द्रव्य द्रव्यपणे छे, ने एक गुणपणे के पर्यायपणे ते नथी;
एक गुण गुणपणे छे ने आखा द्रव्यपणे के एक पर्यायपणे ते नथी;
एक पर्याय पर्यायपणे छे ने द्रव्य के गुणपणे ते नथी;–आम न होय तो द्रव्य, गुण, पर्याय त्रणेनुं भिन्न
देखतभूल कहो, ते ज संसारनुं मूळ छे. वस्तुमां संयोगनो तो अभाव छे–एम जो अस्ति–नास्तिथी वस्तुना
जगतमां अनंत द्रव्यो छे, तेमां एक द्रव्य बीजा द्रव्यपणे कदी थतुं नथी.
एकेक द्रव्यमां अनंतागुणो छे तेमां एक गुण कदी बीजा गुणपणे थतो नथी.
एकेक गुणनी अनंत पर्यायो, तेमां एक पर्याय बीजी पर्यायपणे कदी थती नथी. द्रव्यपणे द्रव्य सत्,
जुओ तो खरा, आ वस्तुदर्शन. केटली निरपेक्षता! आवुं निरपेक्ष स्वरूप समजे तो ज्ञानमां निरपेक्षता एटले के
‘आम केम?’ एवो राग–द्वेषनो विकल्प करवो ते ज्ञाननुं पण स्वरूप नथी. आवा वस्तुस्वभावनी प्रतीत करतां
श्रुतज्ञाननो भाग. अनंतधर्मात्मक आखी वस्तुने जाणे ते प्रमाणज्ञान छे, अने तेना एक धर्मने मुख्य करीने
जाणे ते नय छे. आ नयो साधकना श्रुतज्ञानमां ज होय छे. केवळीभगवानना आत्मामां अस्तित्व वगेरे अनंत
धर्मो छे पण तेमना ज्ञानमां अस्तित्वनय वगेरे कोई नय होता नथी, तेओ तो नयातीत थई गया छे. अहीं तो
नयद्वारा जेणे वस्तुस्वरूप साधवुं छे एवा साधकने ४७ नयोद्वारा आत्मानुं स्वरूप ओळखावे छे. सिद्ध परमात्मा
के एक परमाणु, ते दरेक द्रव्य अनंतधर्मात्मक छे; पण अहीं तो आत्माने ओळखाववानुं प्रयोजन होवाथी
अस्तिरूप छे तेने ते ज अपेक्षाए नास्तिरूप नथी. एक ज वस्तुना बे धर्मो छे पण एक ज अपेक्षाए बंने धर्मो
नथी. जे अपेक्षाए अस्तित्व छे ते अपेक्षाए तो अस्तित्व ज छे. ते अपेक्षाए नास्तित्व नथी. जे आत्मा छे ते
ज अनात्मा छे.–कई रीते?–के स्वपणे जे आत्मा छे ते ज आत्मा पर स्वरूपनी अपेक्षाए नथी माटे ते अनात्मा
छे. आत्माने ‘अनात्मा’ कहेतां घणा मूंझाई जाय छे के अरे! आत्मा ते वळी अनात्मा होय? पण ‘आत्मा
परपणे नथी’–एम कहो के ‘परनी अपेक्षाए