आत्मद्रव्यनुं वर्णन कर्युं छे तेना उपर पूज्य
गुरुदेवश्रीनां विशिष्ट अपूर्व प्रवचनोनो सार.
कहे छे के आत्मा अनंत धर्मोवाळुं एक द्रव्य छे अने अनंत
नयोवाळा श्रुतज्ञान प्रमाणवडे स्वानुभवथी ते जणाय छे.
प्रमाणवडे जणाता आत्मानुं अहीं ४७ नयोथी वर्णन चाले छे.
तेमां द्रव्यनय, पर्यायनय तेम ज अस्तित्व–नास्तित्व आदि
सप्तभंगीना सात नयोथी जे वर्णन कर्युं तेनुं विवेचन
अत्यारसुधीमां आवी गयुं छे.)
पर चीजथी मने सुख नथी तेमज कोईपण पर चीजथी मने दुःख नथी, अने माराथी पर चीजमां कांई आघुं–
पाछुं थतुं नथी;–आम समजे तो अस्ति–नास्ति धर्मने यथार्थ समज्यो कहेवाय. परथी मने सुख–दुःख थाय छे
अने हुं पर चीजने आघी–पाछी करी शकुं छुं–एम माननार वस्तुना अस्ति–नास्ति धर्मने समज्यो नथी. देव–
गुरु–शास्त्रथी मने लाभ थाय के कर्मोथी मने नुकशान थाय–एम जे माने ते जीव आ धर्मोने समज्यो नथी; केम
के जेनो पोतामां अभाव छे ते पोताने लाभ–नुकशान कई रीते करी शके? न ज करी शके.
ईंद्रना जीवने ईंद्राणीना संयोगनुं सुख नथी, केम के तेनाथी तो आत्मा नास्तिरूप छे.
–आम जे समजे तेने अनुकूळतामां सुखबुद्धि न रहे ने प्रतिकूळतामां दुःखबुद्धि न रहे, एटले
छे. वस्तुस्वरूप समज्या विना बीजा गमे तेटला बहारना उपाय करे तो पण अनंतानुबंधी राग–द्वेष मटे नहि.
अस्ति–नास्तिधर्मवडे वस्तुनुं स्वरूप समजतां परथी भिन्नपणानुं भान थईने स्वाश्रये साचुं सुख प्रगटे छे.