चैतन्यभाव ते आत्मद्रव्यनुं कारण छे. आवा चैतन्यभावप्राणने धारण करी राखवा ते जीवत्वशक्तिनुं लक्षण छे,
ते शक्तिथी जीव सदाय जीवी रह्यो छे.
धारण करनारी जीवत्वशक्ति ज छे–एम कह्युं छे, कोई निमित्तथी–संयोगथी के विकारथी जीव टकतो नथी; दस
प्रकारना व्यवहारप्राणोथी जीव जीवे छे–एम कहेवुं ते उपचारनुं कथन छे; दस प्राणोथी जीव जीवे–ए वात पण
अहीं नथी लीधी. जीव तो सदाय पोताना चैतन्यभावप्राणथी ज जीवे छे, एवी तेनी जीवत्वशक्ति छे. आवा
चैतन्यमात्र भावरूप आत्माने जे लक्षमां ल्ये तेने अनंत गुणो निर्मळ परिणम्या वगर रहे नहि. पहेलां
आचार्यदेवे अनंत गुणोथी अभेद ज्ञानमात्र आत्मानुं लक्ष कराव्युं छे, ते अभेद आत्माना लक्षपूर्वक आ
शक्तिओनुं ज्ञान करावे छे.
जोवाथी पण धर्म न थाय, केम के वस्तुना अनंतगुणोमांथी एक गुण कांई जुदो पडीने परिणमतो नथी, तेथी
एक गुणना लक्षे धर्म थतो नथी पण भेदनो विकल्प–राग थाय छे. एक समयमां अनंत गुणोथी अभेद
चैतन्यमूर्ति आत्मा छे तेनी सामे जोवाथी ज धर्म थाय छे. अभेद आत्माने लक्षमां लेतां तेनी अनंती शक्तिओ
स्वाश्रये निर्मळपणे परिणमे छे. ते शक्तिओनुं आ वर्णन चाले छे.
पण आत्मामां अभाव छे, ते एक समयमात्र पण आत्मामां रहेलां नथी माटे ते आत्मानो गुण नथी ने तेनाथी
आत्मा जीवतो नथी. माटे ते शरीर सामे जोवाथी के द्रव्यप्राणो सामे जोवाथी धर्म थतो नथी.
क्षेत्रमां अने सर्व हालतमां रहे तेने गुण कहेवाय छे. विकारी परिणामो आत्माना सर्व क्षेत्रमां छे, पण ते आत्मा
साथे सर्व काळ रहेतां नथी, तेनो काळ तो एकसमय पूरतो ज छे. तेनी सामे जोवाथी पण आत्मानो धर्म थतो
नथी.
आत्माना धर्मनो संबंध नथी. पर्यायमां थतो विकारभाव आत्माना आखा क्षेत्रमां एकसमय पूरतो व्याप्यो छे,
तेनी सामे जोवाथी पण आत्मा ओळखातो नथी एटले धर्म थतो नथी.
शक्तिओ वर्णवी छे ते बधी त्रिकाळी छे ने आत्मामां एक साथे रहेली छे; एवा आत्माना लक्षपूर्वक तेनी
शक्तिओ ओळखवानी आ वात छे.
अत्यारे पण चैतन्यप्राणथी ज जीवे छे ने भविष्यमां पण ते चैतन्यप्राणथी ज जीवशे.–आवुं आत्मानुं त्रणेकाळनुं
जीवन छे. आत्मा चैतन्यमात्र भावप्राणने त्रिकाळ धारण करे छे, एवी आत्मानी जीवत्वशक्ति आत्माना
सर्वक्षेत्रमां अने सर्वकाळमां रहेली छे.