Atmadharma magazine - Ank 098
(Year 9 - Vir Nirvana Samvat 2478, A.D. 1952)
(Devanagari transliteration).

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ः ३२ः आत्मधर्मः ९८
‘आत्मा कोण छे ने कई रीते पमाय?’
(४)
श्री प्रवचनसारना परिशिष्टमां ४७ नयोद्वारा
आत्मद्रव्यनुं वर्णन कर्युं छे तेना उपर पूज्य
गुरुदेवश्रीनां विशिष्ट अपूर्व प्रवचनोनो सार.
(अंक ९७ थी चालु)
*
(जिज्ञासु शिष्य पूछे छे केः प्रभो! ‘आ आत्मा कोण
छे ने तेनी प्राप्ति केवी रीते थाय छे? तेना उत्तरमां आचार्यदेव
कहे छे के आत्मा अनंत धर्मोवाळुं एक द्रव्य छे अने अनंत
नयोवाळा श्रुतज्ञान प्रमाणवडे स्वानुभवथी ते जणाय छे.
प्रमाणवडे जणाता आत्मानुं अहीं ४७ नयोथी वर्णन चाले छे.
तेमां द्रव्यनय, पर्यायनय तेम ज अस्तित्व–नास्तित्व आदि
सप्तभंगीना सात नयोथी जे वर्णन कर्युं तेनुं विवेचन
अत्यारसुधीमां आवी गयुं छे.)
आ अस्ति, नास्ति आदि धर्मो कह्या ते तो बधाय पदार्थोमां छे. एकेक सूक्ष्म रजकणमां पण आ साते
धर्मो छे. मारुं अस्तित्व मारामां छे ने परमां नथी, परनुं अस्तित्व तेनामां छे ने मारामां नथी, एटले कोई पण
पर चीजथी मने सुख नथी तेमज कोईपण पर चीजथी मने दुःख नथी, अने माराथी पर चीजमां कांई आघुं–
पाछुं थतुं नथी;–आम समजे तो अस्ति–नास्ति धर्मने यथार्थ समज्यो कहेवाय. परथी मने सुख–दुःख थाय छे
अने हुं पर चीजने आघी–पाछी करी शकुं छुं–एम माननार वस्तुना अस्ति–नास्ति धर्मने समज्यो नथी. देव–
गुरु–शास्त्रथी मने लाभ थाय के कर्मोथी मने नुकशान थाय–एम जे माने ते जीव आ धर्मोने समज्यो नथी; केम
के जेनो पोतामां अभाव छे ते पोताने लाभ–नुकशान कई रीते करी शके? न ज करी शके.
नरकना जीवने अग्निनुं के ठंडीनुं दुःख नथी, केम के तेनाथी तो आत्मा नास्तिरूप छे.
ईंद्रना जीवने ईंद्राणीना संयोगनुं सुख नथी, केम के तेनाथी तो आत्मा नास्तिरूप छे.
–आम जे समजे तेने अनुकूळतामां सुखबुद्धि न रहे ने प्रतिकूळतामां दुःखबुद्धि न रहे, एटले
अनंतानुबंधीना राग–द्वेष तो तेने थाय ज नहि. आ रीते वस्तुस्वरूप समजतां ज अनंत राग–द्वेष टळी जाय
छे. वस्तुस्वरूप समज्या विना बीजा गमे तेटला बहारना उपाय करे तो पण अनंतानुबंधी राग–द्वेष मटे नहि.
अस्ति–नास्तिधर्मवडे वस्तुनुं स्वरूप समजतां परथी भिन्नपणानुं भान थईने स्वाश्रये साचुं सुख प्रगटे छे.
आत्मा पोताना द्रव्य–क्षेत्र–काळ–भावपणे वर्ते छे ने कर्मना चतुष्टयपणे वर्ततो नथी, तेमज कर्मो
आत्माना चतुष्टयपणे वर्तता नथी, माटे आत्माने जड कर्मोनो