Atmadharma magazine - Ank 098
(Year 9 - Vir Nirvana Samvat 2478, A.D. 1952)
(Devanagari transliteration).

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मागशरः २४७८ः ३पः
आत्मा अनात्मा छे’ एम कहो. अथवा तो आत्मा पोताना आत्मानी अपेक्षाए आत्मा छे अने बीजा
आत्मारूपे पोते नथी माटे बीजा आत्मानी अपेक्षाए आ आत्मा ‘अनात्मा’ छे.
जे क्षेत्ररूप छे ते ज अक्षेत्ररूप छे; आत्मा पोताना असंख्यप्रदेश अपेक्षाए क्षेत्ररूप छे. पण परना
क्षेत्रनी अपेक्षाए आत्मा अक्षेत्ररूप छे. क्षेत्ररूपपणुं अने अक्षेत्ररूपपणुं ए बंने धर्मो आत्माना छे.
ए ज प्रमाणे, स्वकाळ अपेक्षाए जे काळरूप छे ते ज परकाळ अपेक्षाए अकाळरूप छे. आत्मा पोताना
स्वकाळथी अस्तिरूप छे ने परकाळथी ते नास्तिरूप छे. पोतानी एकेक समयनी पर्याय स्वकाळथी होवारूप छे ने
ते ज पर्याय परकाळथी नास्तिरूप छे.
तेम ज जे भावरूप छे ते ज अभावरूप छे. आत्मानो भाव पोतापणे छे ने परना भावनी अपेक्षाए ते
भाव नथी एटले के अभाव छे. स्वअपेक्षाए आत्मानो भाव छे ने परअपेक्षाए ते अभावरूप छे.
–आम द्रव्य–क्षेत्र–काळ–भाव चारेमां अस्ति–नास्ति समजवी. आत्माना स्वद्रव्य–क्षेत्र–काळ के भावनो
एक अंश पण परपणे नथी, ने परना द्रव्य–क्षेत्र–काळ–भावनो एक अंश पण आत्मापणे नथी; आम निर्णय
करनारुं ज्ञान परनी एकताबुद्धिथी छूटीने स्वभावना आश्रय तरफ ज वळी जाय छे, एटले मोक्षमार्ग शरू थई
जाय छे.
स्व–पर तत्त्व भिन्न भिन्न छे–एवुं स्वतंत्र वस्तुस्वरूप समजे नहि ने वस्तुने पराधीन माने तेने साचो
समताभाव होई शके नहि. वस्तुस्वरूपने पराधीन मान्युं ते मान्यतामां ज अनंतो विषमभाव पडयो छे. भले
बहारथी क्रोधी न देखाय ने मंदकषाय राखतो होय तोपण, वस्तुस्वरूपनुं ज्यां भान नथी त्यां समतानो अंश
पण होतो नथी; आत्माना ज्ञानस्वभावनो अनादर छे ते ज मोटो विषमभाव छे. दरेक तत्त्व स्वतंत्र छे, कोई
कोईने आधीन नथी, मारो स्वभाव बधाने मात्र जाणवानो छे–एम वस्तुनी स्वतंत्रताने जाणीने पोताना
ज्ञानस्वभावने आदरवो ते ज साचो समभाव छे.
दरेक वस्तु पोताना अनंतधर्मोने स्वतंत्रपणे धारी राखे छे. वस्तुनो धर्म परने लीधे होतो नथी. दरेक
आत्मा पोताना अनंत धर्मनो आधार छे. द्रव्यनय, पर्यायनय, तथा अस्तित्व–नास्तित्व आदि सात नयो, एम
कुल नव नयोथी आत्मानुं वर्णन कर्युं. हवे दसमा ‘विकल्पनय’ थी आत्मानुं वर्णन करशे.
(क्रमशः)
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शुद्धात्मानी धगशवाळा जिज्ञासु शिष्यने.......
जेने शुद्ध आत्मा समजवानी धगश जागी छे एवा जिज्ञासु शिष्यने प्रश्न ऊठे छे के ‘एवो शुद्ध आत्मा
कोण छे के जेनुं स्वरूप जाणवुं जोईए? अनंत अनंत काळथी आत्माना शुद्धस्वभावनी वात सांभळी नथी. रुची
नथी, जाणी नथी, अनुभवी नथी, तेथी शिष्य प्रश्न करे छे के आत्मानो शुद्ध स्वभाव केवो छे?–आवा जिज्ञासु
शिष्यने आचार्यदेव शुद्धात्मानुं स्वरूप समजावे छे.
जेम रणमां कोईने पाणीनी तृषा लागी छे, पाणी पीवानी झंखना थई छे, ते पाणीनी निशानी
सांभळे त्यारे तेने केवी तालावेली थाय! ने पछी पाणी पीने केटलो तृप्त थाय! तेम जेने आत्मस्वरूप
जाणवानी झंखना थई छे ते शुद्ध आत्मानी वात सांभळतां केटलो आनंदित थाय! ने पछी सम्यक् पुरुषार्थ
करी आत्मस्वरूप पामी केटलो तृप्त थाय! शुद्ध आत्मस्वरूपने जाणवानी जेने तीव्र जिज्ञासा थई छे तेने
समयसार संभळाववामां आवे छे.
(जुओः समयसार–प्रवचन १ पृः १पप–६)
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