Atmadharma magazine - Ank 097
(Year 9 - Vir Nirvana Samvat 2478, A.D. 1952)
(Devanagari transliteration).

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ः २०ः आत्मधर्मः ९७
आत्मानी श्रद्धा करे छे. जे जीव पोताना आत्माने अनंतधर्मवाळो कबूले ते जीव क्षणिक रागादिभावो जेटलो
पोताने माने ज नहि. जो राग जेटलो ज पोताने माने तो अनंतधर्मोवाळो आत्मा कबूली शके नहि; एटले
अनंतधर्मोवाळा आत्मानी यथार्थ कबूलातमां तो सम्यग्दर्शन ने सम्यग्ज्ञान आवी जाय छे.
जे आत्मा पोताना द्रव्य–क्षेत्र–काळ–भावथी अस्तित्वधर्मवाळो छे ते ज आत्मा परना द्रव्य–क्षेत्र–
कालभावथी नास्तित्वधर्मवाळो छे, ते ज आत्मा एक साथे बंने धर्मोवाळो होवाथी अस्तित्वनास्तित्वधर्मवाळो
छे, अने ते बंने धर्मो एकसाथे कही शकाता नथी ते अपेक्षाए, ते ज आत्मा अवक्तव्यधर्मवाळो छे;–ए प्रमाणे
सप्तभंगीना चार भंग कह्या. जुओ! आ अस्ति–नास्ति आदि सप्तभंगी छे ते सर्वज्ञवीतरागदेवे कहेला
आत्मद्रव्यने ओळखवानो ‘ट्रेईड मार्क’ छे, तेना वडे तारा आत्माने परथी जुदो ने पोताना अनंतधर्मोथी
एकमेक ओळखी लेजे. आ सप्तभंगी तो दरेकेदरेक पदार्थमां लागु पडे छे, पण अत्यारे तो आत्माना धर्मोनुं
वर्णन चाले छे, तेथी आत्मा उपर ते सप्तभंगी उतारी छे.
सप्तभंगीना चार भंग कह्या; हवे पांचमो भंग कहे छेः ४७ धर्मोना क्रममां आ सातमो धर्म छेः
(७) अस्तित्व–अवक्तव्यनये आत्मानुं वर्णन
जे अनंतधर्मोवाळुं आत्मद्रव्य छे ते अस्तित्व–अवक्तव्यनये स्वद्रव्य–क्षेत्र–काळ–भावथी तथा युगपद्
स्वपरद्रव्य–क्षेत्र–काळ–भावथी अस्तित्ववाळुं–अवक्तव्य छे. (अहीं तीरनुं द्रष्टांत छे ते मूळमां जोई लेवुं.)
आ अस्तित्व, नास्तित्व आदि साते प्रकारना धर्मो वस्तुना स्वभावमां छे; अस्तित्व अने नास्तित्व ए
बे ज धर्मो वस्तुमां छे ने बीजा पांच धर्मो नथी–एम नथी. जो वस्तुमां साते धर्मो न होय तो तेनुं कथन पण न
होय, केम के वाचक छे ते वाच्यने बतावे छे.
(१) वस्तु स्वपणे छे; एम अस्तित्व कही शकाय छे.
(२) वस्तु परपणे नथी, एम नास्तित्व कही शकाय छे.
(३) वस्तु स्वपणे छे ने परपणे नथी. एम अस्तित्व–नास्तित्व क्रमथी कही शकाय छे.
–ए रीते पहेला त्रणे भंग वक्तव्यमां आवे छे.
(४) वस्तु स्वपणे छे ने परपणे नथी, एम बंने एक साथे कही शकाता नथी माटे अवक्तव्य छे.
(प) ‘वस्तु स्वपणे छे’ एम अस्तित्वनुं कथन करतां, ‘वस्तु परपणे नथी’ एवुं नास्तित्वनुं कथन बाकी
रही जाय छे, ‘अस्तित्व’ कही शकायुं पण बंने साथे न कही शकाया ते अपेक्षाए वस्तु अस्ति–अवक्तव्य छे.
अस्तित्व अने अवक्तव्य ए बंने धर्मो भेगा करीने आ धर्म कह्यो छे–एम नथी, पण अस्तित्व अने
अवक्तव्य ए बंने सिवायनो आ पण एक स्वतंत्र धर्म छे. ज्ञानना अनंतनयोमां अस्तित्वनय वगेरे सात
नयो भिन्न भिन्न छे तेम ज ते साते नयोना विषयभूत सात धर्मो वस्तुमां भिन्न भिन्न छे.
‘अस्तित्व’ कहेतां वस्तुना द्रव्य–क्षेत्र–काळ–भाव ए चारे एक साथे आवी जाय छे. हुं आत्मा छुं, मारा
द्रव्य–क्षेत्र–काळ–भावथी छुं एम अस्तित्वने जाण्युं ते क्षणे ज ‘हुं परना द्रव्य–क्षेत्र–काळ–भावथी नथी’ एवुं
नास्तित्वनुं ज्ञान पण भेगुं ज पडयुं छे; वस्तुमां बधा धर्मो एक साथे छे, प्रमाणज्ञानमां बधा एक साथे जणाय
छे, पण वाणीमां एकसाथे कही शकाता नथी. आत्मा स्वपणे छे एम कह्युं ते ज वखते आत्मामां बीजा
अनंतधर्मो छे ते कही शकाया नहि–आ अपेक्षाए आत्मा ‘अस्तित्व–अवक्तव्य’ धर्मवाळो छे. जे ज्ञान आ
अपेक्षाथी आत्माने लक्षमां ल्ये तेने अस्तित्व–अवक्तव्यनय कहेवाय छे.
दरेक आत्मा एक समयमां पोताना अनंत धर्मोनो अधिष्ठाता छे; तेने ओळखवा माटे आ वर्णन चाले
छे. जेटला धर्मी जीवो होय ते बधायना श्रद्धा–ज्ञानमां आवो अनंत धर्मवाळो आत्मा एक सरखो ज होय छे.
एक धर्मीना श्रद्धा–ज्ञानमां अमुक प्रकारनो आत्मा होय ने बीजा धर्मीना श्रद्धा–ज्ञानमां तेथी जुदा प्रकारनो
आत्मा होय–एवी विविधता होती नथी. आवा आत्माना सम्यक्श्रद्धा–ज्ञान कर्या पछी कोईने तेमां विशेष
लीनता होय ने कोईने ओछी लीनता होय–एम चारित्रमां विविधता होय छे, पण तेमां विरोधता होती नथी.
हीन–अधिकताना कारणे विविधता होवा छतां तेनी जात तो एक ज प्रकारनी छे तेथी तेमां विरोधता नथी.
अनंता ज्ञानीओनो अभिप्राय एक सरखो ज छे.