व्यवहारने व्यवहार तरीके कहेशे कोण? अखंड परिपूर्ण आत्मद्रव्यनुं लक्ष करतां श्रद्धा वगेरे अनंत गुणोनी
प्रसिद्धि थाय छे. जो ज्ञान वडे ते आत्मद्रव्यनुं लक्ष करे तो देव–गुरु–शास्त्रनी श्रद्धाने, नवतत्त्वना ज्ञानने के
‘त्याग वैराग न चित्तमां, थाय न तेने ज्ञान.’ तेमां नास्तिथी मंदकषाय पुरती वात लीधी छे.
अने अहीं एम कहे छे के–
‘लक्षणने जाण्या विना, थाय न लक्ष्यनुं ज्ञान.’ अहीं तो आत्मस्वभावनी बहु नजीक लावीने वात करी
ने? ते ज्ञान आत्मा छे. जे ज्ञान बहारमां वळे छे तेने बदले ज्ञानने अंतरमां वाळ, तो ते ज्ञान वडे आत्मानी
प्रसिद्धि थाय छे. ‘आत्मा ज्ञानमय छे’ एम कहेतां ज्ञान ते लक्षण छे ने आत्मा लक्ष्य छे एवो जे भेद पडे तेने
भिन्न प्रसिद्ध थाय छे? ज्ञानथी जुदुं एवुं कयुं लक्ष्य छे के जेने आ ज्ञानलक्षण प्रसिद्ध करे छे? जेने तमे
ज्ञानलक्षणथी समजाववा मागो छो ते चीज शुं ज्ञानथी जुदी छे? ज्ञाननी प्रसिद्धि वडे आत्मानी प्रसिद्धि थाय छे.
एम कह्युं तो शुं ज्ञाननी प्रसिद्धि अने आत्मानी प्रसिद्धि जुदी जुदी छे?’ जुओ, शिष्यने ज्ञान अने आत्मा
एवो लक्ष्यलक्षणनो भेद पण खटके छे तेथी आ प्रश्न ऊठयो छे. अंतरमां एकदम नजीक आवेला शिष्यनो आ
प्रश्न छे. आत्माने पकडवा जतां गुणगुणी भेदनो विकल्प ऊठे छे तेने पण छोडीने अभेद आत्माना अनुभव
ज्ञानने ज्यां आत्मस्वभाव तरफ वाळ्युं त्यां ते ज्ञान अने आत्मा अभेद ज छे. ज्ञानपर्यायने अंतरमां
वाळतां ते द्रव्य साथे अभेद थई जाय छे तेथी ज्ञानने अने आत्माने द्रव्यथी अभेदपणुं छे; नामभेद,
प्रयोजनभेद, लक्ष्य–लक्षण भेद होवा छतां स्वभावथी भेद नथी. आत्मा रागादिथी तो भिन्न प्रसिद्ध थाय छे
पण ज्ञानथी भिन्न प्रसिद्ध थतो नथी. ज्ञाननी प्रसिद्धिथी आत्मानी प्रसिद्धि जुदी नथी, जे ज्ञाननी प्रसिद्धि छे
ते ज आत्मानी प्रसिद्धि छे. जेने अभेद आत्मानो ख्याल नथी तेने लक्ष्य–लक्षणना भेद पाडीने समजावीए
छीए, पण वस्तुपणे ज्ञान अने आत्मा जुदा नथी. ज्यारे ज्ञानपर्याय स्वतरफ वळीने एकाग्र थई त्यारे तेने
लक्षण कहेवायुं अने आत्मा तेनुं लक्ष्य थयो, ए रीते लक्ष्य–लक्षणनी प्रसिद्धि एक साथे ज छे. ज्ञान
आत्मामां एकाग्र थयुं त्यां लक्ष्यलक्षण भेदनो विकल्प पण न रह्यो ने द्रव्य–पर्याय अभेद थया; माटे
जाणे छे. पेटमां दुःखे छे, माथुं दुःखे छे एम कोणे जाण्युं?–ज्ञाने जाण्युं. ए रीते ज्ञान तो प्रसिद्ध छे. पण अज्ञानी
ते ज्ञान वडे एकला परनी प्रसिद्धि करे छे तेथी ते ज्ञानने स्वसन्मुख करीने आत्मानी