विशिष्ट अपूर्व प्रवचनोनो सार.
आचार्यदेव कहे छे के आत्मा अनंत धर्मोवाळुं एक द्रव्य छे अने
अनंत नयोवाळा श्रुतज्ञान प्रमाण वडे स्वानुभवथी ते जणाय
छे. प्रमाण वडे जणाता आत्मानुं अहीं ४७ नयोथी वर्णन चाले
छे; चार नयोथी वर्णन कर्युं ते पूर्वे आवी गयुं छे, त्यार पछी
आगळनुं अहीं आपवामां आवे छे.)
अने परथी नास्ति–एवा बंने धर्मो तो आत्मामां एक साथे ज छे. वाणीद्वारा क्रमथी ते धर्मोनुं कथन थई शके
छे, अने तेना वाच्यरूप एक ‘अस्तित्व–नास्तित्व’ धर्म पण आत्मामां छे, तथा तेने जाणनार अस्तित्व–
नास्तित्वनय पण छे. वस्तुनो धर्म, तेने कहेनारी वाणी अने तेने जाणनारुं ज्ञान–ए त्रणे स्वतंत्र छे, कोईने
कारणे कोई नथी.
आत्मानो एक धर्म छे. जो आत्मा सर्वथा अवक्तव्य ज होय तो सर्वज्ञभगवानना ज्ञानमां जे वस्तुस्वरूप
जणायुं तेनी बीजा जीवोने कई रीते खबर पडे? वळी आत्मा सर्वथा अवक्तव्य ज होय तो ‘आत्मा अवक्तव्य
छे’ एटलुं कहेवानुं पण बनी न शके, केम के ‘आत्मा अवक्तव्य छे’ एम कह्युं त्यां ज कथंचित् वक्तव्यपणुं थई
गयुं. अहीं आत्माने वक्तव्य कह्यो तेनो अर्थ एम नथी के आत्मा कयारेक वाणी बोली शके छे. आत्मा त्रणेकाळे
वाणीने करी शकतो ज नथी, तेम ज वाणीथी ते जणातो पण नथी; केमके वाणी तो जड छे. आत्मा ‘वाणीथी
वक्तव्य छे’ पण ‘वाणीथी जणावायोग्य’ नथी;–जणाय छे तो पोताना ज्ञानथी ज.
अने ज्ञान पण तेने एक साथे जाणे छे.