ऊठे छे एटले एकेक शक्तिना भेद सामे जोईने पण आ शक्तिनी यथार्थ कबूलात थती नथी.
निर्मळ पर्याय प्रगटी जाय छे.
द्रष्टिपूर्वक ज आ शक्तिओनुं यथार्थ ज्ञान थाय छे. अभेद आत्मानी द्रष्टि सिवाय कोई पण
भेद–पर्याय–विकार के निमित्तना आश्रयथी लाभ माने तो मिथ्यात्व थाय छे, तेने आ
शक्तिओनुं निर्मळ परिणमन थतुं नथी.
तुं सूक्ष्म, तारी वात पण सूक्ष्म, अने तारु ज्ञान पण सूक्ष्मने समजवाना स्वभाववाळुं छे; माटे आत्मानी रुचि
करीने समज. शरीरनी क्रियाथी धर्म थाय–एवा प्रकारनी जाडी–मिथ्या वात तो अनादिथी पकडी छे पण तेथी
कल्याण थयुं नथी. माटे हवे कल्याण करवुं होय तो सूक्ष्म एवा आत्माने समज्ये छूटको छे. जड पदार्थनी वात
जाडी होय पण आत्मानी वात तो सूक्ष्म ज होय; केम के आत्मामां एक सूक्ष्मत्व नामनो गुण अनादिअनंत छे.
सूक्ष्मगुणने लीधे आखो आत्मा सूक्ष्म छे; द्रव्य सूक्ष्म, तेना गुणो सूक्ष्म ने तेनी पर्यायो पण सूक्ष्म. आवो सूक्ष्म
आत्मा ईंद्रियग्राह्य थतो नथी, पण अतीन्द्रियज्ञानमां तेने जाणवानुं सामर्थ्य छे. जो आत्मा ईंद्रियग्राह्य थई
जाय तो आत्मानो महिमा रहे नहि. ज्ञानने सूक्ष्म एटले के इन्द्रियोथी पार करीने अंतर्मुख करे तो ज आत्मा
जणाय छे–एवो ज आत्माना स्वभावनो महिमा छे. एक झीणुं मोती परोववुं होय तो त्यां पण ध्यान राखवुं
पडे छे; ते मोती तो अनंत परमाणुओनो स्थूळ स्कंध छे; तो पछी अतीन्द्रिय एवा आत्माने पकडवा माटे तेमां
बराबर ध्यान परोववुं जोईए.
परिणमन थयुं तेमां आ शक्तिओ ऊछळे छे.......प्रगटे छे.......व्यक्त थाय छे....परिणमे छे, पण
ज्ञानभावनी साथे कांई राग के शरीर ऊछळतां नथी, तेमनो तो ज्ञानमां अभाव छे. जेम गुलाबना फूलनी
कळी खीलतां तेनी साथे तेनो गुलाबी रंग–सुगंध वगेरे तो एक साथे खीले छे, पण कांई धूळ वगेरे नथी
खीलतां; तेम चैतन्य–