ज्ञानमात्रभाव ते आत्मा छे, तेमां अनंत शक्तिओ आवी जाय छे.
रागादि विकार आत्माना क्षेत्रमां छे पण तेनी सर्व अवस्थाओमां व्यापता नथी.
आ जीवत्वशक्ति वगेरे अनंतशक्तिओ तो आत्माना पूरा भागमां ने सर्व अवस्थाओमां रहेली छे.
प्रश्नः– जीवत्वशक्ति आत्माना द्रव्यमां छे? गुणमां छे? के पर्यायमां छे?
उत्तरः– जीवत्वशक्ति द्रव्य, गुण अने पर्याय त्रणेमां रहेली छे.
विकारीभावो आत्माना द्रव्यमां के गुणमां व्यापेला नथी, मात्र एक समयपूरती एक पर्यायमां रहेला छे.
जीवत्वशक्ति तो द्रव्य–गुण ने पर्याय त्रणेमा रहेली छे. जीवत्वशक्तिने लीधे आखुं द्रव्य जीवंतज्योत छे, एटले
द्रव्यमां जीवत्व छे, गुणोमां जीवत्व छे ने पर्यायमां पण जीवत्व छे. दयादि भाव ते कांई पर्यायना खरा प्राण
नथी. चैतन्यप्राणने धारण करनारी जीवत्वशक्तिथी ज द्रव्य, गुण ने पर्याय त्रणे टकेलां छे. एकेक पर्यायनुं
जीवतर पण जीवत्वशक्तिथी स्वतः टकेलुं छे.
उत्तरः–अहीं तो कह्युं के आत्मामां शरीरनो ज अभाव छे, तो पछी अन्नथी आत्मा जीवे ते वात कयां
बारमो प्राण नथी. आत्माना चैतन्यजीवनमांथी दस प्राण पण काढी नांख्या ने रागादि पण काढी नांख्या. गुण–
गुणीभेदनो विकल्प ऊठे ते पण राग छे, ते राग आत्माना त्रिकाळी द्रव्यमां–गुणमां के समस्त पर्यायोमां रहेतो
नथी, माटे ते पण आत्माना जीवननुं कारण नथी.
शरीरः– आत्माना द्रव्य–गुण–पर्याय एकेयमां व्यापतुं नथी.
रागादिः–आत्माना द्रव्य–गुणमां व्यापता नथी, सर्व अवस्थामां पण व्यापता नथी, मात्र एक समयनी
लोको कहे छे के ‘आशा वगरनुं जीवन नहि.’ पण खरेखर तो आत्मा आशा वगर ज जीवे छे. अहीं तो
कोई प्रकारनी आशा होती नथी, तेओ आशा वगर ज जीवे छे. लोको आशाने अमर कहे छे, खरेखर आशा
अमर नथी, पण जीवत्वशक्तिथी आत्मा ज अमर छे. आत्मानुं जीवन आशाथी नथी टकयुं पण जीवत्वशक्तिथी
ज टकयुं छे.
आत्मा तो जाणे के अन्नना आधारे ज जीवतो होय! एम तेओ माने छे; परंतु अन्न एटले पुद्गलनी
आहारवर्गणा, ते तो आत्माना द्रव्यमां–गुणमां के पर्यायमां कयांय आवतुं ज नथी, एटले आत्मा अन्नथी नथी
जीवतो पण त्रणेकाळे अन्नना अभावथी ज जीवे छे. ‘अन्न विना मारे न चाले’ एम माननारे आत्मानी
जीवनशक्तिने जाणी नथी. आ ज प्रमाणे पैसानुं पण समजी लेवुं.
परिणमनमां ऊछळे छे, तेनाथी आत्मा सदाय जीवे छे. जो चैतन्यमय जीवनशक्तिनो नाश थाय तो आत्मा मरे,
पण ते शक्ति तो आत्मामां सदाय–त्रिकाळ छे तेथी आत्मा कदी मरतो नथी, आत्मा सदाय जीवतो ज छे.