छतां तेनो विषय अल्प छे, ने श्रुतज्ञान परोक्ष होवा छतां तेनो विषय घणो विशाळ छे, श्रुतज्ञान पोताना
विषयभूत पदार्थना सर्व क्षेत्र–काळने जाणे छे. एवा श्रुतज्ञानमां अनंत नयो छे. अहीं परने जाणवाना नयोनी
वात नथी पण पोताना आत्माने जाणनारा नयोनी वात छे. साधक जीव पोताना आत्माने नयो वडे केवो जाणे
कथंचित् कही पण शकाय छे; ए रीते सप्तभंगीना त्रीजा बोलमां ‘अस्ति–नास्ति’ धर्म कह्यो. वाणीवडे अस्ति
नास्ति बंने धर्मो एक साथे कही शकाता नथी तेथी अवक्तव्य छे ए वात हवेना बोलमां आवशे. आ तो
वक्तव्यनो बोल छे, अस्ति–नास्ति बंने धर्मो ज्ञानमां एक साथे आवी जाय छे ने वाणीथी ते क्रमे करीने कही
धर्मो एक साथे ज छे, अनंता धर्मोनो भाव एक साथे वर्ते छे ते ज द्रव्य छे, ज्ञानमां पण अनंत धर्मो एक साथे
जणाय छे, वाणीमां अनंता धर्मो एक साथे आवी शकता नथी पण क्रम पडे छे, वाणीथी बधा धर्मो न कही
शकाय पण अमुक धर्मो ज कही शकाय छे; माटे शब्द सामे जोये वस्तु पकडाय तेवी नथी पण ज्ञानने अंर्तमुख
करीने वस्तुस्वभावने पकडे तो ज वस्तु समजाय तेवी छे. आ ४७ नयोथी ४७ धर्मोनुं वर्णन कर्युं छे तेनुं तात्पर्य
एकेक धर्मना भेद सामे जोवानुं नथी पण एवा अनंत धर्मोने धारण करनार चैतन्यद्रव्यने लक्षमां लईने तेनो
‘आत्मद्रव्य अवक्तव्यनये युगपद् स्व–पर द्रव्य–क्षेत्र–काळ–भावथी अवक्तव्य छे.’ (अहीं तीरनुं
कथन बाकी रही जाय छे अने ‘परथी नास्ति छे’ एम कहेतां ते ज वखते बीजा अस्तिधर्मनुं कथन बाकी रही
जाय छे, ए रीते वाणी द्वारा बंने धर्मो एक साथे कही शकाता नथी माटे आत्मा अवक्तव्य छे. सर्वथा अवक्तव्य
नथी पण बंने धर्मो युगपद कही शकाता नथी ते अपेक्षाए अवक्तव्य छे, क्रमे तो कही शकाय छे. ते अपेक्षाए
वक्तव्य छे. वस्तुमां बंने धर्मो एक साथे ज छे. अवक्तव्यथी वस्तुने अवक्तव्य कीधी, ते वखते ज वस्तुमां
कथंचित् ‘वक्तव्य’ धर्म पण छे तेने जो न स्वीकारे तो अवक्तव्यनय पण मिथ्या छे. अनंतधर्मवाळी आखी
प्रतीतमां ल्ये तो ज सम्यक्श्रद्धा कहेवाय. आवडा मोटा धर्मीनी कबूलात करे तो ज तेना आश्रये धर्मनी शरूआत
थाय छे. दरेक आत्मा अनंतधर्मोवाळो धर्मी छे तेने कबूलनारी श्रद्धा पण आवडी मोटी अने गंभीर छे. ते श्रद्धा
कोई निमित्तना आश्रये के रागना आश्रये थती नथी पण स्वभावना आश्रये ज थाय छे. आवा आत्मानी
कबूलात वगर ‘आत्मा तो अखंड छे, शुद्ध छे’ एम उपर–उपरथी सांभळीने माने, तो तेने आत्मानो जेवडो
महिमा छे तेवडो भासे नहि एटले तेनी श्रद्धा छीछरी–पातळी–मिथ्या छे. जेटला अनंतधर्मोवाळो आत्मा
केवळज्ञानमां जणाय छे ते बधाय धर्मोवाळो आत्मा सम्यक्श्रद्धानी प्रतीतमां आवी जाय छे. श्रद्धा धर्मोना भेद
नथी पाडती पण अभेद आत्मानी प्रतीतमां ते बधा धर्मो समाई जाय छे. अनंतधर्मोना स्वीकारपूर्वक अभेद