मागशरः २४७८ः ३३ः
बोजो छे ज नहि, जेम सिद्धना आत्मामां कर्मनो बोजो नथी तेम कोई पण आत्मामां कर्मनो बोजो नथी. आत्मा
उपर कर्मनो बोजो छे एम कहेवुं ते तो मात्र निमित्तना संयोगनुं कथन छे, खरेखर आत्मामां कर्मनी नास्ति ज
छे. लोकना छेडे ज्यां अनंता सिद्ध भगवंतो पोताना पूर्णानंदमां बिराजी रह्या छे त्यां ज निगोदना अनंत जीवो
पण रहेला छे ते जीवो अनंत दुःखना वेदनमां पडया छे. ज्यां सिद्ध त्यां ज निगोद, छतां बंनेना आत्मा भिन्न,
बंनेनुं स्वक्षेत्र भिन्न, बंनेनी स्वपर्याय भिन्न अने बंनेना भावो पण भिन्न छे. सिद्धना चतुष्टयनो निगोदना
चतुष्टयमां अभाव छे. अनंत सिद्धभगवंतो अने निगोदना जीवो जे आकाशक्षेत्रे रहेलां छे ते ज क्षेत्रे अनंता
कर्मो पण रहेलां छे; त्यां जेम सिद्ध भगवंतोने ते कर्मनो बोजो नथी तेम खरेखर निगोदना जीवोने पण कर्मनो
बोजो नथी. सिद्ध के निगोद दरेक आत्मा पोताना स्वचतुष्टयथी अस्तिरूप छे, ने कर्मना चतुष्टयनो तेनामां
अभाव छे. निगोदना जीवनी अत्यंत हीणी पर्याय छे ते तेना पोताना स्वकाळने लीधे ज छे, कर्मना बोजाने
लीधे नथी. जो आम न माने तो अस्ति–नास्तिधर्म ज साबित नहि थाय!
दरेक जीवने सुख के दुःख पोताना कारणे ज थाय छे–एम जाणवुं ते निश्चय छे, अने कोई पण बीजी
चीजथी सुख के दुःख थाय एम कहेवुं ते मात्र संयोगरूप निमित्तनुं ज्ञान करवा माटेनो व्यवहार छे; खरेखर
परनी आत्मामां नास्ति छे, तेनाथी आत्माने सुख–दुःख वगेरे कंई पण थतुं नथी.
आत्मामां अस्ति–नास्ति आदि अनंता स्वधर्मो अनादिअनंत एक समयमां वर्ती रह्या छे, एवा
आत्माने जाणीने तेनी श्रद्धा अने ज्ञान करे तो सम्यक्त्व थाय, ए सिवाय धर्मनो अंश पण थाय नहि,
परसन्मुख जोवाथी आत्मानो धर्म प्रगटे नहि केम के आत्मानो कोई धर्म परमां नथी. आत्माना अनंता धर्मो
आत्मामां छे तेनी सन्मुखताथी ज पर्यायमां सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप धर्म प्रगटे छे.
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अस्ति, नास्ति आदि सप्तभंगी ते जैनधर्मनुं मूळ छे, तेनाथी जगतनी कोई पण वस्तुनुं स्वरूप नक्की
थई जाय छे. कोई एम कहे के शास्त्रने लीधे ज्ञान थाय. तो कहे छे के ना; केम के आत्माना अस्तित्वमां ज्ञाननी
नास्ति छे. कोई कहे के कर्मो आत्माना ज्ञानने रोके तो कहे छे के ना; केम के आत्माना अस्तित्वमां कर्मनुं
नास्तित्व छे. सप्तभंगीवडे जीव बीजा छए द्रव्योथी जुदो पडी जाय छे.
(१) जीव जीवपणे छे ने बीजा अनंत पर जीवो पणे ते नथी; एटले जीव बीजा जीवोनुं कांई करी शके
नहि तेम ज बीजा जीवोथी तेनुं कांई थाय नहि.
(२) जीव पोतापणे छे ने अनंत पुद्गलपणे नथी; तेथी जीव शरीरादि पुद्गलमां कांई करी शके नहि
तेमज शरीर–कर्म वगेरे जीवमां कांई रागादि करी शके नहि.
(३) जीव पोतापणे छे ने धर्मास्तिकायद्रव्यपणे नथी; एटले धर्मास्तिकायने लीधे जीव गति करतो नथी.
(४) जीव पोतापणे छे ने अधर्मास्तिकायद्रव्यपणे नथी; एटले अधर्मास्तिकायने लीधे जीव स्थिर रहे
छे–एम नथी.
(प) जीव पोतापणे छे ने काळद्रव्यपणे ते नथी; तेथी काळद्रव्य जीवने परिणमावे छे–एम नथी.
(६) जीव पोतापणे छे ने आकाशद्रव्यपणे नथी; तेथी खरेखर जीव आकाशना क्षेत्रमां रहेलो नथी पण
पोताना स्वक्षेत्रमां ज रहेलो छे.
–आ प्रमाणे अस्ति–नास्तिधर्म वडे जे जीव पोताने समस्त परद्रव्योथी जुदो जाणे ते पोताना स्वभाव
तरफ वळ्या विना रहे नहि. आत्मानो नास्तित्वधर्म कहेतां पर द्रव्योनुं अस्तित्व पण सिद्ध थई जाय छे; केम के
जो पर द्रव्यो न होय तो तेना अभावरूप जीवनो नास्तित्वधर्म सिद्ध न थई शके.
सप्तभंगी वडे समस्त परद्रव्यथी तो आत्माने भिन्न पाडयो; हवे पोतामां ने पोतामां पण अनंती
सप्तभंगी उतरे छे.
जगतमां अनंता द्रव्यो छे तेमां एकेक द्रव्यनी पोतापणे अस्ति ने बीजा अनंत द्रव्योपणे तेनी नास्ति;
–एम द्रव्यमां अनंत सप्तभंगी समजवी.
पोताना ज्ञान, दर्शन, चारित्र वगेरे अनंत गुणो छे, तेमां एकेक गुण पोतापणे छे ने बीजा
अनंतगुणोपणे ते नथी;–एम दरेक गुणमां अनंत सप्तभंगी समजवी.