आत्मानी श्रद्धा करे छे. जे जीव पोताना आत्माने अनंतधर्मवाळो कबूले ते जीव क्षणिक रागादिभावो जेटलो
पोताने माने ज नहि. जो राग जेटलो ज पोताने माने तो अनंतधर्मोवाळो आत्मा कबूली शके नहि; एटले
अनंतधर्मोवाळा आत्मानी यथार्थ कबूलातमां तो सम्यग्दर्शन ने सम्यग्ज्ञान आवी जाय छे.
छे, अने ते बंने धर्मो एकसाथे कही शकाता नथी ते अपेक्षाए, ते ज आत्मा अवक्तव्यधर्मवाळो छे;–ए प्रमाणे
सप्तभंगीना चार भंग कह्या. जुओ! आ अस्ति–नास्ति आदि सप्तभंगी छे ते सर्वज्ञवीतरागदेवे कहेला
आत्मद्रव्यने ओळखवानो ‘ट्रेईड मार्क’ छे, तेना वडे तारा आत्माने परथी जुदो ने पोताना अनंतधर्मोथी
एकमेक ओळखी लेजे. आ सप्तभंगी तो दरेकेदरेक पदार्थमां लागु पडे छे, पण अत्यारे तो आत्माना धर्मोनुं
वर्णन चाले छे, तेथी आत्मा उपर ते सप्तभंगी उतारी छे.
(७) अस्तित्व–अवक्तव्यनये आत्मानुं वर्णन
जे अनंतधर्मोवाळुं आत्मद्रव्य छे ते अस्तित्व–अवक्तव्यनये स्वद्रव्य–क्षेत्र–काळ–भावथी तथा युगपद्
होय, केम के वाचक छे ते वाच्यने बतावे छे.
(२) वस्तु परपणे नथी, एम नास्तित्व कही शकाय छे.
(३) वस्तु स्वपणे छे ने परपणे नथी. एम अस्तित्व–नास्तित्व क्रमथी कही शकाय छे.
–ए रीते पहेला त्रणे भंग वक्तव्यमां आवे छे.
नयो भिन्न भिन्न छे तेम ज ते साते नयोना विषयभूत सात धर्मो वस्तुमां भिन्न भिन्न छे.
नास्तित्वनुं ज्ञान पण भेगुं ज पडयुं छे; वस्तुमां बधा धर्मो एक साथे छे, प्रमाणज्ञानमां बधा एक साथे जणाय
छे, पण वाणीमां एकसाथे कही शकाता नथी. आत्मा स्वपणे छे एम कह्युं ते ज वखते आत्मामां बीजा
अनंतधर्मो छे ते कही शकाया नहि–आ अपेक्षाए आत्मा ‘अस्तित्व–अवक्तव्य’ धर्मवाळो छे. जे ज्ञान आ
अपेक्षाथी आत्माने लक्षमां ल्ये तेने अस्तित्व–अवक्तव्यनय कहेवाय छे.
एक धर्मीना श्रद्धा–ज्ञानमां अमुक प्रकारनो आत्मा होय ने बीजा धर्मीना श्रद्धा–ज्ञानमां तेथी जुदा प्रकारनो
आत्मा होय–एवी विविधता होती नथी. आवा आत्माना सम्यक्श्रद्धा–ज्ञान कर्या पछी कोईने तेमां विशेष
लीनता होय ने कोईने ओछी लीनता होय–एम चारित्रमां विविधता होय छे, पण तेमां विरोधता होती नथी.
हीन–अधिकताना कारणे विविधता होवा छतां तेनी जात तो एक ज प्रकारनी छे तेथी तेमां विरोधता नथी.
अनंता ज्ञानीओनो अभिप्राय एक सरखो ज छे.