Atmadharma magazine - Ank 097
(Year 9 - Vir Nirvana Samvat 2478, A.D. 1952)
(Devanagari transliteration).

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ः४ः आत्मधर्मः ९७
पहेलां अगियारमी गाथामां कह्युं हतुं के शुद्धनय अनुसार बोध थवामात्रथी आत्मा अने कर्मनुं भेदज्ञान
थाय छे एटले के शुद्धनय वडे आत्माने जाणतां कर्मथी भिन्न सहज ज्ञायकस्वभावपणे आत्मा अनुभवाय छे.
अने अहीं एम कह्युं के ज्ञानलक्षणथी आत्मा प्रसिद्ध थाय छे; तेमां पण ‘ज्ञानलक्षण’ कहेतां शुद्धनय अनुसार
थयेलुं ज्ञान लेवुं. जे ज्ञान स्वसन्मुख थईने आत्माने न जाणे अने परने ज जाणे ते ज्ञान आत्मानुं लक्षण नथी.
जे ज्ञान आत्माने लक्ष्य करीने तेने प्रसिद्ध करे–जाणे–ते ज्ञान आत्मानुं लक्षण छे. रागथी भिन्न आत्मानी
प्रसिद्धि करनारुं ज्ञान रागने पण जाणवानी ताकातवाळुं छे.
अहीं आचार्यदेवे व्यवहाराभासने उडाडयो छे, एटले के एकला परने ज जाणनारुं व्यवहारज्ञान ते
खरेखर आत्मानी प्रसिद्धिनुं साधन नथी, पण अंतरमां वळीने शुद्धनयथी आत्माने जाणे ते ज्ञान ज आत्मानी
प्रसिद्धिनुं साधन छे–एम जणाव्युं छे.
जगतमां लक्षणद्वारा लक्ष्यने ओळखाववामां आवे छे. आत्मानुं लक्षण ज्ञान छे, ते ज्ञानलक्षण वडे ज
आत्मा ओळखाय छे. शरीरादि तो आत्माथी अत्यंत भिन्न छे एटले शरीर ते आत्मानुं लक्षण नथी, अने
रागादि भावो पण आत्माना स्वभावथी अत्यंत जुदा छे, ते रागादि पण आत्मानुं लक्षण नथी. ज्ञान ज
आत्मानो असाधारण विशेषगुण छे तेथी ते ज आत्मानुं लक्षण छे. ज्ञानगुण स्व–परने जाणे छे, आत्मा
सिवाय बीजा तो कोई द्रव्यमां ज्ञानगुण नथी, अने आत्माना अनंतधर्मोमां पण एक ज्ञानगुण ज स्व–
परप्रकाशक छे तेथी ते असाधारण छे; ज्ञान सिवायना बीजा श्रद्धा–चारित्र वगेरे गुणो निर्विकल्प छे एटले के
तेओ पोताने के परने जाणता नथी, मात्र ज्ञानगुण ज पोताने अने परने जाणे छे; माटे ‘आत्मा ज्ञानमात्र छे’
एम कहीने ते ज्ञानगुणवडे आत्माने ओळखाववामां आवे छे.
घणा पदार्थो भेगां होय तेमांथी कोई एक पदार्थने जुदो पाडीने ओळखाववा माटेनुं जे साधन तेने
लक्षण कहेवाय छे. ‘आत्मा ज्ञानमात्र छे’ एम कहेतां समस्त परद्रव्यो अने परभावोथी जुदो आत्मा
ओळखाय छे; पर्यायमां राग अने आत्मा मळेलां देखाय छे, त्यां ज्ञानलक्षण आत्माने रागथी पण भिन्न
ओळखावे छे; ए रीते ज्ञानलक्षण वडे आत्मानी प्रसिद्धि थाय छे, माटे आत्माने ज्ञानमात्र कहेवामां आव्यो छे.
*
हवे शिष्य बीजो प्रश्न करे छे केः ए लक्षणनी प्रसिद्धिथी शुं प्रयोजन छे? मात्र लक्ष्य एवो आत्मा ज
प्रसिद्ध करवा योग्य छे. लक्ष्य–लक्षणना भेद पाडया विना सीधो आत्मा ज ओळखावी दो ने? अंते तो तमारे
अमने आत्मा जणाववो छे, तो लक्षणनो भेद पाडया वगर सीधो अभेद आत्मा ज बतावो ने? भेद पाडीने शा
माटे कहो छो?
शिष्यना प्रश्ननो उत्तर आचार्यदेव आपे छे केः जेने लक्षण अप्रसिद्ध होय तेने लक्ष्यनी प्रसिद्धि थती नथी.
जेने लक्षण प्रसिद्ध थाय तेने ज लक्ष्यनी प्रसिद्धि थाय छे.
जुओ, आमां बे वात आवी जाय छे. प्रथम तो जेने ज्ञानलक्षण वडे लक्ष्य एवा आत्मानुं भान अने
अनुभव वर्ते छे तेने तो लक्ष्य–लक्षणना भेदनुं कांई प्रयोजन नथी. पण जेने लक्ष्यनी खबर नथी तेने लक्षण–
द्वारा लक्ष्य ओळखाववामां आवे छे. जेने आत्माना लक्षणनी ज खबर नथी तेने आत्मानुं भान होतुं नथी.
‘शरीर ते आत्मानुं लक्षण छे अथवा शरीरने धारण करी राखवुं ते आत्मानो गुण छे’ एम जे अज्ञानी माने
छे तेने प्रथम आत्मानुं लक्षण ओळखावे छे के ‘जो भाई! आत्मा तो ज्ञानस्वरूप छे, जे जाणे छे ते आत्मा छे.’
ए प्रमाणे लक्षणने ओळखे त्यारे ज ते लक्ष्यने पकडी शके छे.
अज्ञानीने तो देह ते ज हुं अथवा तो राग ते ज हुं–एवी भ्रमणा छे, एटले तेने तो आत्माना लक्षणनुं
ज भान नथी. रागनुं वलण तो बहारमां जाय छे ने तेमां तो आकुळता थाय छे, तेमां आत्मानो अनुभव थतो
नथी, ने ज्ञान अंर्तमुख थतां आत्मानो अनुभव थाय छे ने राग छूटी जाय छे; ए रीते राग अने ज्ञान भिन्न
भिन्न छे, तेमां ज्ञान ते ज आत्मानुं लक्षण छे. आम जाणे त्यारे आत्माना लक्षणने जाण्युं कहेवाय, अने एवा
लक्षणने जाणे तो ज आत्मानो अनुभव थाय. अज्ञानीओ आत्माने अनेक प्रकारे विपरीत लक्षणवाळो मानी
रह्या छे एटले तेमने तो लक्षण