञाननी एकता छोडीने स्वभाव साथे एकता
प्रगट करे, तो रागरहित ज्ञानलक्षणनी अने आत्मानी प्रसिद्धि थाय.–तेनुं नाम धर्म छे. जे ज्ञान आत्माने
रागथी जुदो प्रसिद्ध करे ते ज खरुं ज्ञान छे; जे ज्ञान आत्माने तो प्रसिद्ध न करे ने एकला रागने ज
प्रसिद्ध करे ते खरेखर ज्ञान ज नथी, केम के ते तो रागमां तन्मय थई गयुं छे तेथी तेने ज्ञान ज नथी
कहेता. ज्ञान आत्मानुं लक्षण छे.–पण कयारे? के आत्माने लक्ष्य बनावे त्यारे. एटले आचार्यदेव कहे छे के
ज्ञानवडे लक्षमां लेवायोग्य आत्मा ज छे.
के परने जाणवानुं सामर्थ्य नथी. ज्ञान स्व–परने