अने अहीं एम कह्युं के ज्ञानलक्षणथी आत्मा प्रसिद्ध थाय छे; तेमां पण ‘ज्ञानलक्षण’ कहेतां शुद्धनय अनुसार
थयेलुं ज्ञान लेवुं. जे ज्ञान स्वसन्मुख थईने आत्माने न जाणे अने परने ज जाणे ते ज्ञान आत्मानुं लक्षण नथी.
जे ज्ञान आत्माने लक्ष्य करीने तेने प्रसिद्ध करे–जाणे–ते ज्ञान आत्मानुं लक्षण छे. रागथी भिन्न आत्मानी
प्रसिद्धि करनारुं ज्ञान रागने पण जाणवानी ताकातवाळुं छे.
प्रसिद्धिनुं साधन छे–एम जणाव्युं छे.
रागादि भावो पण आत्माना स्वभावथी अत्यंत जुदा छे, ते रागादि पण आत्मानुं लक्षण नथी. ज्ञान ज
आत्मानो असाधारण विशेषगुण छे तेथी ते ज आत्मानुं लक्षण छे. ज्ञानगुण स्व–परने जाणे छे, आत्मा
सिवाय बीजा तो कोई द्रव्यमां ज्ञानगुण नथी, अने आत्माना अनंतधर्मोमां पण एक ज्ञानगुण ज स्व–
परप्रकाशक छे तेथी ते असाधारण छे; ज्ञान सिवायना बीजा श्रद्धा–चारित्र वगेरे गुणो निर्विकल्प छे एटले के
तेओ पोताने के परने जाणता नथी, मात्र ज्ञानगुण ज पोताने अने परने जाणे छे; माटे ‘आत्मा ज्ञानमात्र छे’
एम कहीने ते ज्ञानगुणवडे आत्माने ओळखाववामां आवे छे.
ओळखाय छे; पर्यायमां राग अने आत्मा मळेलां देखाय छे, त्यां ज्ञानलक्षण आत्माने रागथी पण भिन्न
ओळखावे छे; ए रीते ज्ञानलक्षण वडे आत्मानी प्रसिद्धि थाय छे, माटे आत्माने ज्ञानमात्र कहेवामां आव्यो छे.
अमने आत्मा जणाववो छे, तो लक्षणनो भेद पाडया वगर सीधो अभेद आत्मा ज बतावो ने? भेद पाडीने शा
माटे कहो छो?
द्वारा लक्ष्य ओळखाववामां आवे छे. जेने आत्माना लक्षणनी ज खबर नथी तेने आत्मानुं भान होतुं नथी.
‘शरीर ते आत्मानुं लक्षण छे अथवा शरीरने धारण करी राखवुं ते आत्मानो गुण छे’ एम जे अज्ञानी माने
छे तेने प्रथम आत्मानुं लक्षण ओळखावे छे के ‘जो भाई! आत्मा तो ज्ञानस्वरूप छे, जे जाणे छे ते आत्मा छे.’
ए प्रमाणे लक्षणने ओळखे त्यारे ज ते लक्ष्यने पकडी शके छे.
नथी, ने ज्ञान अंर्तमुख थतां आत्मानो अनुभव थाय छे ने राग छूटी जाय छे; ए रीते राग अने ज्ञान भिन्न
भिन्न छे, तेमां ज्ञान ते ज आत्मानुं लक्षण छे. आम जाणे त्यारे आत्माना लक्षणने जाण्युं कहेवाय, अने एवा
लक्षणने जाणे तो ज आत्मानो अनुभव थाय. अज्ञानीओ आत्माने अनेक प्रकारे विपरीत लक्षणवाळो मानी
रह्या छे एटले तेमने तो लक्षण