Atmadharma magazine - Ank 097
(Year 9 - Vir Nirvana Samvat 2478, A.D. 1952)
(Devanagari transliteration).

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ः १२ः आत्मधर्मः ९७
नथी करतुं पण अनंतशक्तिना एक पिंडरूप आत्माने प्रसिद्ध करे छे. भिन्न भिन्न अनंत धर्मो होवा छतां ते
बधाय धर्मो एक आत्मद्रव्यना ज छे, एवा अनंतधर्मस्वरूप आत्माने ज्ञान प्रसिद्ध करे छे. ज्ञानलक्षणने
ओळख्या सिवाय आवो आत्मा अनुभवमां–लक्षमां आवतो नथी. अभेद आत्माने पकडवा जतां ‘ज्ञान ते
आत्मा’ एवो लक्ष्य–लक्षण भेद वच्चे आवी ज जाय छे, जेणे आत्माने कदी जाण्यो नथी ते जीव ज्ञानलक्षण
वगर सीधुं लक्ष्यने (आत्माने) जाणी शकतो नथी. तेथी ज, आचार्यदेव कहे छे के, अमे आत्माने ज प्रसिद्ध
करवा माटे ज्ञानलक्षण बताव्युं छे. ज्ञानलक्षण अनंतधर्मवाळा आत्माने प्रसिद्ध करे छे–बतावे छे.
जुओ! आजे बेसता वर्षे ज्ञानमूर्ति भगवान आत्मानी प्रसिद्धिनी अपूर्व वात आवी छे. अहो,
बधायने जाणनारुं ज्ञान.....पण ते एक आत्माने ज प्रसिद्ध करे छे. ज्ञान जाणे बधाने, पण ते बधानुं ज लक्षण
नथी; बधाने जाणतुं ज्ञान ते आत्मानुं ज लक्षण छे एटले के आत्माने लक्ष्यमां राखीने बधाने जाणे तेवो
ज्ञाननो स्वभाव छे. आ रीते ज्ञानलक्षण पोताना चैतन्यमूर्ति आत्माने ज प्रसिद्ध करे छे.
अहो! ज्ञानथी प्रसिद्ध थतो अनंत धर्मनो ढींग आत्मा, ते ज पोतानो धींगधणी छे; आवा चैतन्यमूर्ति
धींगधणी आत्माने जोतां ज अमारा अनादिनां दुःख अने दोहग (दुर्भाग्य) बंने टळी गया. भगवान आत्मा
पोते प्रभुतानो पिंड विमळस्वरूप छे, तेने जोतां ज सिद्धभगवान जेवा सुखनो अनुभव थयो, एटले
अनादिकाळना दुःख तो टळी गया ने बाह्यमां दुर्भाग्यरूप प्रतिकूळता पण टळी गई. धर्मीने जगतमां एवी कोई
प्रतिकूळता निमित्तरूपे नथी के जे तेने साधकभावमां विघ्न करे. ज्यां अंतरना चैतन्यभगवान धींगधणीने
श्रद्धा–ज्ञानमां धार्यो त्यां बहारनी प्रतिकूळताने गणकारे छे ज कोण? जुओ, आ बेसता वर्षनुं मांगळिक थाय
छे. मंगळ एटले सुखने आपे ने दुःखने दूर करे. अनंत शक्तिसंपन्न चैतन्यमूर्ति आत्मानी द्रष्टि करतां अपूर्व
सुखसंपत्तिनी भेट थई ने दुःख दूर थया ते ज खरुं मंगळ छे.
*
ज्ञानथी लक्षमां आवतो आत्मा केवो छे तेनो आ महिमा छे. ज्ञानलक्षणथी तेने लक्षमां लीधा विना
तेनो महिमा समजाय नहि. जेम आठ आंकडानी कोई रकम (८७६प४३२१) लखी होय अने तेमां एक
नवमो आंकडो उमेरो (९८७६प४३२१) तो तेणे करोडोनी संख्या वधारी छे. जेने गणितनी खबर नथी
तेने एम लागे छे के आ एक नवडो मूकयो; पण खरेखर तो ते नवडामां करोडोनो भाव समायेलो छे. तेम
अहीं ‘ज्ञान ते आत्मानुं लक्षण छे’ एम आचार्यभगवाने कह्युं छे तेमां घणा सूक्ष्म न्याय छे, घणी ऊंडी
गंभीरता छे. अंतर्मुख थईने ख्यालमां ल्ये तो तेनी गंभीरता समजाय तेम छे. साधारण लोकोने एम
लागे छे के आ शरीर, कबाट वगेरे बधाने जाणे छे ते ज्ञाननी वात छे ने ते ज आत्मानुं लक्षण छे.–पण
एम नथी. अहीं तो ज्ञानने अंर्तस्वभाव सन्मुख करीने आत्माने जाणे तेनी वात छे, अने ते ज्ञान ज
आत्मानुं लक्षण छे. अनंत गुणथी भरपूर पोतानो आत्मा ते ज ज्ञाननुं लक्ष्य छे. आवा लक्ष्य–लक्षणने जे
ओळखे तेने सम्यग्ज्ञान थया विना रहे नहि.
गुणोमां भेद पाडवा ते पण ज्ञाननुं लक्ष्य नथी; ज्ञान ते गुणोने जाणे भले, पण तेनुं लक्ष्य तो एक
आत्मा ज छे. अहीं भेदने सिद्ध करवा माटे ज्ञान अने आत्मानो लक्षण–लक्ष्य भेद नथी पाडयो, पण ज्ञान
आत्मा तरफ वळीने आत्माने ज जाणे– ए रीते ज्ञानलक्षण द्वारा अभेद आत्मानी प्रसिद्धि करवा माटे ज आ
लक्षण लक्ष्य भेद छे. जो के स्व–पर, द्रव्य–गुण–पर्याय, निश्चय–व्यवहार ए बधाने जाणनारुं तो ज्ञान ज छे,
पण ज्ञानमां स्व–परप्रकाशकपणुं कयारे थाय? के जो ज्ञान लक्षण तो आत्मानुं छे एम नक्की करीने आत्माने
लक्ष्य बनावे तो ज ते ज्ञानमां स्व–परप्रकाशकपणुं खीले, अने ते ज्ञान ज स्व–परने के निश्चय–व्यवहार वगेरेने
साची रीते जाणी शके.
ज्ञान ते लक्षण छे ने आत्मा लक्ष्य छे,–पण ते लक्षण अने लक्ष्य कयारे थाय? ज्ञानलक्षणथी आत्माने
पकडवा जतां ज्ञान अंतर्मुख थाय छे माटे अंतर्मुखज्ञान ते ज आत्मानुं लक्षण छे. ज्यारे लक्षण अने लक्ष्यनी
संधि करे एटले के ज्ञानने आत्मा तरफ वाळीने ते ज्ञानद्वारा अखंड आत्माने लक्षमां ल्ये त्यारे ज आत्मा लक्ष्य
थाय अने ज्ञान लक्षण थाय.