Atmadharma magazine - Ank 098
(Year 9 - Vir Nirvana Samvat 2478, A.D. 1952)
(Devanagari transliteration).

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आत्मानी समजण
जुओ भाई! आ आत्मस्वभावनी वात
झीणी पडे तो वधु ध्यान राखीने समजवा जेवी
छे. आत्मा सूक्ष्म छे तो तेनी वात पण सूक्ष्म ज
होय. जीवे एक ‘स्व’ नी समजण विना बीजुं
बधुं अनंतवार कर्युं छे. आत्मानी परम सत्य वात
कोईक जग्याए ज सांभळवा मळे छे. कोई नोवेलो
वांचे छे, कोई धर्म सांभळवा जाय त्यां ओठां–
वार्ता संभळावे छे, बाह्यनी प्रवृत्ति बतावे छे; ए
रीते बाह्य क्रियाथी संतोष मनावी धर्मनुं स्वरूप
भाजी–मूळा जेवुं सोंघुं बनावी दीधुं छे.
आत्मस्वभावनी जे वात अनंतकाळमां न
समजाणी ते वात समजवा माटे तुलनात्मक बुद्धि
होवी जोईए. लौकिक वात अने लोकोत्तर धर्मनी
वात तद्न जुदी होय छे. झट न समजाय तेथी ना
न पाडशो. जे पोतानुं स्वरूप छे ते न समजाय
एवुं अघरुं होय ज नहि. रुचिथी अभ्यास करे तो
दरेक जीव पोतानुं आत्मस्वरूप समजी शके छे.
मात्र सत् समजवानो प्रेम जोईए. श्री आचार्यदेवे
तो समयसारनी शरूआतमां ज कह्युं छे के–हुं मारा
अने तमारा आत्मामां सिद्धभगवानपणुं स्थापीने
तत्त्व जणावुं छुं.
–समयसार–प्रवचनो भाग १ पृ. ९प
अंधकार अने प्रकाश
अंधारामां जुओ तो सोनुं, लोढुं, लाकडुं
वगेरे बधी चीजो एक जेवी लागे, पण जुदाई
जणाय नहि. अने दीपकना प्रकाश वडे जोतां ते
चीजो जुदी जुदी जेम छे तेम जणाय छे; तेम
अज्ञानरूपी अंधारामां आत्मा अने परचीजो
एकमेक भासे छे पण आत्मानुं परथी जुदापणुं
भासतुं नथी. आत्माने परथी जुदो जाणवा माटे
प्रथम ज सम्यग्ज्ञानरूप प्रकाश जोईए. आ
(सम्यग्ज्ञान) पहेलामां पहेलो आत्मधर्मनो
एकडो छे.
–समयसार प्रवचनो भाग १ पृ. ८१
*
प्रकाशकः श्री जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट वती जमनादास माणेकचंद रवाणी, मोटा आंकडिया, (जिल्ला अमरेली)
मुद्रकः– चुनीलाल माणेकचंद रवाणी, शिष्ट साहित्य मुद्रणालय, मोटा आंकडिया, (जिल्ला अमरेली) ता. २९–११–प१