होवुं एवो जे परना अभावस्वरूप भाव (–नास्तित्वधर्म) छे ते पण स्वज्ञेयनो अंश छे, जो तेने न मानो तो
आखा स्वज्ञेयनी प्रतीत थती नथी. वळी आत्मामां एकलुं अस्तित्व ज मानशो ने नास्तित्वने नहि मानो तो,
जेम आत्मा चेतनस्वरूपे अस्तिरूप छे तेम आत्मा जडस्वरूपे पण अस्तिरूप थई जशे. ‘आत्मा जडस्वरूपे
नथी,’ एम कहेतां ज आत्मानो नास्तित्वधर्म सिद्ध थई जाय छे. जड ते त्रणेकाळे जड रहे छे ने चेतन त्रणेकाळे
चेतन रहे छे; तेम ज एक आत्मा बीजा आत्मापणे पण कदी थतो नथी.
अस्तित्व अने नास्तित्व ए बे ज धर्मो छे ने बाकीनां पांच भंग कह्या ते तो उपचारथी ज छे’–एम नथी;
सप्तभंगीना जे सात भंग छे ते सातेयना वाच्यरूप सात भिन्न भिन्न धर्मो आत्मामां छे. जेम वाचकमां सात
प्रकार छे तेम वाच्यमां पण ते सात धर्मो छे.
कंटाळवुं न जोईए. घणा प्रकारो जाणवा ते कांई उपाधि नथी, पण ते तो ज्ञाननी निर्मळतानुं कारण छे. जेणे
पोतानुं आत्महित करवुं होय–धर्म करवो होय तेणे पहेलां आटलुं तो नक्की करी लेवुं जोईए के कयांय पण
बहारमांथी मारो धर्म थवानो नथी, अंतरमां आत्मस्वभावने समज्या विना धर्म कोई रीते थाय नहि; माटे
पहेलां आत्मानी साची ओळखाण करवी ते ज धर्मनो उपाय छे. जेने आ वातनी जरूर लागे अने जिज्ञासु
थईने समजवा मागे तेने आ समजाया विना रहे नहि.
धर्म तो आत्मामां एकाग्रतारूप दशा छे; प्रथम आत्मा केवो छे ते ओळखे अने तेनो महिमा जाणे तो तेमां ठरीने
ज्ञान एकाग्र थाय. आत्मा केवो छे ते जाण्या विना जीवे अनादिथी परमां ने विकारमां एकाग्रता करी छे, तेनुं
नाम अधर्म छे. अनंतधर्मोवाळा आत्मानो महिमा जाणीने तेमां एकाग्र थवुं ते धर्म छे. आवो धर्म प्रगट
करवानी भावनावाळो शिष्य पूछे छे के प्रभो! आ आत्मा केवो छे?–आत्मा केवडो मोटो छे?–के जेनो महिमा
जाणीने तेमां लीन थतां मारी परमात्मदशा प्रगटी जाय ने मारुं संसारभ्रमण टळी जाय?
कोई पण उपाये आत्मानी प्राप्ति थती नथी. आत्मद्रव्यनुं स्वरूप समजाववा अहीं ४७ नयोथी तेनुं वर्णन कर्युं
छे. तेमां प्रथम एम कह्युं के द्रव्यनयथी आत्मा सामान्य चिन्मात्र एकरूप छे. पछी तेनी सामे बीजो धर्म
बतावतां कह्युं के पर्यायनये आत्मा दर्शन–ज्ञान–चारित्रादि भेदरूप छे. एम वस्तुमां परस्परविरुद्ध बे धर्मो सिद्ध
कर्या. वस्तुमां बधा धर्मो एक साथे ज छे. पहेलां द्रव्यनय अने पर्यायनय ए बे नयोथी वर्णन करीने पछी त्रीजा
बोलथी सप्तभंगीनुं वर्णन शरू कर्युं छे. त्रीजा बोलमां एम कह्युं के अस्तित्वनये जोतां आत्मद्रव्य स्वचतुष्टयथी
अस्तित्ववाळुं छे; चोथा बोलमां कह्युं के नास्तित्वनये आत्मद्रव्य परचतुष्टयथी नास्तित्व–