Atmadharma magazine - Ank 097
(Year 9 - Vir Nirvana Samvat 2478, A.D. 1952)
(Devanagari transliteration).

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कारतकः २४७८ः १पः
‘आत्मा कोण छे ने कई रीते पमाय?’
(३)
श्री प्रवचनसारना परिशिष्टमां ४७ नयोद्वारा
आत्मद्रव्यनुं वर्णन कर्युं छे तेना उपर पूज्य गुरुदेवश्रीनां
विशिष्ट अपूर्व प्रवचनोनो सार.
(अंक ९प थी चालु)
*
(जिज्ञासु शिष्य पूछे छे के हे प्रभो! ‘आ आत्मा कोण
छे ने तेनी प्राप्ति केवी रीते थाय छे?’ तेना उत्तरमां
आचार्यदेव कहे छे के आत्मा अनंत धर्मोवाळुं एक द्रव्य छे अने
अनंत नयोवाळा श्रुतज्ञान प्रमाण वडे स्वानुभवथी ते जणाय
छे. प्रमाण वडे जणाता आत्मानुं अहीं ४७ नयोथी वर्णन चाले
छे; चार नयोथी वर्णन कर्युं ते पूर्वे आवी गयुं छे, त्यार पछी
आगळनुं अहीं आपवामां आवे छे.)
*
(प) अस्तित्व–नास्तित्वनये आत्मानुं वर्णन
‘आत्मद्रव्य अस्तित्वनास्तित्वनये क्रमशः स्वपर द्रव्य–क्षेत्र–काळ–भावथी अस्तित्वनास्तित्ववाळुं छे.’
(अहीं तीरनुं द्रष्टांत छे ते मूळमां जोई लेवुं.)
आत्मा स्वचतुष्टयथी अस्तिरूप छे अने परचतुष्टयथी नास्तिरूप छे; स्वथी अस्तिरूप अने परथी
नास्तिरूप एवा ‘अस्तित्व–नास्तित्व’ धर्मने जे जाणे तेनुं नाम ‘अस्तित्व–नास्तित्वनय’ छे. स्वथी अस्ति
अने परथी नास्ति–एवा बंने धर्मो तो आत्मामां एक साथे ज छे. वाणीद्वारा क्रमथी ते धर्मोनुं कथन थई शके
छे, अने तेना वाच्यरूप एक ‘अस्तित्व–नास्तित्व’ धर्म पण आत्मामां छे, तथा तेने जाणनार अस्तित्व–
नास्तित्वनय पण छे. वस्तुनो धर्म, तेने कहेनारी वाणी अने तेने जाणनारुं ज्ञान–ए त्रणे स्वतंत्र छे, कोईने
कारणे कोई नथी.
वस्तुमां एक साथे अस्ति–नास्तिधर्म छे ने वाणीद्वारा ते कथंचित् कही पण शकाय छे; आत्मा सर्वथा
अवक्तव्य नथी. आत्मा पोते वाणी बोली शकतो नथी, पण वाणीद्वारा आत्माना धर्मोनुं वर्णन थई शके एवो
आत्मानो एक धर्म छे. जो आत्मा सर्वथा अवक्तव्य ज होय तो सर्वज्ञभगवानना ज्ञानमां जे वस्तुस्वरूप
जणायुं तेनी बीजा जीवोने कई रीते खबर पडे? वळी आत्मा सर्वथा अवक्तव्य ज होय तो ‘आत्मा अवक्तव्य
छे’ एटलुं कहेवानुं पण बनी न शके, केम के ‘आत्मा अवक्तव्य छे’ एम कह्युं त्यां ज कथंचित् वक्तव्यपणुं थई
गयुं. अहीं आत्माने वक्तव्य कह्यो तेनो अर्थ एम नथी के आत्मा कयारेक वाणी बोली शके छे. आत्मा त्रणेकाळे
वाणीने करी शकतो ज नथी, तेम ज वाणीथी ते जणातो पण नथी; केमके वाणी तो जड छे. आत्मा ‘वाणीथी
वक्तव्य छे’ पण ‘वाणीथी जणावायोग्य’ नथी;–जणाय छे तो पोताना ज्ञानथी ज.
आत्मामां स्वथी अस्तिपणुं छे ते ज क्षणे परथी नास्तिपणुं पण भेगुं ज छे. छद्मस्थनी वाणीमां ते बंने
धर्मो एक साथे भले न कही शकाय, पण क्रमे क्रमे ते बंने धर्मो कही शकाय छे, वस्तुमां तो धर्मो एक साथे ज छे,
अने ज्ञान पण तेने एक साथे जाणे छे.