तारुं कारण छे; ए सिवाय बहारना कोई कारणने न शोध. आत्मद्रव्यने कारणभूत मात्र चैतन्यभावप्राण छे–
एम कहीने आचार्यदेवे बीजा बधा कारणो काढी नाख्या छे. बहु तो कारण कहेवुं होय तो चैतन्यप्राणोने धारण
करनारी आ जीवत्वशक्ति ज तारा आत्मद्रव्यनुं कारण छे. ‘आत्मद्रव्य’ कहेतां अहीं द्रव्य–गुण–पर्याय त्रणेय
समजवा. आत्माना द्रव्यनुं जीवन, गुणनुं जीवन ने पर्यायनुं जीवन, तेमां आ जीवत्वशक्ति निमित्त छे.
दरेक गुण–पर्यायो पोतानी स्वतंत्र शक्तिथी पोतपोताना स्वरूपे टकी रह्यां छे.
पछी आत्मानी पर्याय ढीली पडी जाय–एम नथी. केवळज्ञान थया पछी, साठ वर्ष तो शुं पण अनंतकाळ सुधी
एवी ने एवी अवस्था थया करे छे, तोपण ते कदी जराय ढीलुं पडतुं नथी. आयुष्यनी गणतरी करवामां आवे छे
ते तो देहनुं छे, आत्माने आयुष्यनी मर्यादा नथी, आत्मा तो अनादिअनंत छे. सिद्धभगवानमां पण
जीवत्वशक्ति छे, ते शक्तिनो आकार आत्माना प्रदेशो प्रमाणे छे, ने पूरा द्रव्यमां, पूरा गुणोमां ने
समस्तपर्यायोमां ते व्यापे छे. एटले जीवत्वशक्तिने लक्षमां लेवा जतां परमार्थे आखो आत्मा ज लक्षमां आवी
जाय छे.
नथी. तारी जीवत्वशक्तिथी तारुं जीवन त्रिकाळ छे, तेने तो अंतरमां जो. तो तने मृत्युनो त्रास मटी जशे.
‘हुं तो मारी जीवत्वशक्तिथी जीवतो ज छुं, मारुं मृत्यु थतुं ज नथी’ एम जाण्युं पछी मृत्युनो भय शेनो
रहे? आत्मामां आ जीवत्वशक्ति भेगी ज छे, एटले ज्ञानमात्र आत्मस्वभावने लक्षमां लेतां आ शक्तिनी
प्रतीति पण आवी ज जाय छे. जो एक जीवत्वशक्तिने काढी नांखो तो आखुं आत्मद्रव्य ज न टकी शके, माटे
आ जीवत्वशक्तिने आत्मद्रव्यना कारणभूत कीधी छे. चैतन्यप्राणथी त्रिकाळ टकता आत्मद्रव्यनी सामे
जोवाथी धर्म थाय छे.
बताववुं छे, एटले अनंत शक्तिओवाळा आत्मा उपर द्रष्टि करवी ते तात्पर्य छे.
आवी जती शक्तिओनुं आ वर्णन छे, एटले आ शक्तिओमांथी एकेक शक्तिने भेद पाडीने
लक्षमां ल्यो तो शुद्ध परिणमन थतुं नथी पण अनंत शक्तिना पिंड शक्तिमान् एवा अभेद
आत्माने लक्षमां लईने परिणमतां एक साथे अनंती शक्तिओनुं निर्मळ परिणमन शरू थई
जाय छे.
कबूले अने पर्यायमां तेनुं बिलकुल परिणमन न प्रगटे–एम बने नहि. शक्ति साथे व्यक्तिनी
संधि छे. त्रिकाळी शक्तिने कबूलतां तेनी व्यक्तिनी पण प्रतीत थई ज जाय छे एटले के
साधक–दशानुं निर्मळ परिणमन शरू थई जाय छे.