Atmadharma magazine - Ank 097
(Year 9 - Vir Nirvana Samvat 2478, A.D. 1952)
(Devanagari transliteration).

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कारतकः २४७८ः ११ः
जाणनारुं छे. ज्ञान रागने जाणे पण रागने करे नहि. ज्ञान स्वने तो जाणे अने करे, एम पोतामां बंने बोल
लागु पडे छे; अने ज्ञान परने जाणे पण परनुं करे नहि, एम परमां एक ज बोल लागु पडे छे. आवा ज्ञानवडे
परनी क्रियानी के रागनी तो प्रसिद्धि नथी थती, तेम ज एकला परने जाणवानी पण प्रसिद्धि नथी थती, पण
अनंत धर्मना चैतन्यपिंड एवा आत्मानी ज प्रसिद्धि थाय छे. आम जे आत्मानी प्रसिद्धि करे तेणे ज ज्ञानने
ज्ञान तरीके ओळख्युं कहेवाय.
अज्ञानी जीव पोताना स्वलक्ष्यने भूलीने ज्ञानवडे परनी प्रसिद्धि करवा जाय छे, तेने ज्ञानलक्षणनी ज
खबर नथी. लक्षण तो एवुं होय के जे पोताना लक्ष्यने जणावे. जो लक्ष्यने न जणावे तो ते खरेखर लक्षण नथी
पण लक्षणाभास छे. ज्ञान तो तेने कहेवाय के जे आत्माने ज लक्ष्य करे–ओळखावे. जो पोताना आत्माने न
ओळखावे तो ते ज्ञानाभास छे. पोतानुं ज्ञान ते पोताना आत्मानुं ज लक्षण छे, माटे पोताना ज्ञानवडे पोताना
अनंतधर्मस्वरूप आत्माने ज लक्षित करवो, ज्ञानने स्व तरफ वाळीने आत्माने अनुभववो.–ते ज लक्षणलक्ष्यने
जाणवानुं तात्पर्य छे.
ज्ञान आत्माने प्रसिद्ध करे छे, ते आत्मा अनंत गुणोना समुदायस्वरूप छे. ज्ञाननी साथे ज अनंत गुणो
रहेला छे, ते दरेक गुणना लक्षण जुदा जुदा छे छतां द्रव्यपणे ते बधा गुणोनो एक ज भाव छे, एक द्रव्य ज ते
बधा धर्मोवाळुं छे. आगळ २७ मी शक्तिमां कहेशे के विलक्षण अनंत स्वभावोथी भावित एवो एक भाव जेनुं
लक्षण छे एवी अनंतधर्मत्वशक्ति छे; एटले के गुण अपेक्षाए दरेक गुणनुं लक्षण भिन्न भिन्न होवा छतां ते
बधाना अभेद–पिंडरूप द्रव्य एक छे.
ज्ञाननुं लक्षण स्व–परप्रकाशकपणुं,
सम्यक्त्वनुं लक्षण निर्विकल्प प्रतीति,
चारित्रनुं लक्षण एकाग्रता,
आनंदनुं लक्षण आह्लाद,
अस्तित्वनुं लक्षण होवापणुं,
प्रभुत्वनुं लक्षण स्वतंत्रताथी शोभितपणुं;
–एम अनंता गुणोनुं लक्षण जुदुं छे, एटले लक्षणभेदे बधा गुणोने परस्पर भेद छे, छतां द्रव्य तो बधा
गुणोनो एकरूप पिंड छे, ज्ञानमात्र आत्मामां बधाय धर्मो समाई जाय छे. ‘ज्ञान ते आत्मा’ एम कहेतां ज
अनंतधर्मोनो एक समूह लक्षित थाय छे ते आत्मा छे.
दर्शन, ज्ञान, चारित्र इत्यादि अनेक भेदोने ज्ञान जाणे भले, पण ते ज्ञानवडे लक्षित तो अनंत धर्मोथी
अभेद एवो आत्मा ज छे. भेदोने जाणनारुं ज्ञान जो एकला भेदने ज लक्ष्य करे ने अभेद आत्माने लक्ष्य न करे
तो त्यां खरेखर ज्ञाननी प्रसिद्धि नथी पण एकला भेदनी ज प्रसिद्धि छे; ज्ञाननी प्रसिद्धि वगर आत्मानी प्रसिद्धि
पण थती नथी. ज्ञान भेदने पण जाणे खरुं, परंतु अभेद आत्माना लक्षपूर्वक भेदने जाणे.
ज्ञाननो स्वभाव स्व–परप्रकाशक होवाथी ते परने अने रागादिने जाणे खरुं; पण परने के रागने
जाणतां ज्ञानलक्षण परनुं के रागनुं थई जतुं नथी, ज्ञानलक्षण तो आत्मानुं ज रहे छे. एटले के परने जाणतुं
ज्ञान पण आत्मा साथे एकता राखीने परने जाणे छे, पर साथे के राग साथे एकता करीने जाणतुं नथी. ज्ञान
रागने जाणे त्यां ते ज्ञान रागनुं लक्षण थई जतुं नथी, तेम ज राग ज्ञानमां जणाय तेथी कांई ते राग ज्ञाननुं
लक्षण थई जतो नथी, बंने भिन्न ज रहे छे. ए ज प्रमाणे पोताना गुणोमां पण सूक्ष्म वात लईए तो, ज्ञान छे
ते श्रद्धा वगेरेना लक्षणने जाणे छे खरुं, पण श्रद्धाना लक्षण वडे ज्ञान लक्षित थतुं नथी; तेमज श्रद्धाने जाणनारुं
ज्ञान ते श्रद्धानुं लक्षण थई जतुं नथी, केम के ज्ञान वडे एकलो श्रद्धागुण ज लक्षित नथी थतो पण एवा एवा
अनंतगुणनी मूर्ति आत्मा लक्षित थाय छे. ज्ञान बीजाने जाणे छे खरुं पण बीजानुं लक्षण थतुं नथी. अभेद
आत्माना लक्षपूर्वक भेदने जाणनारुं ज्ञान पण अभेद आत्मानी ज प्रसिद्धि करे छे. ज्यां ज्ञाने अभेद आत्माने
लक्षमां लीधो त्यां लक्षण अने लक्ष्य बंने एक थई गया–अभेद थई गया, अने त्यारे ज ते ज्ञान आत्मानुं
लक्षण थयुं, ते ज्ञानलक्षणे अनंतधर्मवाळा आत्माने प्रसिद्ध कर्यो.–आनुं ज नाम सम्यग्दर्शन अने सम्यग्ज्ञान छे,
आ ज प्रथम धर्म छे.
आत्मामां अनंत शक्तिओ छे, ते बधाने जाणनारुं तो ज्ञान छे; ते ज्ञान एकेक शक्तिने जुदी जुदी प्रसिद्ध