ः ३६ः आत्मधर्मः ९८
अनेकान्तमूर्ति भगवान आत्मानी
केटलीक शक्तिओ
(१)
* जीवत्व शक्ति *
*
(वीर सं. २४७प कारतक सुद ४)
आत्मद्रव्यने कारणभूत एवा चैतन्यमात्र भावनुं धारण जेनुं लक्षण अर्थात् स्वरूप छे एवी
जीवत्वशक्ति छे.–आवी जीवत्वशक्ति आत्माना ज्ञानमात्र भावमां ऊछळे छे.
सौथी पहेलां आत्मानुं जीवन बताववा माटे आ जीवत्वशक्ति लीधी. आ प्रधानभूत शक्ति छे. आत्मा
सदाय पोतानी जीवत्वशक्तिथी ज जीवी रह्यो छे, माटे आ जीवत्वशक्ति आत्मद्रव्यने कारणभूत छे. शरीर,
आयुष्य, रोटला वगेरे पर चीजो आत्माना जीवननुं कारण नथी, आ जीवत्वशक्ति ज आत्माना जीवननुं कारण
छे, तेनाथी ज आत्मा अनादिअनंत जीवी रह्यो छे.
आत्मा पोते त्रिकाळ चैतन्यस्वरूप छे. एम बताववा माटे अहीं चैतन्यमात्र भावने आत्मद्रव्यनुं कारण
कह्युं छे. खरेखर कारण कार्य जुदा नथी पण चैतन्यभाव वडे आत्मानी सिद्धि थाय छे माटे तेने आत्मानुं कारण
कह्युं. रागादि भावोथी आत्मा टकी रहेलो नथी पण चैतन्यभावथी ज ते त्रिकाळ टकनार छे. परथी अने
विकारथी टकवानुं अज्ञानी जीव माने भले, पण तेनो आत्मा य टके छे तो चैतन्यमात्र भावथी ज. पहेली
क्षणनो राग बीजी क्षणे नाश पामे छे छतां आत्मा तो चैतन्यप्राणथी एवो ने एवो टकी रहे छे. देहनो संयोग
पण अनंतवार आव्यो अने छूटयो, परंतु आत्मा तो अनादिथी पोतानी जीवत्वशक्तिथी जीवी रह्यो छे. अहीं
शरीरनी वात नथी. शरीर तो आयुकर्मना निमित्ते टके छे, पण आत्मा कांई आयुकर्मथी जीवतो नथी, आत्माने
आयुष्यनी मर्यादा नथी, ते तो अनादिअनंत पोताना चैतन्यप्राणथी जीवे छे.
शरीर ए ज जाणे पोतानुं जीवन होय, ने शरीर छूटतां जाणे के पोतानुं मृत्यु थई जतुं होय–एम
अज्ञानीने लागे छे; पण आत्मा तो सदाय पोतानी जीवनशक्तिथी जीवतो ज छे. जो आवी जीवनशक्तिने जाणे
तो मृत्युनो भय टळी जाय. अनंता सिद्ध भगवंतो शरीर वगर ज पोताना चैतन्यप्राणथी परम सुखी जीवन
जीवी रह्या छे.
आत्मानुं जीवन केवुं होय ते अहीं आचार्यदेव बतावे छे. हे जीव! जो तारे साचुं जीवन जीववुं होय तो,
आ जीवत्वशक्ति जेमां ऊछळी रही छे एवा तारा ज्ञानमात्र आत्माने जो. तारो आत्मा रोटलाथी, शरीरथी,
पैसाथी के आबरूथी टकतो नथी, पण अनादिअनंत जीवत्वशक्ति छे तेनाथी ज ते टके छे, वर्तमानमां पण
पोतानी जीवत्वशक्तिथी ज ते टकेलो छे. आवी जीवत्वशक्ति दरेक आत्मामां त्रिकाळ छे, पण अहीं तो साधकने
पोताना ज्ञानमात्र भावनी साथे आ शक्ति परिणमे छे–एम बताववुं छे.
चैतन्यमात्र भावने धारी राखवो ते जीवत्वशक्तिनुं लक्षण छे, अने ते चैतन्यमात्र भाव आत्मद्रव्यनुं
कारण छे. जो चैतन्यमात्र भाव न होय तो जीव ज न होय, चैतन्यभाव वगर आत्मद्रव्य ज न होई शके; माटे