Atmadharma magazine - Ank 097
(Year 9 - Vir Nirvana Samvat 2478, A.D. 1952)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 20 of 25

background image
कारतकः २४७८ः १९ः
छतां तेनो विषय अल्प छे, ने श्रुतज्ञान परोक्ष होवा छतां तेनो विषय घणो विशाळ छे, श्रुतज्ञान पोताना
विषयभूत पदार्थना सर्व क्षेत्र–काळने जाणे छे. एवा श्रुतज्ञानमां अनंत नयो छे. अहीं परने जाणवाना नयोनी
वात नथी पण पोताना आत्माने जाणनारा नयोनी वात छे. साधक जीव पोताना आत्माने नयो वडे केवो जाणे
छे तेनुं आ वर्णन छे.
‘अस्तित्व–नास्तित्व’ नामना नयथी जोतां आत्मा अस्तित्व–नास्तित्ववाळो छे. स्वथी अस्तिपणुं
अने परथी नास्तिपणुं वस्तुमां एक साथे ज छे, ज्ञान पण एक समयमां ज तेने जाणे छे अने वाणीद्वारा ते
कथंचित् कही पण शकाय छे; ए रीते सप्तभंगीना त्रीजा बोलमां ‘अस्ति–नास्ति’ धर्म कह्यो. वाणीवडे अस्ति
नास्ति बंने धर्मो एक साथे कही शकाता नथी तेथी अवक्तव्य छे ए वात हवेना बोलमां आवशे. आ तो
वक्तव्यनो बोल छे, अस्ति–नास्ति बंने धर्मो ज्ञानमां एक साथे आवी जाय छे ने वाणीथी ते क्रमे करीने कही
पण शकाय छे, आवो अस्तित्व–नास्तित्व नामनो आत्मानो धर्म छे.
वाणीमां क्रम पडे छे पण ज्ञान अने वस्तुना धर्मो तो अक्रम छे. अस्ति, नास्ति एम कहेवामां क्रम पडे छे
पण वाच्यरूप वस्तुमां कांई ते धर्मो क्रमे क्रमे रहेला नथी, वस्तुमां तो बधा धर्मो एक साथे छे. द्रव्यमां अनंता
धर्मो एक साथे ज छे, अनंता धर्मोनो भाव एक साथे वर्ते छे ते ज द्रव्य छे, ज्ञानमां पण अनंत धर्मो एक साथे
जणाय छे, वाणीमां अनंता धर्मो एक साथे आवी शकता नथी पण क्रम पडे छे, वाणीथी बधा धर्मो न कही
शकाय पण अमुक धर्मो ज कही शकाय छे; माटे शब्द सामे जोये वस्तु पकडाय तेवी नथी पण ज्ञानने अंर्तमुख
करीने वस्तुस्वभावने पकडे तो ज वस्तु समजाय तेवी छे. आ ४७ नयोथी ४७ धर्मोनुं वर्णन कर्युं छे तेनुं तात्पर्य
एकेक धर्मना भेद सामे जोवानुं नथी पण एवा अनंत धर्मोने धारण करनार चैतन्यद्रव्यने लक्षमां लईने तेनो
अनुभव करवो ते ज तात्पर्य छे.
(अहीं अस्तित्व–नास्तित्वधर्मनुं वर्णन पूरुं थयुं–प.)
*
(६) अवक्तव्यनये आत्मानुं वर्णन
‘आत्मद्रव्य अवक्तव्यनये युगपद् स्व–पर द्रव्य–क्षेत्र–काळ–भावथी अवक्तव्य छे.’ (अहीं तीरनुं
द्रष्टांत छे ते मूळमां जोई लेवुं.)
स्वचतुष्टयथी अस्तित्व अने परचतुष्टयथी नास्तित्व, एवा बंने धर्मो आत्मामां एक साथे छे, पण
वाणीद्वारा ते बंने धर्मो युगपद कही शकाता नथी. ‘स्वथी अस्ति छे’ एम कहेतां ते ज वखते बीजा नास्तिधर्मनुं
कथन बाकी रही जाय छे अने ‘परथी नास्ति छे’ एम कहेतां ते ज वखते बीजा अस्तिधर्मनुं कथन बाकी रही
जाय छे, ए रीते वाणी द्वारा बंने धर्मो एक साथे कही शकाता नथी माटे आत्मा अवक्तव्य छे. सर्वथा अवक्तव्य
नथी पण बंने धर्मो युगपद कही शकाता नथी ते अपेक्षाए अवक्तव्य छे, क्रमे तो कही शकाय छे. ते अपेक्षाए
वक्तव्य छे. वस्तुमां बंने धर्मो एक साथे ज छे. अवक्तव्यथी वस्तुने अवक्तव्य कीधी, ते वखते ज वस्तुमां
कथंचित् ‘वक्तव्य’ धर्म पण छे तेने जो न स्वीकारे तो अवक्तव्यनय पण मिथ्या छे. अनंतधर्मवाळी आखी
वस्तुना स्वीकारपूर्वक तेना एकेक धर्मनुं ज्ञान ते नय छे.
‘अवक्तव्य’ एवो शब्द ते वाचक छे ने तेना वाच्यरूप भाव ते आत्मानो अवक्तव्यधर्म छे.
‘अवक्तव्य’ एवा शब्दमां आत्मानो अवक्तव्य नामनो धर्म रहेलो नथी; ते धर्म तो आत्मामां रहेलो छे.
आत्मा केवडो?–के एक साथे अनंतधर्मोने पोतामां धारण करी राखे तेवडो. कोई पण बीजानी सहाय
विना पोते पोताना स्वभावथी ज अनंतधर्मोवाळो छे. आवडा मोटा अनंतमहिमावाळा पोताना आत्माने
प्रतीतमां ल्ये तो ज सम्यक्श्रद्धा कहेवाय. आवडा मोटा धर्मीनी कबूलात करे तो ज तेना आश्रये धर्मनी शरूआत
थाय छे. दरेक आत्मा अनंतधर्मोवाळो धर्मी छे तेने कबूलनारी श्रद्धा पण आवडी मोटी अने गंभीर छे. ते श्रद्धा
कोई निमित्तना आश्रये के रागना आश्रये थती नथी पण स्वभावना आश्रये ज थाय छे. आवा आत्मानी
कबूलात वगर ‘आत्मा तो अखंड छे, शुद्ध छे’ एम उपर–उपरथी सांभळीने माने, तो तेने आत्मानो जेवडो
महिमा छे तेवडो भासे नहि एटले तेनी श्रद्धा छीछरी–पातळी–मिथ्या छे. जेटला अनंतधर्मोवाळो आत्मा
केवळज्ञानमां जणाय छे ते बधाय धर्मोवाळो आत्मा सम्यक्श्रद्धानी प्रतीतमां आवी जाय छे. श्रद्धा धर्मोना भेद
नथी पाडती पण अभेद आत्मानी प्रतीतमां ते बधा धर्मो समाई जाय छे. अनंतधर्मोना स्वीकारपूर्वक अभेद