Atmadharma magazine - Ank 098
(Year 9 - Vir Nirvana Samvat 2478, A.D. 1952)
(Devanagari transliteration).

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ः ३८ः आत्मधर्मः ९८
ज्ञानमात्रभाव ते आत्मा छे, तेमां अनंत शक्तिओ आवी जाय छे.
शरीरादि परवस्तुओ तो आत्माना क्षेत्रमां पण नथी ने आत्मानी अवस्थामां पण नथी.
रागादि विकार आत्माना क्षेत्रमां छे पण तेनी सर्व अवस्थाओमां व्यापता नथी.
आ जीवत्वशक्ति वगेरे अनंतशक्तिओ तो आत्माना पूरा भागमां ने सर्व अवस्थाओमां रहेली छे.
प्रश्नः– जीवत्वशक्ति आत्माना द्रव्यमां छे? गुणमां छे? के पर्यायमां छे?
उत्तरः– जीवत्वशक्ति द्रव्य, गुण अने पर्याय त्रणेमां रहेली छे.
विकारीभावो आत्माना द्रव्यमां के गुणमां व्यापेला नथी, मात्र एक समयपूरती एक पर्यायमां रहेला छे.
अने शरीरादि जड पदार्थो तो आत्माना द्रव्य–गुण के पर्याय एक्केयमां रहेला नथी, ते तो तद्न भिन्न छे.
जीवत्वशक्ति तो द्रव्य–गुण ने पर्याय त्रणेमा रहेली छे. जीवत्वशक्तिने लीधे आखुं द्रव्य जीवंतज्योत छे, एटले
द्रव्यमां जीवत्व छे, गुणोमां जीवत्व छे ने पर्यायमां पण जीवत्व छे. दयादि भाव ते कांई पर्यायना खरा प्राण
नथी. चैतन्यप्राणने धारण करनारी जीवत्वशक्तिथी ज द्रव्य, गुण ने पर्याय त्रणे टकेलां छे. एकेक पर्यायनुं
जीवतर पण जीवत्वशक्तिथी स्वतः टकेलुं छे.
प्रश्नः–अन्नने अगियारमो प्राण कहेवाय छे ने?
उत्तरः–अहीं तो कह्युं के आत्मामां शरीरनो ज अभाव छे, तो पछी अन्नथी आत्मा जीवे ते वात कयां
रही? आत्मानुं जीवन तो चैतन्यप्राणथी टकेलुं छे. अन्न ते आत्मानो अगियारमो प्राण नथी तेम ज पैसो ते
बारमो प्राण नथी. आत्माना चैतन्यजीवनमांथी दस प्राण पण काढी नांख्या ने रागादि पण काढी नांख्या. गुण–
गुणीभेदनो विकल्प ऊठे ते पण राग छे, ते राग आत्माना त्रिकाळी द्रव्यमां–गुणमां के समस्त पर्यायोमां रहेतो
नथी, माटे ते पण आत्माना जीवननुं कारण नथी.
जीवत्वशक्तिः– आत्माना द्रव्य–गुण–पर्याय त्रणेमां व्यापे छे.
शरीरः– आत्माना द्रव्य–गुण–पर्याय एकेयमां व्यापतुं नथी.
रागादिः–आत्माना द्रव्य–गुणमां व्यापता नथी, सर्व अवस्थामां पण व्यापता नथी, मात्र एक समयनी
पर्यायमां व्यापे छे.
आ रीते, पोताना द्रव्य–गुण–पर्याय त्रणेमां व्यापक एवी जीवत्वशक्तिथी आत्मा जीवे छे.
लोको कहे छे के ‘आशा वगरनुं जीवन नहि.’ पण खरेखर तो आत्मा आशा वगर ज जीवे छे. अहीं तो
एम कह्युं के ‘जीवत्वशक्ति वगरनुं जीवन नहि.’ आशा तो एक समयनी विकृति छे. वीतरागी आत्माओने
कोई प्रकारनी आशा होती नथी, तेओ आशा वगर ज जीवे छे. लोको आशाने अमर कहे छे, खरेखर आशा
अमर नथी, पण जीवत्वशक्तिथी आत्मा ज अमर छे. आत्मानुं जीवन आशाथी नथी टकयुं पण जीवत्वशक्तिथी
ज टकयुं छे.
आत्मा तो जाणे के पराश्रये ज जीवतो होय एम अज्ञानी माने छे, अहीं आचार्यभगवान आत्मानी
अनंत शक्तिओ बतावीने स्वाश्रित जीवन बतावे छे. अज्ञानीओ कहे छे के ‘अन्न समा प्राण नहि,’ एटले
आत्मा तो जाणे के अन्नना आधारे ज जीवतो होय! एम तेओ माने छे; परंतु अन्न एटले पुद्गलनी
आहारवर्गणा, ते तो आत्माना द्रव्यमां–गुणमां के पर्यायमां कयांय आवतुं ज नथी, एटले आत्मा अन्नथी नथी
जीवतो पण त्रणेकाळे अन्नना अभावथी ज जीवे छे. ‘अन्न विना मारे न चाले’ एम माननारे आत्मानी
जीवनशक्तिने जाणी नथी. आ ज प्रमाणे पैसानुं पण समजी लेवुं.
आत्मा कदी मरतो नथी–एम लोको बोले छे, पण कई रीते? ते समजता नथी. अहीं आचार्यदेव ए
वात समजावे छे. आत्मद्रव्यने कारणभूत एवा चैतन्यमात्र भावने धारण करनारी जीवत्वशक्ति आत्माना
परिणमनमां ऊछळे छे, तेनाथी आत्मा सदाय जीवे छे. जो चैतन्यमय जीवनशक्तिनो नाश थाय तो आत्मा मरे,
पण ते शक्ति तो आत्मामां सदाय–त्रिकाळ छे तेथी आत्मा कदी मरतो नथी, आत्मा सदाय जीवतो ज छे.
गया वर्षे (वीर सं. २४७४मां) ‘सुप्रभात मांगलिक’ तरीके आ जीवनशक्तिनुं वर्णन आव्युं हतुं.