Atmadharma magazine - Ank 097
(Year 9 - Vir Nirvana Samvat 2478, A.D. 1952)
(Devanagari transliteration).

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कारतकः २४७८ः १३ः
ज्ञानलक्षण वडे ज्यां आत्माने देख्यो के तरत ज केवळज्ञान थवानी प्रतीति थई जाय छे, केम के
आत्मामां तेवी शक्ति पडी छे. ते शक्तिनी प्रतीतमां व्यक्तिनी प्रतीत पण भेगी थई ज जाय छे. आत्मानुं
लक्षण ज्ञान छे, ते ज्ञान स्व–परप्रकाशक छे अने तेमां रागनो अभाव छे–एम जेणे नक्की कर्युं तेने आत्मा तरफ
वळतां ज्ञाननुं स्व–परप्रकाशक सामर्थ्य पूरुं खीली जशे अने रागादि बिलकुल नहि रहे. ज्ञान ते आत्मा छे एम
नक्की कर्युं त्यां ज श्रद्धामांथी निमित्तनुं–रागनुं–व्यवहारनुं अवलंबन ऊडी गयुं, ने ज्ञानद्वारा अखंड आत्मा ज
आदरणीय छे–एम नक्की थई गयुं. जे ज्ञान आत्माने न जाणे ते ज्ञान आत्मानुं लक्षण थतुं नथी. ज्ञाननुं जे
लक्ष्य छे तेने प्रगट कर्या विना लक्षण कोनुं?
प्रश्नः– पहेलां ज्ञान जणाय के आत्मा?
उत्तरः– बंने साथे ज जणाय छे. आत्माने लक्षमां लीधा वगर ज्ञानने लक्षण कोनुं कहेवुं? आत्माने
लक्षमां लईने ज्ञान तेमां अभेद थयुं त्यारे आत्मा लक्ष्य थयो अने ज्ञान तेनुं लक्षण थयुं. ए रीते लक्षण अने
लक्ष्यनी प्रसिद्धि एक साथे ज छे.
प्रश्नः– जो बंने एक साथे जणाय छे तो पछी ज्ञान अने आत्मानो भेद तो नकामो ज गयो?
उत्तरः– अभेद तरफ वळे छे त्यां भेदने उपचारथी साधन कहेवाय छे. अभेदना लक्ष वगरना एकला
भेद ते तो खरेखर व्यर्थ ज छे. अभेदमां जतां जतां वच्चे भेद आवी जाय छे, पण ते भेदरूप व्यवहारनो निषेध
करीने अभेदमां ढळे छे तेथी ते भेदने व्यवहार साधन कहेवाय छे. पण निश्चय वगरनो एकलो व्यवहार तो
व्यर्थ ज छे. पहेलां ज्ञानने जाण्युं अने पछी आत्माने जाण्यो–एवा भेद खरेखर नथी. आ लक्षण अने आ
लक्ष्य–एवा बे भेद उपर लक्ष रहे त्यां सुधी विकल्पनी प्रसिद्धि छे पण आत्मानी प्रसिद्धि नथी; आत्मा तरफ
वळीने ज्यां आत्मानी प्रसिद्धि थई–आत्मानो अनुभव थयो–ते वखते तो लक्ष्य अने लक्षण एवा बे भेद उपर
लक्ष नथी होतुं, तेने तो लक्ष्य अने लक्षण बंने अभेद थईने एक साथे प्रसिद्ध थाय छे. बीजाने समजाववा माटे
भेदथी एम कहेवाय के आ जीव ज्ञानलक्षणथी आत्माने समज्यो,–ए व्यवहार छे; पण ते व्यवहार अभेद
आत्मानुं प्रतिपादन करवा माटे छे.
ज्ञान ते लक्षण....कोनुं?.....आत्मानुं. ज्ञान ते लक्षण एम लक्षमां लेतां तेनुं लक्ष्य पण भेगुं ज लक्षमां
आवी जाय छे. ‘ज्ञान ते आत्मा’ एम कहेतां लक्ष्य–लक्षणनो भेद पडतो होवा छतां, आत्माने अने ज्ञानने
बंनेने जाण्या त्यारे ज ज्ञानने लक्षण अने आत्माने लक्ष्य कहेवायुं ने? लक्ष्यने ओळख्या पहेलां ‘आ लक्षण
आनुं छे’ एम कई रीते नक्की कर्युं?–माटे लक्षण अने लक्ष्य (अर्थात् ज्ञान अने आत्मा) ए बंने एक साथे ज
ओळखाय छे.
*
अहो! आ तो आत्मतत्त्वनी अंतरनी अपूर्व वात छे. जे आत्मतत्त्वने अनादिकाळथी कदी नथी जाण्युं ते
आत्मानो अनुभव केम थाय तेनी आ वात छे. जेने आत्माना अनुभवनी रुचि होय तेने आ वात किलष्ट न
लागवी जोईए. पण आनो महिमा आववो जोईए के अहा! आ मारा आत्मानी कोई अपूर्व वात चाले छे.
समजतां अघरुं लागे तो अंदरमां तेनो महिमा लावीने समजवा माटे विशेष प्रयत्न करवो जोईए; पण पोताने
न समजाय तेथी जो कंटाळो लावे तो तो तेने आत्मानी अरुचि अने द्वेष छे. खरेखर आ किलष्ट नथी पण
अमृत जेवुं छे, परम आनंदरूप छे. जे अंदर लक्ष करीने समजे तेने तेनी खबर पडे.
आत्माने ज्ञानमात्र कह्यो; त्यां ते ज्ञानमात्रमां अचलितपणे स्थापेली द्रष्टि वडे, जे क्रमरूप अने अक्रमरूप
प्रवर्ततो अनंतधर्मसमूह जणाय छे ते बधोय खरेखर एक आत्मा ज छे, एटले ज्ञानवडे अनंतधर्मवाळो आत्मा
ज प्रसिद्ध थाय छे. क्रमे क्रमे थता निर्मळ पर्यायो अने एक साथे वर्तता अनंत गुणो ते बधाय ज्ञानमात्रमां
समाई जाय छे, एटले ‘ज्ञानमात्र’ भावने द्रष्टिमां लेवा जतां अनंत गुण–पर्यायोथी अभेद आत्मा ज द्रष्टिमां
आवी जाय छे. आ रीते ज्ञानद्वारा आत्मा ज प्रसिद्ध थाय छे. माटे–ज्ञानने ढाळ तारा द्रव्यमां......तो ते
ज्ञानलक्षण वडे लक्ष्य एवा आत्मानी प्रसिद्धि थाय! ‘आत्मा ज्ञानमात्र छे’ एम कह्युं त्यां, ज्ञानमात्रने लक्षमां
लेवा जतां, एकलो ज्ञानगुण जुदो पडीने लक्षमां