आत्मानुं जीवन केवुं छे ते आचार्यदेव ओळखावे छे. आत्मा शरीरथी, खोराक–पाणीथी, श्वासथी के पैसा वगेरेथी
जीवतो नथी, तेमनाथी तो आत्मा जुदो छे. आत्मा अनादि अनंत ज्ञानदर्शनमय चैतन्यप्राणथी जीवे छे, ते
चैतन्यप्राणने जीवत्वशक्ति धारी राखे छे. आत्मामां ज्ञानशक्तिनी माफक आ जीवनशक्ति छे. ज्ञान, दर्शन, सुख,
आनंद, पुरुषार्थ, शांति, प्रभुता, जीवत्व–ए बधी शक्तिओ ते ज आत्मानुं कुटुंब छे, ने ते सदाय आत्मा भेगुं
ज रहे छे; आत्माने पोताना अनंतगुणोरूपी कुटुंबनो कदी वियोग पडतो नथी. जेने पोताना आवा कुटुंबनी
खबर नथी ते जीव बहारना कुटुंब–शरीर–लक्ष्मी वगेरेने पोतानां मानीने तेमने सदाय टकावी राखवानी
भावना करे छे, ते अज्ञान छे अने दुःखनुं कारण छे. अहो! हुं तो सदाय मारी जीवनशक्तिथी ज जीवनार छुं,
ज्ञान–आनंद वगेरे अनंतगुणोरूपी मारुं कुटुंब छे; मारा अनंतगुणो साथे मारुं पूरेपूरुं पवित्र जीवन टकी रहो.–
आम आत्मार्थी जीवो भावना करे छे अने ते ज मांगळिक छे.
पुण्यना भावने पण आत्मा पोताना स्वभावमां धारतो नथी ने तेना आधारे आत्मा जीवतो नथी, पुण्य छूटी
जाय तोपण आत्मा पोताना शुद्ध चैतन्यप्राणने धारण करीने जीवतो रहे छे. आत्मा सदाय शुद्ध ज्ञानदर्शनरूप
चैतन्यप्राणने धारण करीने ज जीवे छे. दरेक जीवमां आवी ‘जीवत्व’ नामनी खास शक्ति छे; आ जीवत्वशक्ति
जीवना जीवननी जडीबूट्टी छे. जो आ जडीबूट्टीने धारण करे तो मरणनी बीक मटी जाय. शरीरने आत्माए कदी
धारण कर्युं ज नथी ने विकारने पण पोताना स्वभावमां कदी धारण कर्यो नथी; शरीर अने विकारथी जुदा एवा
चैतन्यप्राणने धारण करीने ज जीव सदा जीवी रह्यो छे. आवा चैतन्यशक्तिमय पोताना जीवनने ओळखतां
पराश्रयभाव टळीने स्वाश्रितभावरूप मोक्षमार्ग प्रगटे छे.
जाय छे, तेथी ते तो जीवथी जुदुं ज छे. जीवनुं कुटुंब जीवथी जुदुं न होय ने कदी जुदुं पडे नहि. ज्ञान, आनंद
वगेरे अनंत गुणो ते जीवनुं कुटुंब छे, ते बधा गुणो भेगा ज रहे छे; एक गुण वगर बीजो गुण होय नहि–ए
रीते आत्मानुं आखुं कुटुंब संकळायेलुं अने संपीलुं छे. आवा कुटुंब सहित आत्माने जाणीने तेनी श्रद्धा अने
तेमां एकाग्रता करतां अनंतचतुष्टयमय मुक्तदशा प्रगटे छे. आत्मानी जीवनशक्तिने जाणे तेने तेवुं जीवन
प्रगटे.
रीते पोताना त्रिकाळी चैतन्यजीवननुं भान करवुं ते साचुं ज्ञान छे अने ते ज्ञानथी जाणेला त्रिकाळी
चैतन्यस्वभावना आश्रये टकतां शुद्धतानुं पोषण अने अशुद्धतानो नाश थवो ते क्रिया छे. आवा ज्ञान अने
क्रिया ते मोक्षनुं कारण छे.
जीवत्वशक्ति छे पण राग–द्वेष नथी. जो जीवत्वशक्तिने कारणे राग–द्वेष होय तो सिद्धभगवानने पण
राग–द्वेष थवा जोईए; अने जो राग–द्वेषने कारणे जीवत्व होय तो सिद्धभगवानने जीवत्वशक्ति न रही
शके. माटे रागमां जीवत्व नथी ने जीवत्वमां राग नथी. आ जीवत्वशक्तिथी आत्माने जोतां रागादि बधा
भावो तो मरी गयेलां (चैतन्यस्वरूपमां अभावरूप) देखाय छे, ने चैतन्यस्वरूप एक आत्मा ज पोताना
द्रव्य–गुण अने निर्मळपर्यायोथी जीवतो–नभतो–टकतो–शोभतो देखाय छे. अहीं तो शुद्धतानी ज वात छे,
विकारने तो जीव गण्यो ज नथी; विकारभावो चैतन्यस्वभावनी अपेक्षाए तो मडदां ज छे, तेनामां जीवत्व
नथी.