Atmadharma magazine - Ank 097
(Year 9 - Vir Nirvana Samvat 2478, A.D. 1952)
(Devanagari transliteration).

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दरेक द्रव्यनी स्वकाळलब्धि
श्री स्वामी कार्तिकेयानुप्रेक्षानी २१७ मी गाथामां कहे छे केः सर्वे द्रव्योमां परिणमवानी
शक्ति स्वभावभूत छे, अन्य द्रव्य निमित्तमात्र छे–
णियणियपरिणामाणं णियणियदव्वं पि कारणं होदि।
अण्णं बाहिरदव्वं णिमित्तमत्तं वियाणेह।।२१७।।
अर्थः– सर्वे द्रव्यो पोतपोताना परिणामोना उपादानकारण छे; जे बीजा बाह्य द्रव्यो छे
ते अन्यना निमित्तमात्र छे एम जाणो.
भावार्थः– जे घटादिकनुं उपादानकारण माटी छे अने चाक, दंड वगेरे निमित्तकारण छे
तेम सर्वे द्रव्यो पोताना पर्यायोना उपादानकारण छे अने काळद्रव्य निमित्तकारण छे.
द्रव्योना स्वभावभूत अनेक शक्तिओ छे, तेने कोण निषेधी शके?–अर्थात् कोई निषेधी न
शके–एम कहे छे–
कालाइलद्धिजुत्ता णाणासत्तीहिं संजुदा अत्था।
परिणममाणा हि सयं ण सक्कदे को वारेदुं।।२१९।।
अर्थः– बधाय पदार्थो काळ आदि लब्धि सहित अने अनेक शक्तिओथी संयुक्त छे तेम
ज स्वयं परिणमे छे; तेमने परिणमता निवारवाने कोई समर्थ नथी.
भावार्थः– सर्वे द्रव्यो पोतपोताना परिणामरूप द्रव्य–क्षेत्र–काळ सामग्रीने पामीने पोते
ज भावरूपे परिणमे छे, तेने कोई निवारी नथी शकतुं.
वळी २४४ मी गाथामां कहे छे के–
सव्वाण पज्जयाणं अविज्जमाणाण होदि उप्पत्ती।
कालाइलद्धीए अणाइणिहणम्मि दव्वम्मि।।२४४।।
अर्थः– अनादिनिधन द्रव्यने विषे काळ आदि लब्धिथी सर्वे अविद्यमान पर्यायोनी ज
उत्पत्ति छे.
भावार्थः– अनादिनिधन द्रव्यने विषे काळादि लब्धिथी पर्याय अविद्यमान (एटले के
अणछती) ऊपजे छे. एम नथी के ‘सर्वे पर्यायो एक ज समये विद्यमान छे अने ते ढांकेला छे
तेमांथी उघडता जाय छे!’ परंतु समये समये क्रमे करीने नवा नवा ज पर्यायो ऊपजे छे. द्रव्य
त्रिकाळवर्ती सर्वे पर्यायोनो समुदाय छे, काळभेदथी क्रमे क्रमे पर्यायो थाय छे.
(दरेक द्रव्यने पोताना पर्यायथी काळलब्धि होय छे. दरेक द्रव्यमां ते ते समयनी जे
पर्याय छे ते ज तेनी स्वकाळलब्धि छे. द्रव्य पोतानी स्वकाळलब्धि अनुसार स्वयं परिणमे छे,
तेना स्वकाळलब्धिथी थता पर्यायोने आघापाछा फेरववा कोई समर्थ नथी.–एवुं वस्तुस्वरूप
उपरनी गाथाओमां स्पष्टपणे बताव्युं होवाथी ते गाथाओ अहीं आपवामां आवी छे.)
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